प्राकृतिक सुंदरता का खजाना लिए छत्तीसगढ़ राज्य की 32 जिलों की एक इकाई मनेन्द्रगढ़- चिरमिरी -भरतपुर जिला प्राकृतिक रहस्यों के कई विविधताओं से भरा हुआ है. प्राकृतिक जंगल, पहाड़, झरने के साथ सघन पेड़ पौधों की श्रृंखला जो कलमकारों को कविता और गीत लिखने की प्रेरणा देती है वहीं कलाकारों को अपनी तूलिका से इन्हीं प्राकृतिक दृश्य को स्थायित्व प्रदान करने की कोशिश में कलाकृतियां बनाने की प्रेरणा देता है. इसी प्रकृति का कई दृश्य इतना प्रभावित करते है कि दूर बैठा कलाकार अपनी यादों के बल पर कैनवास पर हूबहू चित्रांकन करता जाता है. एक कलाकार की तरह जंगल की शांति के बीच यदि आप कुछ सुनने की कोशिश करेंगे तब यही प्रकृति आपको गुनगुनाती हुई सुनाई देगी. पेड़ों पर बैठे पंछी दूर बैठे अपने प्रिय को लुभाने के लिए किस भाषा का प्रयोग करते है उसे जानने के लिए आपको शांत वनों की भाषा समझनी होगी. अन्यथा घर में पाले हुए तोते को अपनी भाषा सीखाकर खुश हो लेना अलग बात है, जो आपके आसपास के घरों में मिल जाएगा .
प्रकृति में जंगल पहाड़ और जीव जंतुओं के प्रेम और अनुराग की अलग भाषा होती है छोटी-छोटी चीटियां जब पंक्तिबद्ध होकर चलती है तब उनके आपसी मिलन का दृश्य ऐसी मिसाल प्रस्तुत करता है जो बिरले ही दिखाई पड़ेगा. पशुओं की मुकबोली के बीच प्यार के संबंध की अपनी भाषा होती है उसी भाषा के स्वरों में गाय और बछड़े के संबंध,माँ के गर्भ से बाहर आने के बाद बछड़े को खड़ा करने की गाय की जद्दोजहद, शेरनी को अपने बच्चों की रक्षा के लिए शेरों से लड़ते देखना और नाग – नागिन के जोड़ों की आपसी भाषा की संलिप्तता में 3-4 फीट ऊंचाई तक उठ कर प्रेमालाप करना जीवन के वे अंश है जहां जीवन की सार्थकता एवं जीवन का सही अर्थ महसूस होता है. जीवन के इन्हीं आत्मीय संबंधों के लिए देवता भी मानव शरीर धारण करते रहे हैं. लेकिन पत्थरों में भी यदि वाद्य यंत्रों की ध्वनि गूंजने लगे तब यह प्रकृति के उन रहस्यों की परत खोलती है, जो असंभव को भी संभव कहना गलत नहीं होगा. इसी तरह अब पत्थरों को पत्थर दिल कहना उनका अपमान होगा क्योंकि जिसके पास कोई भावनात्मक लगाव या एक दूसरे की भावना को महसूस करने की शक्ति नहीं हो उसे ही पत्थर दिल कहा जाता है. लेकिन यदि कहीं किसी तार को छूने से स्वर गूंजने लगे या किसी थाप पर स्वर गूंज जाए तब उसे सहृदय ही कहा जाता है. आज पर्यटन के नये पड़ाव पर हम जहां चल रहे हैं वहां पत्थरों में ऐसे स्वर सुनाई देते हैं ,जो शुभ मुहूर्त और शादी ब्याह के समय में बजाई जाने वाले ढोल नगाड़ों की स्वर लहरियों से जंगलको गूंजायमान करते है.
मनेन्द्रगढ़- चिरमिरी -भरतपुर जिले की सीमा उत्तर में मध्य प्रदेश के सीधी जिला की कुसमी तहसील की सिंगरौली तथा दक्षिण में कोरबा जिले की पोड़ी उपरेड़ा का अमझर गांव और सूरजपुर रामानुजगंज तहसील को छूती है , वहीं पूर्व में कोरिया जिले का बैकुंठपुर तथा पश्चिम में गौरेला -पेंड्रा -मरवाही जिला स्थित है. 381287 लोगो की आबादी का यह जिला अपने चारों ओर जहां प्राकृतिक खूबसूरती एवं पर्यटन की धरोहरों से भरा पड़ा है वही यह जिला स्वयं पर्यटकों के कोतुहुल, जिज्ञासा एवं ऐतिहासिक धरोहरों और प्राकृतिक जलप्रपात नदी, पहाड़ तथा ग्रामीण सौंदर्यका ऐसा स्थल है जहां पौराणिक कथाओं के बीच बाल्मिक रामायण के अरण्यकांड में वर्णित दंडकारण की देवभूमि का हिस्सा होने की कई कहानियां जुड़ी हुई हैं. ऋषि मुनियों की तपस्थली की याद दिलाते इस प्राकृतिक सौंदर्य के कुछ हिस्से आज भी इस अंचल में कई कहानियों लेकर छुपा रखा है. मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तपस्थली उनकी यात्रा एवं जंगलों में ऋषियों से आशीर्वाद लेने की यह यात्रा भूमि आज भी कई आश्चर्यजनक प्राकृतिक अजूबे उत्पन्न करती है. जो सहसा विश्वसनीय नहीं है. इसी एमसीबी जिले के दक्षिणी छोर में स्थित जरौंधा गांव के आगे 6 किलोमीटर चलने पर ग्राम पंचायत अमझर के कुम्हारी गांव का
बुंदेलीपारा होकर आगे चलने पर लगभग 1 किलोमीटर पैदल चलकर आगे छोटी पहाड़ी के बीच दिखाई पड़ता है.
छत्तीसगढ़ वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने यहाँ मार्का का मुनारा बीबीएएम -9 ch – 2360 मीटर आगे खड़ा है.इसी स्थल से 30 मीटर दूर पाकड़ का एक बड़ा पेड़ जिनकी छाया में लंबे-लंबे पत्थरों की कई सिलाई सोई हुई दिखाई पड़ती है. ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी गांव जाने को बाराती काफी लंबी थकान के बाद लोग यहां लेट कर थकान मिटा रहे हैं और अपने साथ ढोल नगाड़ों को किनारे सजा कर रख दिया है. नीचे कुछ खाली हिस्से में उपर से बहने वाला बरसाती नाला पानी के साथ कुछ मिट्टी काटकर बहा ले गया है. जिससे कई पत्थरों के नीचे खाली जगह बन गई है. और पत्थर का आधा हिस्सा हवा मे तैरता दिखाई पड़ता है. इसी पत्थरों से लगभग 100 मीटर दूर उपका पानी के जल स्रोत हैं जो जमीन की सतह से दबाव के साथ ऊपर पानी फेंकते रहते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि किसी ने पंप लगाकर उपर पानी फेंकने की कोशिश कर रही है. प्रकृति का यह नजारा भी अपने आप में अनूठा और अलग है ग्रामीणों ने दबाव से निकलने वाले ऐसे पानी को एक छोटा सा बांध बनाकर रोक रखा है ऊपर बने बांध से निकलने वाला पानी रिस रिस कर खेतों में पसर रहा है और खेतों को हरियाली देने के साथ जमीन को दलदली बना रहा है.
इस पड़ाव पर पहुंचते पहुँचते लंबी यात्रा के बाद गांव के शिवनारायण सिंह ने सांस ली और कहा चलिए अब अपनी यात्रा पूरी हुई. यही है “बाजन- पथरा” और थोड़ी थकान मिटाने के उद्देश्य से हम परमेश्वर सिंह के साथ अपनी यात्रा के मार्गदर्शक जरौधा निवासी विश्व कुमार सिंह के साथ अमझर गांव के गणेश प्रसाद पूरी और बुद्धू सिंह इसी पत्थर पर लेट गए . लेटे-लेटे पास पड़े एक पत्थर को उछाल कर मैं जैसे ही दूसरी तरफ फेंका दूसरे पत्थर से अचानक ऐसी आवाज आई जैसे नगाड़े पर किसी ने लकुड़े ( नगाड़ा बजाने की डंडी ) से चोट मारी है ऐसा तब होता है जब गांव के रास्ते में चलने वाली बारात जब रास्ते से गुजरती है तब राह में पड़ने वाले गांव में कांवर में रखे नगाड़े पर नगाड़ा बजाने वाला लकुडा की थाप देकर बारात पहुंचने की सूचना देता है . ऐसी ही मधुर ध्वनि सुनकर हम चौंक गए और पास में पसरे पत्थरों पर बने कुछ सफेद लाइन पर छोटे-छोटे पत्थरों जैसे ही लकुडा की तरह पत्थरों पर थाप दी अलग-अलग ध्वनि उत्पन्न होने लगी. फिर क्या था हमारी खुशी का पारवार न था. ऐसा लगा आज यह साबित हो गया है कि पत्थरों में भी दिल होता है जो प्रत्येक चोट पर मधुर तरंगे उत्पन्न करता है. हमारे साथी शिवनारायण सिंह ने चार पत्थरों को बजाकर बताया जिसमें नगाड़ा – ताड़ी एवं टिमकी की अलग-अलग पत्थरों से ध्वनि उत्पन्न हो रही थी. साथी बुद्धू सिंह ने बताया कि यहां चरवाहे अपने गाय भैंसों के साथ आते हैं एवं रोटी पानी खाकर यहां इन पत्थरों के स्वर लहरी से मधुर ध्वनि बजाकर अपना मनोरंजन करते हैं . बुद्धू सिंह ने यह भी बताया कि पहले यहाँ पांच पत्थर थे जिसे दो लोग बजाते थे .,अब इसमें से एक पत्थर बरसात के नाले में कहीं नीचे वह गया जिससे अब यह केवल चार पत्थर ही रह गए हैं. इनकी ऐतिहासिक जानकारी लेने पर पता चला कि यह पत्थर यहां सैकड़ो वर्ष से है एवं हमारे पुरखों को भी इसकी जानकारी थी. लेकिन पहले यहां घने जंगल हुआ करते थे लोगों का कम आवागमन होता था . केवल चरवाहे अपने गाय भैंसों के साथ यहां गाय चराने के लिए आया करते थे. बाजन पथरा के बारे में जानकारी उन हैं चरवाहों के द्वारा प्राप्त हुई इन पत्थरों के स्वर की तीव्रता के बारे में जानकारी देते हुए गणेशपुरी ने बताया कि पहले यहां पत्थरों की आवाज ज्यादा थी लेकिन अब कुछ कम हो गई है कारण का कुछ पता नहीं चला . शिवनारायण ने बताया कि आगे यहां से 100 मीटर की दूरी पर जमीन से दबाव के साथ निकलने वाला उपका पानी है जिस पर एक स्टाप डेम बनाकर पशु पक्षियों एवं वन्य जीवों के लिए पानी पीने की व्यवस्था की गई है इसमें बारहोमास पानी रहता है. काफी देर तक इन पत्थरों की सुमधुर ध्वनि का आनंद लेते रहे हुए हम इसके आनंद में इतने डूबते उतराते रहे. हमारे साथी परमेश्वर सिंह ने स्वयं इसे अपने हाथों एक कुशल नगाड़ा वादक की तरह बजाने की कोशिश की. पत्थरों को बजाने से मिलने वाले आनंद को उनके चेहरे की मुस्कुराहट स्पष्ट बिखेर रही थी. खुशियों के इन्ही पलों के बीच कब सूर्य अस्ताचल को जाने लगा हमें पता ही नहीं चला. सूर्य ने इशारा किया कि अब हमें वापस चलना चाहिए.
वापसी में अमझर गांव के कच्ची सड़क पर बुंदेलीपारा नाम सुनकर चौकना स्वाभाविक था. बुंदेली गाँव के पूर्व हेड मास्टर एवं सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष परमेश्वर सिंह से पता चला कि 1982- से 1984 के बीच बुंदेली गांव सड़क मार्ग से कटे होने के कारण बुन्देली में फैलने वाली हैजा की बीमारी इतनी भयंकर थी कि वहां गाँव के गाँव नष्ट हो रहे थे. ऐसी स्थिति में हैजा की बीमारी से बचने के लिए गांव के कुछ लोग यहां जंगलों में आकर बस गए और अमझर के लोगों ने इसे यहाँ जंगल के किनारे बसने वाले पारा को बुंदेली पारा का नाम दे दिया . मुझे वह दृश्य याद आ गया जब मनेन्द्रगढ़ से दवा लेकर वापस जाते बुंदेली गाँव के ग्रामीण की हसदो नदी के किनारे मृत्यु हो गई थी और इस धटना ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की राजनीतिक कुर्सी तक हिला दी थी और फिर इस दिशा में कई प्रयास किए गए एवं हसदो नदी से इन गांवों को जोड़ने की शुरुआत की गई. जिसमें वन विभाग द्वारा एक पल जिसे साक्षरता पुल का नाम दिया गया था उसी से इस गांव को जोड़ने की शुरुआत हुई थी. और अब हसदो के इस पर बने गांव तक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होने लग गई है.
बाजन पथरा” के गांव अमझर से वापस लौटते समय जब हम पुनः छत्तीसगढ़ सीमा में प्रवेश करते हैं तब जिज्ञासावश सड़क किनारे की पहाड़ी की जानकारी लेने पर गांव के विश्व कुमार सिंह ने बताया कि यह जोगी डोंगरी पहाड़ी है गांवो में किवदंतियों और आस्था कुछ ऐसे रहस्यों को उजागर करती है जिसकी केवल मान्यताएं हैं इसकी वास्तविकता पर कई प्रश्न चिन्ह लगे हुए हैं जो भविष्य में वैज्ञानिकों एवं खोजी प्रवृत्ति के लोगों के लिए मार्गदर्शन का कार्य करती है . आपको सुनकर आश्चर्य होगा लेकिन हमने अपने बुजुर्गों से सुना है कि यहां से लगभग 300 मीटर दूर स्थित यह “जोगी डोगरी” पहाड़ी दोनों जिले की सीमा रेखा है. इस पहाड़ी के बारे में किवदंती है कि इसमें इतना बड़ा खजाना छिपा है जिससे पूरे भारत देश को तीन दिन चलाया जा सकता है.
वापसी में जरौंधा गांव के सीमा पर “धर्मगुड़ी” की बहुत बड़ी मान्यता है आज भी लोग अपने बच्चों की शादी ब्याह एवं अन्य कार्यों के लिए यहां मनौती मानते हैं. यहां के बारे में पुरखों से हम यही सुनते आए हैं कि सात लाट (खंभे ) का यह स्थल जो गांव की सीमा से बाहर है पुराने समय में यहां एक कुआं हुआ करता था. जब भी कोई राहगीर भूखा प्यासा इधर से गुजरता और चिंतित तथा परेशान होकर “धर्मगुड़ी बाबा” के यहां जाता तब बाबा उसे कुएं से पानी देते थे और खाना बनाने के लिए चावल दाल के साथ बर्तन भी प्रदान करते थे और राहगीर तृप्त होकर इस कुएं में बर्तन डालकर आगे बढ़ते थे किवदंतियों और मान्यताओं के बीच ” धर्मगुड़ी ” की आस्था और मान्यता आज भी उतनी ही जीवन्त है जितनी सैकड़ो वर्ष पूर्व रही होगी .
इसी गांव में बाहरी छोर पर भुजबल डांड़ में लगभग डेढ़ किलोमीटर बाहर एक तालाब है जिसे लोग बाबा तालाब भी कहते हैं . यहां प्राप्त प्राचीन मूर्तियां तालाब के खुदाई के दौरान प्राप्त हुई थी जो रतनपुर महामाया देवी के पत्थरों जैसी है यहां के ग्रामीण इसे रतनपुर महामाया से जोड़ते हैं किंतु सत्यता की कहानी के कई पन्ने अनसुलझे हैं जिन्हें सुलझाना अभी बाकी है .
मनेन्द्रगढ़ जिले के मुख्यालय से जरौंधा गांव तक पहुंचने के लिए सबसे पहले मनेन्द्रगढ़ से निकलकर दक्षिण दिशा में झगड़ाखाण्ड -लेदरी -नारायणपुर -भौता से मुड़कर कोड़ा से बायें मुड़ना होगा और कोड़ा पहुंच कर पुलिस चौकी से दक्षिण दिशा अर्थात दाहिनी और मेंड्रा गांव से होते हुए बेलबहरा पहुंच कर जरौधा गांव पहुंचा जा सकता है. जिसकी कुल दूरी लगभग 48 किलोमीटर दूर है. बेलबहरा के पास इस बीच एक बुधरा नदी पड़ती है जिसमें पुल का निर्माण कार्य जारी है. इस नदी को पार करने के लिए आपको वर्तमान में मोटरसाइकिल से यात्रा करनी होगी. ताकि नदी की रे पत्थरों को पार कर सकें.. दूसरा मार्ग एक और है जो आपको मनेन्द्रगढ़ से मरवाही- दानी कुंडी- मगुरदा- सिंगारबहरा- सकड़ा से होकर जरौंधा तक पहुंचा जा सकता है. इस स्थल पर पहुंचने के लिए आप जरौधा के हायर सेकेंडरी स्कूल के तिराहे पर गोलू होटल के संचालक ( चाय दुकान के) विश्व कुमार सिंह से फोन नं. 6372599541 पर संपर्क कर सहयोग ले सकते हैं.
जरौंधा की यह यात्रा एमसीबी जिले के मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित “बाजनपथरा” के लिए जानी जाएगी और कई किवदंतियों की सत्यता के अनसुलझे सवालों के जवाब ढूंढने के लिए भविष्य के वैज्ञानिकों को नई तकनीक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के सोच विचारों हेतु छोड़ते हुए हम इसे यहीं विराम देते हैं.
हम खोजी प्रवृत्ति एवं प्राकृतिक रहस्य को जानने और सुलझाने के प्रयास करने वाले नवयुवक परिवार को इस पर्यटन स्थल को देखने एक बार जरूर देखने हेतु आमंत्रित करेंगे. और पत्थरों के दिल की आवाज़ अपने दिल मे महसूस करें. .