छत्तीसगढ़

व्यवसायी,मेहमान नवाज डूंगाजी से इंजिनियर दुबे परिवार तक

वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से....{किश्त 201}

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पारसी समुदाय ने भारत के विकास में महत्वपूर्ण योग दान दिया। व्यापार,उद्योग और शिक्षा के क्षेत्र में पारसी अग्रणी रहे है।टाटा,गोदरेज, वाडिया जैसे प्रसिद्ध उद्योग पतियों ने अर्थ व्यवस्था को सशक्त बनाया,जमशेदजी टाटा ने भारत में औद्योगिक क्रांति की नींव रखी,जबकि होमीभाभा ने भारत परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की शुरुआत की। पारसी समुदाय की उद्यमशीलता,परोपकार की भावना ने सामाजिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।उनकी विरासत आज भी देश के हर कोने में महसूस की जा सकती है, छ्ग में पारसी परिवार खुदादाद डुंगाजी और उनके बेटे नौशीरवन डूंगाजी की चर्चा जरुरी है।उन्नीसवीं सदी में 1970 के आसपास सूखे और अकाल तथा नागपुर- राजनांदगाव रेललाईन बिछाने की शुरुआत में गुजराती, जैन, पारसी,खोजा, मेमन, खोजा,दाऊदी बोहरा आदि काम और व्यवसाय की तलाश में छ्ग आये थे। सम्भवत: खुदादाद डूंगाजी छ्ग आये और राजनांदगाव के पास एक गांव में जमीन खरीद कर खेती प्रारम्भ की फिर छ्ग में एक-एक कर 22 राईस मिल शुरू की और देशी-विदेशी शराब, ट्रांसपोर्ट व्यवसाय भी शुरू किया।बाद में जीई रोड में ज़ब ईसाई समुदाय चर्च खाली करके जा रहे थे तब वहाँ की सारी जमीन खरीद ली,तब साइंस कॉलेज के पास ही ईसाई कब्रिस्तान भी था,कुछ पादरी रुक भी गये,वह चर्च आज भी है। वहीं एक लाख फिट में खुदादाद डूंगाजी ने एक बंगला भी बनवाया। एक बार पंडित रविशंकर शुक्ल आजादी के पहले जेल गये तब डूंगाजी ने उन्हें मददभी की, ज़ब शुक्ल जेल से बाहर आये तब तक खुदा दादजी का निधन हो चुका था,बाद में शुक्ल के अनुरोध पर खुदादाद के पुत्र नौशीर वन ने आर्युवेदिक कॉलेज हेतु जमीन भी दी, नारायण प्रसाद अवस्थी ने भी जमीन दी और भविष्य में नारायण प्रसाद के नाम कॉलेज और खुदादाद डूंगाजी के नाम अस्पताल का नामकरण हुआ, मेडिकल कॉलेज भी (नई बिल्डिंग रायपुर जेल के सामने बनने के पहले तक)यहीं लगता था। बाद में सीलिंग एक्ट लागू हुआ बची 8/9 एकड़ जमीन में ही डूंगाजी कॉलोनी बनी।

बोतल हॉउस भी कभी चर्चा में रहा……

डूंगाजी परिवार शराब के व्यवसाय से जुडा था, खुदा दाद के पुत्र नौशीर वन ने अपने जीई रोड के बँगले में एक बोतल हॉउस भी बन वाया था, जिसमें इंजेक्शन की पुरानी छोटी शीशी,दवा से लेकर देशी-विदेशी शराब की बोतलों से फ्लोरिंग, दीवारें, छत भी बनाई गईं थी।अभी के अनुपम गार्डन के ठीक पीछे कभी बंगले ने वैभवशाली समय भी देखा था।इसके मालिक कीदोस्ती भारत के बड़े राजनीतिक/राजपरिवारों, नौकरशाहोँ से थी। कहते हैं कि आज से चालीस 50/60 सालपहले शहर या यूं कहें आसपास का कोई बड़ा शख्शियत नहीं बचा हो जिसने इस बंगले की मेहमान नवाजी को ना देखा हो। डूंगाजी शराब के ठेकेदार थे। उस दौर में शराब के ठेकेदारों को इज्जत की नजरों से देखा जाता था। सारंगढ़ के तब राजा नरेश चन्द्र से भी उनकी आत्मीय सम्बन्ध थे।विदेश से पानी जहाज में लाद कर वे एक कार रॉयल रोल्स लेकर आए थे।रायपुर के लिए अपने जमाने की पहली कार थी। उनकी सभी पार्टियों में शराब भी परोसी जाती थी। शराब की बोतलों के साथ दवाईयों आदि की बोतलें मिलाकर बंगले में ही स्थित एक बड़े से पेड़ के ऊपर बोतल हाउस बनवाया था।आंधी तूफान में बोतल हाउस गिर गया तब उन्होंने लगभग 10 फीट ऊंचा नया बोतल हाउस नीचे जमीन पर बनवाया था। सामने फौव्वारा भी बनवाया था। 80-85 के करीब तक वह बोतल हाउस सही सलामत दिखता था। किंतु हमने ही उसकी कद्र नहीं की। उचित रख रखाव के अभाव में हमने खुद ही उसे मिटा डाला.. कालोनी में ही एक पुराना ऐतिहासिक कुआँ भी है। यहीं से डूंगाजी के बंगले जाने का रास्ता है।आसपास के लोग इसे कटही बंगला भी कहते थे । कटही बंगला इसलिए कहा जाता है कि यहां बबूल जैसे कांटेदार पेड़ हुआ करते थे। आजकल बंगले के पीछे विद्युत मण्डल का विशाल काय भवन बन गया है। यहां से भी बंगले तक जाने का रास्ता हुआ करता था।

पारिवारिक पृष्ठभूमि..

खुदादाद डूंगाजी के पुत्र नौशीरवन का विवाह रोशन से हुआ था। इनकी मित्रता श्यामाचरण शुक्ल, पद्मिनी शुक्ल से थी।नौशीर- रोशन की 4 बेटियां थी उनमें एक थी शिरीन।उनका विवाह इंजिनियर मंगल दुबे सेहुआ था। दरअसल मंगल दुबे, सागर से एम टेक करके रायपुर इंजिनियरिंग कॉलेज में लेक्चरार हो गये थे, वे डूंगाजी कालोनी में रहते थे, उन्हें शिरीन अच्छी लगी और दोनों का विवाह हो गया। अजीत जोगी भी आईएएस /आईपीएस होने के पहले,मंगल दुबे के साथ ही पढ़ाते थे।जाहिर है कि जोगी-दुबे परिवार में अच्छी मित्रता थी। वैसे बहुत कम लोगों को पता है कि मंगल दुबे के पिता आईएएस थे, एम पी दुबे 10 जुलाई19 52 से 17 मई 1954 तक रायपुर के पांचवे कलेक्टर रहे।स्व डूंगाजी के दामाद स्व मंगल दुबे भी शहर की हस्ती हुआ करते थे।शासकीय इंजीनियरिंग कालेज के प्रोफेसर थे। कहते हैं कि उनके साथ बैठना भी आईएएस अफसर अपनी खुशनसीबी मानते थे। अभी दुबे परिवार डूंगाजी कालोनी में रहता है और पंडित रविशंकर शुक्ल विश्व विद्यालय के पीछे ‘रेडिन्ट वे स्कूल’ चलाता है।जिसकी स्थापना शिरीन दुबे ने 19 88 में की थी,अभी उसका संचालन उनके पुत्र समीर तथा बहु भावना दुबे कर रहे हैं।( ऊपर फोटो- खुदा दाद डूंगाजी, पुत्र नौशीर, बहु रोशन, मंगल दुबे के पिता आईएएस एम पी दुबे, माँ भाग्यवती और मंगल दुबे तथा श्रीमती शिरीन दुबे )


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