छत्तीसगढ़

सीतामढ़ी हरचौका की प्राकृतिक गुफाओं को काटकर 17 कक्ष बनाए गए थे इनमें द्वादश शिवलिंग अलग-अलग कक्ष में बनाए गए हैं यही माता सीता भगवान शिव का पूजा अर्चना करती थी -डॉ विनोद पांडेय

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मनेन्द्रगढ़। एमसीबी। मनेद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर जिले का भरतपुर विकासखंड अपनी सांस्कृतिक विविधताओं और पुरातात्विक अवशेषों से भरा हुआ है इस कारण यहां की जनता इस भू भाग को राम वन गमन पथ एमसीबी जिला मुख्यालय से लगभग 150 किलोमीटर दूर कठौतिया केल्हारी जनकपुर होकर पहुंचा जाता है सीतामढ़ी हरचौका यह रामचंद्र जी का दक्षिण कौशल (छत्तीसगढ़) में प्रथम पड़ाव था इतिहासकार डॉ विनोद पांडेय बताते हैं कि रामचंद्र जी को राजा दशरथ के वनवास का आदेश मिलते ही वह अयोध्या से प्रस्थान कर गए, अयोध्यावासी उन्हें तमसा नदी के तट तक उनके साथ-साथ गए तथा वहीं उन्हें अंतिम विदाई दी I वहां से तमसा नदी पार कर वाल्मीकि ऋषि आश्रम, निषाद राज से भेंट करते हुए चित्रकूट (मध्य प्रदेश) प्रयागराज होते हुए एमसीबी अविभाजित कोरिया जिले के मवई नदी के तट के किनारे होते हुए दंडकारणय में प्रवेश किया I तत्पश्चात दक्षिण कौशल (छत्तीसगढ़) में मवई नदी के तट को पार कर भरतपुर विकासखंड के सीतामढ़ी हरचौका पहुंचे I यह छत्तीसगढ़ के वनवास काल का पहला पड़ाव था , सीतामढ़ी हरचौका की प्राकृतिक गुफाओं को काटकर 17 कक्ष बनाए गए थे इनमें द्वादश शिवलिंग अलग-अलग कक्ष में बनाए गए हैं यही माता सीता भगवान शिव का पूजा अर्चना करती थी तथा प्रभु राम ने माता सीता और लक्ष्मण के साथ कुछ समय यहाँ बिताया I हरचौका अर्थात हरि का चौका तथा सीतामढ़ी अर्थात् सीता की रसोई के नाम से यह स्थान सीतामढ़ी हरचौका के नाम से जाना जाता है इसके उपरांत घाघरा कोटाडोल और छतोड़ा आश्रम होते हुए बैकुंठपुर सूरजपुर विश्रामपुर होते हुए अंबिकापुर पहुंचे उन्होंने वनवास काल का समय बिताया और आगे की यात्रा की I
राम वन गमन पथ का अधिकांश हिस्सा छत्तीसगढ़ से गुजर रहा है इसमें अविभाजित कोरिया वर्तमान एमसीबी जिले के सीतामढ़ी हरचौका से लेकर से रामाराम (सुकमा) तक का हिस्सा शामिल है छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पथ की कुल लंबाई 528 किलोमीटर है I


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