छ्ग में मिले हैँ 28 करोड़ साल पुराने समुद्रीय जीवश्म….
वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से..{किश्त153}
छत्तीसगढ़ की धरती कभी गहरे समुद्र का हिस्सा हुआ करती थी…? यह जानकर आश्चर्य होगा लेकिन एक शोध में इसकी पुष्टि हुई है। उत्तरी छत्तीसगढ़ में इसके सबूत आज भी मौजूद हैं। यहां मिले समुद्री जीवों के अवशेष का संरक्षण करने के लिए सरकार एशिया का सबसे बड़ा समुद्री फॉसिल्स पार्क विकसित कर रही है।मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के वेस्ट चिरमिरी पोड़ी में सिद्धबाबा पहाड़ कीvगुफा में जलीय जीव के जीवाश्म के सबूत हैं।गुफा के अंदर चट्टान पर समुद्री मछली, मगरमच्छ का जीवाश्म है।जानकार बताते हैं कि चिरमिरी में फर्न प्रजाति के जीवाश्म हैं। जनवरी 2014 में पहली बार यह जानकारी सामने आई थी, कुछ युवा गुफा के अंदर सुरंग में गये थे। जीवाश्म की जानकारी इंदौर के रिसर्च सेंटर तक भेजी गई थी। जानकारों की मानें तो करीब 28 करोड़ साल पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, अन्य पड़ोसी राज्य गहरे समुद्र का हिस्सा हुआ करते थे। हर तरफ पानी ही पानी था।इस समुद्र के अवशेष आज भी मनेंद्रगढ़ हसदेव नदी के तट पर जीवाश्म के रूप में नजर आते हैं।मनेंद्रगढ़ में हसदेव नदी किनारे पुराने समुद्री जीवों,वनस्पतियों के जीवाश्म पूर्व में मिले हैं। 29 करोड़ साल पुराने जीवाश्म होने की पुष्टि भी बीरबल साहनी संस्थान की ओर से की गई।लखनऊ की बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ने जांच के बाद इस बात की पुष्टि की थी कि जो जीवाश्म के अवशेष मिले हैं वो 29 करोड़ साल पहले के हैं। हसदेव नदी के किनारे मिले जीवाश्म के अवशेषों का डेटा जुटाने रायपुर से बायो डायवर्सिटी बोर्ड की एक टीम भी आई थी, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम ने साल 1982 में जीवाश्मों को नेशनल जियोलॉजिकल मोन्यूमेंट्स में शामिल कर लिया। जानकारों के मुताबिक प्रदेश का बड़ा हिस्सा छग में जीवाश्म पर बहुत कम अध्ययन हुआ है। छ्ग का बड़ा हिस्सा सदियों से घने जंगलों से घिरा हुआ है। जंगलों के नीचे धरती के गर्भ में करोड़ों साल पुराने जीवों,वनस्पतियों के अवशेष सुरक्षित पड़े होने की पूरी संभावना है। जीवाश्मों के व्यवस्थित अध्ययन और खुदाई के जरिए जमीन के भीतर से निकाल संरक्षित किया जा सकता है।मनेंद्रगढ़ में आमाखेरवा गांव के पास हसदेव नदी, हसिया नाला के बीच करीब एक किलोमीटर का क्षेत्र समुद्री जीवों और वनस्पतियों के जीवाश्म से भरा हुआ है। इस क्षेत्र में बाइवाल्व, मोलस्का, यूरीडेस्मा और एवी क्युलोपेक्टेन आदि समुद्री जीवों के जीवाश्म मौजूद हैं। इनके अलावा पेलेसि पोड्स, गैस्ट्रोपोड्स, ब्रेकियो पोड्स, ब्रायोजोअन्स और क्रिनॉएड्स प्रजाति के जीव भी हैं। मनेंद्रगढ़ में स्थित समुद्री जीवों के जीवाश्म क्षेत्र को जियो लॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (जीएस आई) ने 1982 से नेशनल जियो लॉजिकल मोनूमेंट्स में शामिल किया गया है।सदियों से घने जंगलों से घिरा हुआ है। जंगलों के नीचे धरती के गर्भ में करोड़ों साल पुराने जीवों, वनस्पतियों का अवशेष सुरक्षित पड़े होने की पूरी संभावना है?
भारत में हैं पांच
फॉसिल्स पार्क…
करोड़ों साल पहले जीवा श्मों की पुष्टि होने के बाद फॉसिल्स को गोंडवाना की सुपरग्रुप पत्थर की चट्टानों की श्रेणी में रखा गया। जहां पर फॉसिल्स वाले एरिया था, उनको विकसित करने का फैसला लिया गया।मनेंद्रगढ़ के अलावे भारत में इस वक्त चार और फॉसिल्स पार्क हैं।पहला फॉसिल्स पार्क सिक्किम के खेमगांव में, दूसरा पार्क झारखंड के राजहरा में, तीसरा पार्क अरुणाचल के सुबनसिरी में और चौथा पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में है।