
प्रकृति के अकूत खजाने से जब हम कुछ निकालने की कोशिश करते हैं तब कुछ ऐसे स्थान हमें दिखाई पड़ते हैं जो बरबस ही हमारा ध्यान खींचते हैं. फिर वह नदी, पहाड़ या छोटे-छोटे ऐसे स्टेशन जो कभी लैंप पोस्ट के लिए अपनी पहचान बनाकर रखते थे. आज भी जब ट्रेन इस रास्ते से गुजरती है तब सुनहली पहाड़ की तराई में बना बौरीडांड रेलवे स्टेशन कुछ देर ठहरने के लिए हमें बुलाता है. जब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का निर्माण नहीं हुआ था . ऐसे समय में ब्रिटिश सत्ता द्वारा सीपी बरार नाम के राज्य से प्रशासन का काम संपन्न होता था. जिसकी राजधानी महाराष्ट्र नागपुर में थी. इस समय नागपुर- बंगाल रेलवे लाइन जो कि नागपुर से कोलकाता के लिए डालली गई थी. भाप से चलने वाले रेल इंजन के लिए आवश्यक कोयला एवं रेल स्लीपर जैसे सामान ढुलाई के लिए उन्हें अनूपपुर से चिरमिरी रेलवे लाइन डालने हेतु बाध्य होना पड़ा . दूसरी इस अंचल के विकास की यह रेल लाईन अहम् धुरी भी साबित हुई. सन 1925 -26 में जब अनूपपुर से चिरमिरी के लिए रेल लाइन का कार्य प्रारंभ हुआ उस समय विशाल जंगलों के बीच रेल लाइन बिछाने का कार्य बहुत कठिनाइयां भरा था. छोटे-छोटे नदी , नालों, पहाड़ों के घाट को किनारे से काटकर छोटे-छोटे मशीन एवं मानव श्रम के बलबूते इस लाइन को आगे बढ़ाना एक दुष्कर कार्य था. लेकिन मानव श्रम के सामने प्रकृति भी जब हार मानने लगती है तब पहाड़ियों की तराई में एक छोटा सा रेलवे स्टेशन बौरीडांड जंक्शन अपनी खूबसूरती के साथ बनकर खड़ा हो जाता है. एक ऐसा स्टेशन जो कलेक्टर बनने के लिए होने वाली आई ए एस परीक्षाओं का एक प्रश्न बन जाता है. एक ऐसा स्टेशन का नाम बताइए जो रेलवे जंक्शन है किंतु उस स्टेशन पर यात्रा के लिए टिकट नहीं मिलती. यह प्रश्न लगभग 70 के दशक में पूछा गया था और उसका उत्तर था बौरीडांड जंक्शन.
मनेन्द्रगढ़ से लगभग 10 किलोमीटर दूर बौरीडांड ग्रामीण रेलवे स्टेशन की खूबसूरती हमेशा से लोगों को आकर्षित करती रही है. रेल यात्रा के दौरान इसकी आकर्षक पहाड़ों के बीच उपस्थिति हमें दो पल निहारने और आंखों में इस प्राकृतिक नजारों को कैद कर लेने का आकर्षण पैदा करती है, किंतु कहीं गाड़ी छूट न जाए यह सोचकर ज्यादा देर स्टेशन में रुकना संभव नहीं होता था. बरसात के दिनों में आषाढ़– सावन के महीने में झूम कर बरसते बादल जब इसी सुनहली पहाड़ की ऊंची नीची पहाड़ियों की पगडंडियों के रास्ते से टकराकर अपना रास्ता बनाते हुए नीचे उतरती है , तब ऐसा लगता है मानो श्वेत रपरिधान में सजी छोटी-छोटी परियों का झुंड आसमान से नीचे उतरने का प्रयास कर रही हो और धीरे-धीरे जमीन पर उतरकर पंक्तिबद्ध आगे बढ़ने का प्रयास कर रही हो.
दो-तीन दशक पहले तक आपको इस स्टेशन तक पहुंचाने के लिए जंगल के रास्ते पैदल चलकर पहुंचना ही एक मात्र साधन था. वर्षों पहले इस स्टेशन पर उतरकर लोग इन खूबसूरत वादियों का आनंद लेने और इसी पहाड़ी के पीछे जल स्रोत एवं पवित्र स्थल कर्म घोघा तक पहुंचाने के लिए सुनहरी पहाड़ियों की पगडंडियों का उपयोग करते थे. प्राकृतिक दृश्य के साथ-साथ जंगल के रास्ते पैदल चलकर पिकनिक के लिए पगडंडियों से जाना उस समय युवाओं के शौक का एक अहम हिस्सा था. कई बार ऐसा भी हुआ कि युवाओं के द्वारा कर्मघोंघा पिकनिक करने पहुंचे तो गए किंतु वापसी के समय सूर्यास्त के कारण जंगल का रास्ता भूल गए और पूरी रात जंगली जानवरों का मुकाबला करने के लिए पिकनिक के बचे हुए तेल एवं जेब में रखे रुमाल और गमछे को फाड़ कर तेल में डूबा कर मसाल जलाकर रात काटनी पड़ी और सुबह इसी बौरीडांड स्टेशन पहुंचकर पुनः ट्रेन से मनेन्द्रगढ़ पहुंचे. रास्ते में मिलने वाले ग्रामीण भी मसला देखकर रास्ता बताने के बदले भाग जाया करते थे. भूली – बिसरी स्मृतियों के पन्नों से निकली यह घटनाएं आज एक रोमांचक कहानी बनकर हमारे सामने कई वृत्त चित्र बनती हुई दिखाई पड़ती है. छत्तीसगढ़ के इस पर्यटन रेलवे स्टेशन बौरीडांड में सन 1990 के पूर्व तक सायंकालीन अंधेरा होने से पहले लैंपमैन के द्वारा प्लेटफार्म पर लगे लैम्प पोस्ट में तेल भरने एवं जलाने का कार्य किया जाता था. जिसका दृश्य आज रेलवे के विकास की एक अनकही कहानी का वह हिस्सा है जो उपन्यास की एक विस्मयकारी घटना से किसी ऐतिहासिक कहानी को जोड़ती है. इसी लैंप पोस्ट के नीचे बने रेलवे के सीमेंट की बेंच पर बैठकर यात्रा करने के लिए इंतजार करना आज भी सोच कर हमें रोमांचित कर देता है. 1990 के बाद रेलवे विद्युतीकरण के कार्य ने अब छोटे-बड़े सभी स्टेशनों को प्रकाशमान कर दिया है क्योंकि जब रेल के इंजन, भाप इंजन से बदलकर विद्युत इंजन बनकर चलने लगे तब रेलवे स्टेशन के किनारे रेल लाइनों के साथ-साथ चलने वाली विद्युतीकरण व्यवस्था ने रेलवे के सभी स्टेशन के प्लेटफार्म को भी प्रकाशमान कर दिया. अब लोग यहां देर शाम तक निश्चित घूमना फिरना कर सकते हैं. वास्तव में इस छोटे से रेलवे स्टेशन का आकर्षण जितना दिन में है शाम के बाद भी इसकी लाइटिंग व्यवस्था के बीच जंगल पहाड़ों की खूबसूरती जुगाणुओं की तरह स्टेशन के प्रकाश व्यवस्था का अद्भुत आकर्षण हमें घंटे दो घंटे यही रुककर देखने के लिए बाध्य करता है. इस स्टेशन की जंक्शन बन्ने की कहानी भी 1962 63 में बिश्रामपुर तक बनने वाली रेल लाइन से प्रारंभ होती है जो 1965 में इस स्टेशन को बौरीडांड जंक्शन में बदल दिया.यह जंक्शन जो चिरमिरी को बनना था वह बौरीडांड मे कैसे आया इसकी कहानी के कई पन्ने आज भी रहस्यों से भरे होने के कारण फाड़ दिए गए है.
अब समय के बदलाव के साथ मनेन्द्रगढ़ से बौरीडांड रेलवे स्टेशन तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की पक्की सड़क बना दी गई है. राष्ट्रीय राजमार्ग 43 में मनेन्द्रगढ़ से कटनी मार्ग के लिए आगे निकलने पर आगे मनेन्द्रगढ़ से एक किलोमीटर चलने के बाद सिद्ध बाबा पहाड़ी घाट से पहले वन विभाग के फॉरेस्ट डिपो (जहां इमारती लकड़ियों का भंडारण किया जाता है) इसी डिपो से 100 मीटर पहले पश्चिम दिशा की ओर सड़क पर बौरीडांड 09 किलोमीटर लिखा बोर्ड मिलता है. इस रास्ते में आप पहले चनवारीडांड ग्राम से गुजरते हैं और आगे लगभग 3 किलोमीटर चलने के बाद चनवारीडांड अटल चौक से 50 मीटर आगे बढ़ने पर उत्तर दिशा की ओर जाने वाला रास्ता रेलवे स्टेशन बौरीडांड तक पहुंच कर समाप्त होता है. दो राज्यों को जोड़ने वाले इस बौरीडांड स्टेशन के प्लेटफार्म पर टहलते हुए यदि आप 100 मीटर आगे तक रेल पटरिया के साथ-साथ चलेंगे तब आप छत्तीसगढ़ से जुड़े मध्य प्रदेश की सीमा में पहुंच जाते हैं. रेलवे द्वारा इस आशय का एक बोर्ड भी लगाया गया है. जिसमें लिखा है मध्य प्रदेश सीमा एवं इसी के पीछे लिखा है छत्तीसगढ़ सीमा . मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा रेखा के बीच चहल कदमी करना भी एक नया अनुभव देता है.
. बचपन में शिक्षकों एवं बुजुर्गों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों में यह प्रश्न हमेशा शामिल होता था कि सरगुजा जिले की भौगोलिक संरचना और उसके अंतर्गत आने वाले पहाड़ एवं नदियों के उद्गम की जानकारी. मुझे याद है कि पुराने बुजुर्गों से बात करने पर आपको अपने नगर की नदियों एवं पहाड़ की जानकारी अनपढ़ लोगों से भी मिल जाती थी. गांव के कम पढ़े-लिखे बुजुर्ग भी यह बता देते थे की हंस्दो नदी सोनहत पहाड़ से तथा हसिया नदी सुनहली पहाड़ से निकलती है. आज भी गांव के लोगों को मालूम है कि इसी सुनहली पहाड़ की श्रृंखला की तराई में बसा है यह बौरीडांड रेलवे स्टेशन. सुनहली पहाड़ की यह श्रृंखला संभवत मनेन्द्रगढ़ से जनकपुर जाने वाले मार्ग में पड़ने वाले बिहार पुर के पास बैरागी गांव के पूर्व दिशा में बसे छोटे से सुनहली गांव से प्रारंभ होती है जो आगे बढ़ती हुई ऊंची नीची पहाड़ियों के स्वरूप में बौरीडांड स्टेशन के पास से आगे बढ़ती है. बिहारपुर ग्राम सीमा के आगे कुछ दूर सागौन के जंगलों के बीच दक्षिण दिशा की ओर
भैंसादर्री स्थान से हसिया नदी जलधारा के उद्गम की जानकारी प्राप्त होती है .
हरे भरे जंगलों एवं पहाड़ियों के बीच आप सपरिवार पिकनिक मनाने के लिए बौरीडांड स्टेशन आ सकते हैं. साथ-साथ बच्चों को कुछ ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ प्रकृति प्रेम की शिक्षा दे सकते हैं, जो उनकी स्मृतियों में आजीवन बसी रहेगी. जाने कौन बालक कब कहां रोजीरोटी के जुगाड़ में किस महानगरी जीवन की भाग दौड़ में गुम हो जाए. महानगरी जीवन के भागती- दौड़ती जिंदगी के बीच शांति और सुकून की प्राकृतिक वादियां आपको बुला रही है. इस स्टेशन पर बनने वाले मूंग के बड़े ने इतनी प्रसिद्धि हासिल की है कि आज जगह जगह बौरीडांड के बडे के नाम से कई दुकानें खुल गई है. लेकिन बौरीडांड के बड़े का आनंद आपको बौरीडांड मे ही मिलेगा.आप इनके बीच पहुंचकर प्राकृतिक खुशी के उन फलों को यादगार बनाने के लिए जरूर समेट ले.जो जंगलों और पहाड़ों की तलहटी में बसे इस बौरीडांड स्टेशन पर मिलेगी. और आपकी यादों मे ये हमेशा के लिए बस जाऐंगी.
अगले पड़ाव पर फिर मिलेंगें किसी नए पर्यटन स्थल के साथ.