भंगाराम माई की अदालत में देवी-देवताओं को सुनाई जाती है सजा
वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से..{किश्त 196}
आमतौर पर लोग देवी- देवताओं से अपने मन की मुराद पूरी करने के लिए मन्नत करते हैं,कुछ लोग डरते भी हैं,और कुछ श्रद्धा – भाव के साथ उनकी पूजा करते हैं। लेकिन क्या कभी सुना है कि देवी-देवताओं को अदालत लगाकर सजा सुनाई जाती है। पर छ्ग में एक ऐसी अदालत है जहां बकायदा कचहरी बैठाकर मन्नत पूरी ना करने वाले देवताओं को उनके गुनाह के मुताबिक सजा सुनाई जाती है।जज की भूमिका अदा करती हैं 9 परगना की अधिष्ठात्री भंगाराम देवी आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ रहस्य-रोमांच से भरपूर है। कदम-कदम पर चौंकाने वाले नजारे मिल जाते हैं। यहां की आदिवासी परं पराएं ना केवल रहस्यमयी हैं, बल्कि वे आपको किसी दूसरी दुनिया में ले जाने के लिए उत्सुक रहती हैं। राजधानी रायपुर से 200 किमी दूर….राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर आगे बढ़ते हुए नक्सल प्रभावित बस्तर में प्रवेश कर जाते हैं… कांकेर जिले को पार करने के बाद आती है केशकाल घाटी। सर्पीली, मनमोह लेने वाली केशकाल घाटी पार करते ही बाएं तरफ मुड़ रही सड़क पर एक बोर्ड आपका स्वागत करता है… माई भंगाराम मार्ग ….यहीं से 2 किलो मीटर अंदर जाने के बाद आता है
वह स्थान, जहां हर वर्ष लगती है ग्राम देवताओं की अदालत… बस्तर के दूर-दूर तक फैले गांवों से आदिवासी समुदाय के लोग अपने- अपने कंधों पर अपने देवी-देवाताओं को लेकर अदालत में पहुंचते हैं। कई दिन तक चलने वाले इस आयोजन में दो दिन बड़े खास होते हैं। अधिष्ठात्री देवी भंगाराम उन्हें सजा सुनाती है। भंगाराम देवी की अदालत में पेशी के दौरान देवी-देवताओं को दोषी ठहराए जाने पर निलंबन,मान्यता खत्म करने के अलावा मौत की सजा भी दी जाती है। छोटी सजा के तौर पर अर्थदंड भी लगाया जाता है। केशकाल कस्बे के घने जंगलों में हर साल भादो जात्रा उत्सव मनाया जाता है। पूरे बस्तर से 9 परगना में स्थापित एक हजार से भी अधिक ग्राम देवी-देवताओं को लाया जाता है।पहले दिन तो देवी-देवताओं का स्वागत सत्कार किया जाता है,साथ ही अंचल के लोग अपने गांव की भलाई के लिए यहां बुरी आत्माओं का उतारा करते हैं,ताकि साल भर उनके यहां खुशहाली बनी रहे। ये क्रम शाम से शुरू होता है और रात तक जारी रहता है। इस दौरान यहां महिलाओं का आना मना होता है।ऐसी मान्यता है कि महिलाओं पर बुरी आत्माएं जल्दी असर करती हैं। भादो महीने के आखिरी शनिवार को सभी देवी-देवताओं का आना जरूरी होता है,भंगाराम देवी की अदालत में सबकी पेशी होती है। इसके पहले 6 शनिवार तक यहां लगा तार पूजा होती है।आयोजन में देवी-देवताओं को परंपरानुसार पद और प्रतिष्ठा के हिसाब से स्थान दिया जाता है, साथ में प्रतिनिधि के रूप में पुजारी,गायता, सिरहा ग्राम प्रमुख, मांझी, मुखिया और पटेल पहुंचते हैं। यहां होने वाले आयोजन में एक बात खास है कि यहां बिना मान्यता के किसी भी नये देव की पूजा नहीं की जा सकती है। जब ग्रामीणों की मांग पर ही नये देवताओं को मानने की मान्यता दी जाती है। यहां सजा पाने वाले देवी-देवताओं की वापसी का भी प्रावधान है, लेकिन यह तब ही संभव है जब वे अपनी गलतियों को सुधारते हुए भविष्य में लोक कल्याण के कार्यों को पहले करने का वचन देते हैं। यह वचन सजा पाये देवी-देवता संबंधित पुजारी के सपने में आकर देते हैं।भंगाराम देवी की इस अदालत में देवी- देवताओं की पेशी के लिए उन्हें मानने वाले सैकड़ों किलोमीटर पैदल सफर तय कर पहुंचते हैं। कई तो ऐसे इलाकों से आते हैं,जहां ना तो बिजली की सुविधा है, ना ही सड़कों की व्यवस्था। लेकिन इसके बाद भी तय समय के कारण अदालत में आना ही पड़ता है।नहीं तो इंसाफ के लिए एक साल और इंतजार करना पड़ता है…!