मनेन्द्रगढ़।एनसीबी। विजय सिंह 4 दशकों से रंगकर्म एवं साहित्य साधना के चितेरे कवि के रूप में उभरकर सामने आए हैं . विज्ञान और कृषि क्षेत्र के ज्ञानी विजय का साहित्य जगदलपुर की वादियों के इर्द-गिर्द घूमता है. यही कारण है कि उनकी रचनाएं प्राकृतिक पहाड़ों, जंगलों की उस परिभाषा को गढ़ते हैं जो सामान्यतः सामाजिक सोच से परे होती है. यही कारण है कि पप्रकाशक ने समकाल की आवाज के अंतर्गत उनके “काव्य संग्रह ” विजय सिंह की चुनी हुई कविताओं” को राष्ट्रीय प्रकाशन श्रृंखला में शामिल कर प्रकाशित किया है .
उक्ताशय के विचार अंचल के वरिष्ठ साहित्यकार एवं वनमाली सृजन केन्द्र के संयोजक बीरेंद्र श्रीवास्तव ने “विजय सिंह की चुनी हुई कविताएं” काव्य संग्रह पर आयोजित पर चर्चा में व्यक्त किए. समकाल पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी समय और काल में उत्पन्न कई साहित्यिक ध्वनियाँ समाज में मौजूद रहती है लेकिन कुछ ध्वनियांँ ऐसी होती हैं जो अपने समय और समाज को सही रूप में प्रतिबंधित करती है विजय सिंह की रचनाएं जीवन मूल्यों के वाहक और प्राकृतिक चेतना के कवि होने के कारण उन्हें इस समकाल के प्रकाशन में स्थान मिला है.
संबोधन साहित्य एवं कला विकास संस्थान कथा बनमाली सृजन केंद्र मनेन्द्रगढ़ के संयुक्त वैचारिक परिचर्चा में अंचल की रचनाकारों और साहित्य चिंतकों ने अपने सारगर्भित विचारों से जन समूह को परिचित कराया. निदान सभागार मनेन्द्रगढ़ में शाम 5:00 से आयोजित “विजय सिंह की चुनी हुई कविताएं” पुस्तक चर्चा का संचालन करते हुए साहित्यकार गौरव अग्रवाल ने कहा की विजय सिंह बस्तर की उस माटी से जुड़े लेखक है जहां शानी एवं लाला जगदलपुरी की रचनाओं ने जन्म लिया है. समकाल की आवाज में उनकी काव्य संग्रह की रचनाएं हमें प्रकृति के नए मूल्यों से पहचान कराती है. विजय सिंह की कविताओं पर चर्चा में अधिवक्ता कल्याण केसरी ने कहा कि प्रकृति चिंतक विजय सिंह की कविताओं में पर्यावरण का स्पष्ट चिंतन दिखाई पड़ता है ऐसे रचना धर्मी व्यक्तित्व का यह पुस्तक प्रकाशन उनका सामाजिक सम्मान है.
इस परिचर्चा में शामिल संजय सेंगर कहा कि विजय बस्तर की मूल चेतना के चितरे कवि है. उनकी रचनाओं में बस्तर का जनजीवन शब्दों से प्रस्तुत होता है. मैंने बस्तर की परिक्रमा की है इसलिए मैं इसे काफी गहराई से महसूस कर रहा हूं . कृषि विज्ञानी पुष्कर लाल तिवारी ने कहा कि देश के जाने-माने साहित्यकार विजय सिंह एक साहित्यकार के अतिरिक्त एक विराट आभामंडल के धनी व्यक्तित्व है. वे बस्तर के हल्बी भाषा के उन वंशजों में से है जिन्होंने बस्तर की जमीन को पढ़ा है प्राकृतिक रंगों का मानवीकरण उनकी रचनाओं की विशेषता है.
पर्यावरण मित्र सतीश द्विवेदी ने विजय सिंह को एक लेखक ही नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण का कवि निरूपित किया उन्होंने कोस्टारिका में जंगलों को बचाने की चेतना से विजय को जोड़ते हुए उनकी कविताओं को जोड़ने का प्रयास किया और कहा की विजय की कविताएं कोस्टारिका की चेतना को भारत में जाग्रत करती है. सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष परमेश्वर सिंह ने कहा कि विजय ऐसे स्वप्न द्रष्टा है जो अपनी कलम और शब्दों में प्रकृति के संवेदनाओं को हम तक पहुंचाने में सक्षम रहे हैं . पेड़ों एवं पहाड़ों के नित्य नए मुंडन के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि विजय ने इसे अपनी कविताओं की संवेदनाओं मे शामिल करने कोशिश की है और पूर्णतः सफल रहे हैं . वरिष्ठ कवि साँवलिया प्रसाद सर्राफ ने कहा कि विजय सिंह की काव्य रचना बस्तर की बोलती माटी के शब्द है. इसी परिपेक्ष में उन्होंने अपनी नवीन कविता” मृत्यु” एवं “चिंतित मां” की प्रस्तुति दी. जिसे बहुत सराहना मिली. समाज सेवी नरेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि नदी पहाड़ और जंगल की भाषा जिस दिन मनुष्य समझने लगेगा. एक नए परिवर्तन की ओर हम चल पड़ेंगे. हम ऐसी दुनिया की ओर जा रहे हैं जहां वन्य जीव आकर हमसे कहेंगे कि इस समाज में मेरे लिए भी भोजन की व्यवस्था की जाए.यह मेरा भी अधिकार है और तब हमारे पास कोई उत्तर नहीं होगा. शिक्षा एवं सांस्कृतिक जगत से जुड़े रचनाकारों के इस कार्यक्रम में प्राचार्य श्री राजकुमार पांडे एवं संगीतज्ञ सरदार हर महेंद्र सिंह ने भी विजय सिंह के पुस्तक पर अपने विचार रखें.
देर शाम तक आयोजित इस पुस्तक चर्चा में बीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव, गौरव अग्रवाल, कल्याण केसरी, संजय सेंगर, पुष्कर लाल तिवारी , सतीश द्विवेदी, परमेश्वर सिंह, सांवलिया प्रसाद सर्राफ, नरेंद्र श्रीवास्तव, राजकुमार पांडे एवं सरदार हरमहेंद्र सिंह की विशिष्ट उपस्थिति के साथ-साथ उपस्थित साहित्य चिंतकों एवं सुधी श्रोताओं ने कार्यक्रम को ऊंचाइयां प्रदान की।