फॉसिल्स पार्क, रॉक पेंटिंग, घाघरा का मंदिर व जटाशंकरी गुफा दे सकता है, एम.सी.बी. जिले के पर्यटन को नई पहचान- डॉ. विनोद पांडे
इस जिले में पर्यटन एवं पुरातत्व की अनेक संभावनाएं, यह जिला पर्यटन के क्षेत्र में विशेष स्थान बना सकता है।
मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले का क्षेत्र जो प्राचीन काल में दण्डकारण्य व दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाने वाला तथा जंगलों पहाड़ों व नदियों के बीच कठिन भौगोलिक स्थिति होने के बावजूद पर्यटन और पुरातत्व के क्षेत्र में जिले की अपनी एक विशेष पहचान है। राज्यपाल शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित डॉ- विनोद पांडेय जिला नोडल अधिकारी पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में प्रभु श्री राम के चरण सर्वप्रथम एम.सी.बी. जिले के सीतामढ़ी हरचौका में ही पड़े थे तथा प्रभु राम के वनवास काल का प्रथम पड़ाव भी यहीं पर था। जिले में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर की अनेक पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक स्थल है जैसे गोंडवाना फासिल्स पार्क, शैल चित्र, घाघरा का मंदिर, जटाशंकर गुफा व सती मंदिर है जिसे पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है क्योंकि यह नया जिला है जिला गठन के बाद कलेक्टर महोदय के निर्देश पर लगातार पर्यटन के क्षेत्र को विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है।
फॉसिल्स पार्क – मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के जिला मुख्यालय मनेंद्रगढ़ से 1.5 किलोमीटर दूर पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास हसदेव नदी के तट पर देश का पांचवा तथा छत्तीसगढ़ राज्य का पहला मरीन राष्ट्रीय गोंडवाना फासिल्स पार्क स्थित है। जो 29 करोड़ वर्ष पुराना है। सबसे पहले मरीन गोंडवाना फॉसिल्स की खोज 1954 में एस. के. घोष ने की थी। बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट आफ पैलियो बॉटनी लखनऊ 2015 में इस क्षेत्र का सर्वे किया तथा इसे संरक्षित करने की बात कही। यहां अनेक समुद्री जीव एवं वनस्पति के प्रमाण है जो देखरेख के अभाव में समाप्त होते जा रहे हैं। यहां करोड़ों वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में समुद्र रहा होगा जो प्राकृतिक व भूगर्भीय घटना के कारण यहां से समुद्र के हटने पर उन जीवों के अंश पत्थरों के मध्य दबकर आज भी यथावत बने हुए हैं। इन्हें विकसित व संकलित करने वन विभाग द्वारा प्रयास किया जा रहा है फॉसिल पार्क मनेंद्रगढ़- चिरमिरी – भरतपुर को राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है।
रॉक पेंटिंग (तिलौली) जनकपुर एम.सी.बी. जिला मुख्यालय मनेंद्रगढ़ से लगभग 100 किलोमीटर दूर कठौतिया – केल्हारी – बहरासी- कुंवरपुर होकर तिलौली पहुंचा जाता है। तिलौली से लगभग 1 किलोमीटर दूर पहाड़ी के ऊपर अत्यंत प्राचीन गुफाएं हैं जिसमें रॉक पेंटिंग (शैलाश्रय) बने हुए हैं। इन प्राकृतिक चट्टानों में मानव आकृति, हिरण, कमल का फूल का अंकन किया गया है। साथ ही इन शैलाश्रय को बनाने में लाल और नीले रंग का प्रयोग किया गया है। यह पर्यटकों व शोधार्थियों के लिए काफी उपयोगी हो सकता है।
जटाशंकर गुफा – मनेंद्रगढ़ विकासखंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत बिहरपुर के बैरागी से 12 किलोमीटर दूर घनघोर जंगल में पहाड़ी के नीचे स्थित प्राचीन शिव मंदिर जटाशंकर है। दूसरा रास्ता सोनहरी से चपलीपानी होते हुए है, जहां दुर्गम मानचित्र को पार कर पहाड़ी के अंदर सकरा होने के कारण गुफा में 50-60 फीट से ज्यादा घुटनों व कोहली के सहारे चलकर गुफा के अंदर पहुंच जाता है । गुफा प्राचीन है एवं भगवान शिव की मूर्ति के ऊपर प्राकृतिक रूप से जल की बूंदे कई वर्षों से निरंतर गिरती जा रही है। पहुंच मार्ग न होने के कारण श्रद्धालुओं को काफी परेशानी होती है।
घाघरा का मंदिर (जनकपुर) मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर जिले के जिला मुख्यालय मनेंद्रगढ़ से लगभग 130 किलोमीटर दूर जनकपुर होकर घाघरा ग्राम पहुंच जाता है। घाघरा ग्राम के निर्जन स्थान पर बना हुआ तराशे गए नक्काशीदार पत्थरों से बने इस मंदिर में पत्थरों को जोड़ने में किसी भी वस्तु का प्रयोग नहीं किया गया है। पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर मंदिर का आकार दे दिया गया है। मंदिर के अंदर कोई मूर्ति नहीं है भूकंप या भूगर्भी घटना के कारण यह एक तरफ झुक गई है। यह मंदिर दसवीं शताब्दी का माना जाता है । कुछ इतिहासकार इसे बौद्ध कालीन मंदिर मानते हैं, जबकी स्थानीय लोग शिव मंदिर मानते हैं। तथा विशेष अवसरों पर पूजा अर्चना करते हैं।
सती मंदिर (बरतुंगा)- जिला मुख्यालय मनेंद्रगढ़ से लगभग 35 किलोमीटर बरतूंगा कालरी (चिरमिरी) में पहाड़ी नाली के समीप एक प्राचीन मंदिर है। यह पूर्ण निर्मित नहीं है। स्थानीय जनों द्वारा इसे सती मंदिर कहा जाता है | किसी कारण से प्राचीन समय में इसका निर्माण कार्य पूर्ण नहीं हो सका। खंडहरनुमा अपूर्ण मंदिर के बारे में स्थानीय जनों को कोई विशेष जानकारी नहीं थी कि इसका निर्माण किसने किया। इस मंदिर के दो भाग है थे । प्रमुख मंदिर के बीच एक ऊंचा चौकोर चबूतरा था। मंदिर की नीव अधूरी थी। मंदिर के पास पत्थरों का ढेर था । पत्थरों में चित्र उभरे हुए है। इस मंदिर का सबसे बड़ा पत्त्थर 12 फीट लंबा और दो फीट मोटा है। एक देवी की मूर्ति रखी हुई है संभवत काले रंग की है मुंह कुछ चपटा दिखाई देता है। इस मंदिर की कुछ दूरी पर एक शिव मंदिर है | इस स्थल पर कोयला खदान खुल जाने के कारण इसे अन्यत्र अस्थाई जिला पुरातत्व संग्रहालय बनाकर विस्थापित किया जा रहा है। यहां बड़ी संख्या में प्राचीन काल के पत्थरों के अवशेष हैं जिनमें मानव व देवी – देवताओं की आकृति बनी हुई है। इस जीर्ण-शीर्ण सती मंदिर के निकट एक शिलालेख प्राप्त हुआ था जो संभवत 1351 ई का था | जिसमें गोविंद चूड़ा देव का प्रशस्ति गान था ।
इस जिले में पर्यटन एवं पुरातत्व की अनेक संभावनाएं, यह जिला पर्यटन के क्षेत्र में विशेष स्थान बना सकता है।