छत्तीसगढ़ के पहले बैरिस्टर, स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर छेदीलाल और कान छिदवाने का प्रसंग….
वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से....{किश्त 195}
बिलासपुर से करीब 28 किलोमीटर दूर एक स्थान है अकलतरा। सिसोदिया, बैस चौहान, ठाकुर परिवार के भी घर थे। सिसोदिया परिवार का एक ही घर था, उसमें दो बड़ी- छोटी बखरी थी।बड़े बखरी में एक-एक पुत्र तीन पुश्तों में होने से छोटा परिवार था,वहीं छोटे बखरी में गरुड़ सिँह के 4 पुत्र थे,पचकोड , विशाल, बजरंग और छोटेलाल,दो बेटियां थीँ कला, उर्मिला। बड़े बखरी के ठा.मनमोहन सिंह को राजा साहब तो छोटे बखरी के विशाल सिंह को दीवान साहब कहाजाता था। पचकोड सिँह का कम उम्र में सोनकुंवर से विवाह हो गया इनकी दो संताने शैशव काल में काल-क़ल वित हो गई,तीसरी बार गर्भ धारण करने पर पूजा- अर्चना की गई, किसी की सलाह पर तीजा के दिन पैदा बालक का कान ही छिदवा दिया और उसका नाम पड गया “छेदीलाल”। यही बालक आगे चलकर छ्ग का पहला बैरिस्टर बना।छेदीलाल का जन्म 1887 मेंअकलतरा (बिलासपुर) में हुआ था।अकलतरा से प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक की पढ़ाई करने बिलासपुर के म्यूनिस्पल स्कूल में प्रवेश लिया, शिक्षा के साथ-साथ वो कार्यक्रमों में गहन रूचि रखते थे, बाल्यकाल से ही उनका झुकाव राजनीति के प्रति था। उन दिनों राष्ट्रीय आंदोलन देश में व्याप्त था, छग सहित बिलासपुर भी प्रभावित था।1901 में माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा के लिये रायपुर आए,उच्च शिक्षा के बाद उच्चतर शिक्षा हेतु वे प्रयाग गये , विशेष योग्यता के कारण उन्हें छात्रवृत्ति मिलती रही, इंग्लैण्ड के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र, राजनीति,इतिहास विषय में बीए ऑनर्स की उपाधि ली। बाद में इतिहास में एमए किया।1913 में बैरिस्टर उपाधि लेकर भारत लौटे। ठा.छेदी लाल बिलासपुर के प्रथम बैरिस्टर और छत्तीसगढ़ के प्रथम व्यक्ति थे जिन्होने विदेश जाकर पढ़ाई की, बैरिस्टर छेदीलाल,गांधीवाद से प्रभावित होकर 1920 के असहयोग आंदोलन में जुट गए। वकालत छोड़ सत्याग्रह, आंदोलनों में भाग लेना शुरू किया,ठा. छेदीलाल राष्ट्रीय जागरण के साथ सामाजिक सेवा करने लगे।1921 में बिलासपुर में दूसरे राजनैतिक सम्मेलन आयोजित किया गया। ठा. साहब ने जनजागृति को प्रोत्साहित करने के लिए भाषण दिया।1921में कांग्रेस समिति का गठन किया गया, जिसमें अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के प्रतिनिधियों में ठा. छेदीलाल भी निर्वाचित किये गए।1927 में ठाकुर साहब स्वराज्य दल की ओर से मध्यप्रान्त के विधायक बने तो 1946 में भी विधायक रहे थे। 25 फरवरी 1932 को सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत बिलासपुर में ठाकुर साहब ने धरना प्रदर्शन किया। पिकेटिंग के आरोप में उन्हें बंदी बनाया गया,बाद में नागपुर, विदर्भ कांग्रेस के संयुक्त सम्मेलन में ठा. छेदीलाल सभापति बनाए गये ।सम्मेलन में दिये गए भाषण की प्रतिक्रिया स्वरूप उन्हें बंदी बनाकर वकालत के लाइसेंस को निरस्त कर दिया गया। 1940-41 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के आरोप में ठा. छेदी लाल सहित अन्य नेताओं को गिरफ्तार किया गया।लेकिन क्रिप्स मिशन आगमन की परिस्थितियों में सत्याग्रहियों की मुक्ति के साथ ठाकुर साहब भी मुक्त हो गए। 9 अगस्त 1942 को बिलासपुर में भारत छोड़ो आंदोलन के कारण छेदीलाल को 3 वर्ष कैद की सजा दी गई।1946 में संविधान निर्मात्री सभा का चुनाव हुआ,वे निर्माण कार्य में अंत तक सहयोग करते रहे, आजादी के बाद भी वे राष्ट्रीय सेवाकार्य में लगे रहे। उन्होंने रामलीला के मंच से राष्ट्रीय रामायण का भी अभिनव प्रयोग किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, क़ानूनविद ठा. छेदीलाल का18 सितंबर 1956 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।
विस में हिंदी में सम्बोधन और
महात्मा गाँधी का समर्थन…
सीपी एंड बरार विधान सभा नागपुर में सितम्बर अक्टूबर के सत्र में ठा. छेदी लाल ने हिंदी में अपना उदबोधन दिया, जबकि उस समय अंग्रेजी में ही सदन चलता था, कुछ सदस्यों ने आपत्ति की,ठाकुर साहब विलायत में पढ चुके हैं अंग्रेजी जानते हैं,फिर भी हिंदी में क्यों..?उन्हें हिंदी में बोलने की अनुमति भी छ्ग के निवासी,तब विधानसभा अध्यक्ष घनश्याम सिंह गुप्ता ने दी थी। विवाद बढा, हिंदी में बोलने और आसंदी की अनुमति को लेकर,समाचार पत्रों में भी टीका टिप्पणी की गईं। ज़ब चर्चा महात्मा गांधी तक पहुंची तो उन्होंने ‘हरिजन’में इस हिंदी बोलने, अनुमति देने की व्यवस्था को ‘ए रिमार्केबल रूलिंग’ के नाम के लेख में सही ठहराया और कहा- इस व्यवस्था का अध्ययन, अनुसरण सभी को करना चाहिये।(दुर्लभ फोटो ठा छेदीलाल और राघवेंद्र राव लंदन में) (पुण्यतिथि पर विशेष)