छत्तीसगढ़

अजीब तरह से गुजर रही है कुछ ऐसी जिंदगी….. सोचा कुछ,किया कुछ, हुआ कुछ,मिला कुछ….

Ghoomata Darpan

अजीब तरह से गुजर रही है कुछ ऐसी जिंदगी..... सोचा कुछ,किया कुछ, हुआ कुछ,मिला कुछ....

प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के नाम एक रिकार्ड बन गया है। चुनी हुई सरकार (मुख्यमंत्री गुजरात) से लेकर भारत के प्रधानमंत्री तक का 21 साल का सफर पूरा करके वे 22 वें साल में 7 अक्टूबर को प्रवेश कर गये हैं। 7 अक्टूबर 2001 को उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री का पद सम्हाला था वहीं 22 मई 14 तक वे इस पद पर अनवरत रहे हालांकि उनके मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड उन्हीं की पार्टी के डॉ. रमन सिंह ने 15 साल लगातार सीएम बनकर छत्तीसगढ़ में तोड़ दिया है। अब तो लम्बे समय तक सीएम बने रहने का रिकार्ड (लगातार नहीं)मप्र के सीएम शिवराज सिंह के नाम हो गया है।बहरहाल 26 मई 2014 को नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने और वे निरंतर हैं। वैसे उनका प्रधानमंत्री रहने का रिकार्ड बनाने में अभी काफी समय लगेगा।उन्हें पीएम बने साढ़े 9 साल से अधिक समय हो चुका है।जबकि देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लालनेहरू 6130 दिन, इंदिरा गांधी 5829 दिन, डॉ. मनमोहन सिंह 3656 दिन,अटल बिहारी वाजपेयी 2272 दिन, राजीव गांधी1857 दिन,पी.वी. नरसिम्हा राव 2229 दिन रहे। जहां तक मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री रहने की बात है तो कई नेता भी रह चुके हैं जो पहले मुख्यमंत्री थे बाद में प्रधानमंत्री बने। मोरारजी भाई देसाई 1655 दिन मुख्यमंत्री तथा 856 दिन प्रधानमंत्री रहे,पी.पी. नरसिम्हा राव 468 दिन मुख्यमंत्री तथा 1761 दिन प्रधानमंत्री रहे, विश्वनाथ प्रताप सिंह 739 दिन मुख्यमंत्री, 346 दिन प्रधानमंत्री, इस तरह सक्रिय रूप से सत्ता में 1082 दिन पद पर रहे, एच.डी. देवेगौड़ा 538 दिन मुख्यमंत्री, 324 दिन प्रधानमंत्री कुल 862 दिन, चौधरी चरण सिंह 553 दिन मुख्यमंत्री तथा178 दिन प्रधानमंत्री कुल 723 दिन रहे तो लालबहादुर शास्त्री 581,आई के गुजराल 332,चंद्रशेखर 223 तथा गुलजारी लाल नंदा 26 दिन बतौर प्रधानमंत्री रहे।वैसे नरेंद्र मोदी अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में अचानक नोटबंदी,नया जीएसटी लागू करने, कोरोना महामारी काल में करोड़ों के बेरोजगार होने, देश के आर्थिक हालात बिगड़ने , विपक्ष से अच्छे संबंध नहीं, mसंघीय व्यवस्था में चुनी हुई राज्य सरकारों से बिगड़ते रिश्ते,पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध नहीं होने,अपनी ही पार्टी में एकला चलो (अमित शाह को छोड़कर) की नीति के कारण भी जाने जाते रहे हैं।

डॉ रमन ने टिकट के लिये
दबाव नहीं बनाया….?

अजीब तरह से गुजर रही है कुछ ऐसी जिंदगी..... सोचा कुछ,किया कुछ, हुआ कुछ,मिला कुछ....

छत्तीसगढ़ मेंअविभाजित मप्र के सीएम रहे श्यामचरण शुक्ला के बारे में कहा जाता था कि वे अपने समर्थकों को टिकट दिलाने भरपूर प्रयास करते थे,बाद में उनके बेटे अमितेश शुक्ला के लिये अपनी राजिम की सीट छोड़ दी… कारण जो भी रहा हो पर यदि छ्ग राज्य बनते समय श्यामा भैया विधायक होते तो अजीत जोगी की जगह सीएम बन सकते थे? अब दूसरे सीएम रहे मोतीलाल वोरा की बात कर लें… वे हर विधानसभा चुनाव में अपने कुछ समर्थकोँ के लिये टिकट मांगते थे पर आख़री दौर में अपने बेटे अरुण वोरा के लिये ही अड़ जाते थे… समर्थकों के लिये दबाव बनाने से पीछे हो जाते थे। छ्ग के पहले सीएम, पूर्व नौकरशाह अजीत जोगी जरूर अपने समर्थकों को टिकट दिलाने अड़ जाते थे।मप्र और छ्ग में भी… पर बाद में पुत्र मोह के चलते वे इस हद तक चले गये कि उन्हें कॉंग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाना पड़ा… उनकी पत्नी डॉ रेणु जोगी और पुत्र अमित जोगी विधायक बन चुके हैं पिछली बार तो उन्होंने अपनी बहु ऋचा जोगी को भी चुनाव समर में उतार दिया था। अब 15 साल भाजपा के लगातार सीएम बनने का रिकार्ड बनाने वाले डॉ रमन सिंह की बात कर लें.. पहले बतौर सीएम उन्होंने अपने समर्थकों को टिकट दिलवाया वहीं अपने बेटे अभिषेक सिंह को भी सांसद बनवा दिया था यह बात और है अभिषेक कि दूसरी पारी शुरू नहीं हो सकी? इस बार डॉ रमन सिंह तथा उनके भांजे विक्रम सिँह विस चुनाव लड़ रहे हैं तो उनके सीएम कार्यकाल में कलेक्टरी छोड़कर भाजपा में शामिल होनेवाले ओ पी चौधरी को टिकट मिली है तो रिटायर आईएएस नीलकंठ टेकाम को भी टिकट दिलाने में डॉ रमन की भूमिका रही पर प्रमुख सचिव पद से रिटायर गणेश शंकर मिश्रा को टिकट दिलाने डॉ साहब ने लगता है दबाव नहीं बनाया… नहीं तो छत्तीसगढ़िया फ़िल्म कलाकार अनुज शर्मा को टिकट नहीं मिलती…?भाजपा के कार्यकाल में अनुज को पद्मश्री मिला, पत्नी को रविशंकर विवि में अंग्रेजी विभाग में प्राध्यापक की नौकरी मिली…. खैर डॉ रमन के कवर्धा में वार्ड मेंबर (तब एसडीऍम), डोंगरगांव से उप चुनाव में विधायक, राजनांदगांव में कलेक्टर आदि के पद पर रहे आईएएस जीएस मिश्रा,डॉ रमन सिँह के काफ़ी करीबी अफसर माने जाते हैँ, उन्ही के कहने पर रिटायर होने के बाद भाजपा में शामिल हो गये पर उन्हें भाजपा ने टिकट देने के योग्य भी नहीं समझा…जबकि जी एस मिश्रा काम करनेवाले अफसर के रूप में जाने जाते रहे हैं, रायपुर निगम प्रशासक के रूप में 5 माह के कार्यकाल में 5000 अवैध कब्जे हटाने के का रण बुलडोजर प्रशासक कहलाते थे,राजनांदगांव, जगदलपुर के सौन्दर्यीकरण, बालविवाह रोकने,स्वच्छता अभियान, गाँधी के संदेश को आमजनों तक पहुँचाने,डॉ रमन के गोठ शुरू करने सहित कई राष्ट्रीय,अंतराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मनित जीएस मिश्रा को स्थानीय होने के बाबजूद धरसींवा से प्रत्याशी नहीं बनाया,वहीं पहले भाटापारा, फिर बलौदाबाजार में विरोध के चलते अनुज को धरसींवा में थोप दिया गया? वैसे डॉ रमन ने भी तो जी एस मिश्रा के लिये दबाव नहीं बनाया यह तो तय है …?

भाजपा के सभी बड़े नेता
प्रत्याशी,तो प्रचार कौन करेगा….

अजीब तरह से गुजर रही है कुछ ऐसी जिंदगी..... सोचा कुछ,किया कुछ, हुआ कुछ,मिला कुछ....

भाजपा के घोषित 85 प्रत्याशियों में पूर्व सीएम, पूर्व मंत्री, भाजपा अध्यक्ष, भाजपा के 3 महामंत्री 4सांसद, एक केंद्रीय राज्य मंत्री, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री सभी प्रत्याशी बनाये गये है तो क्या चुनावी केम्पन कौन सम्हालेगा, क्या बाहरी नेता….? कुल मिलाकर आदिवासी समाज से 30अनुसूचित जाति से 10पिछड़ा वर्ग से 31प्रत्याशी है।सूची में अब तक 14महिलाओं को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है। 43 ऐसे प्रत्याशियों को मैदान में उतारा गया है जो पहली बार भाजपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेंगे। 50 वर्ष से कम आयु के 34 युवा प्रत्याशी हैं।भाजपा की सूची में एक तरफ जहां बड़े पैमाने पर युवा और नए प्रत्याशी हैं,वहीं अनुभवी और दिग्गज नेताओं को भी पार्टी ने मैदान में उतारा है जिसमें कुछ तो पिछला चुनाव हजारों मतों से हारे हैं इसमें रमन सरकार के 17 पूर्व मंत्री भी शामिल हैं।भाजपा ने सरगुजा से सांसद व केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह को भरतपुर सोनहत से चुनावी मैदान में उतारा गया है।वहीं सांसद गोमती साय को पत्थल गांव से मौका दिया गया है। इसके अलावा सांसद और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरूण साव लोरमी विधानसभा से मैदान पर होंगे। वहीं भाजपा के महामंत्री ओपी चौधरी, विजय शर्मा,केदार कश्यप भी शामिल हैं।जबकि पहली सूची में विजय बघेल को पाटन से मैदान में उतारा जा चुका है। मतलब चार सांसद विधायक बनने की तैयारी में हैं।अब पते की बात ये है कि चुनाव जीत गए तब तो ठीक है कि विधायक बन जायेंगे। हार गए तो निश्चित मानकर सांसद के लिए टिकट मिलना भी नहीं हैं और मांग भी नहीं सकते? मतलब बोरिया बिस्तर सिमटना तय है।

और अब बस…

0मोदी सरकार ने गंगाजल पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगा दिया है।
0कवर्धा और बेमेतरा में विस चुनाव में वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना है ?
0पितृपक्ष के बाद नवरात्रि में कांग्रेस प्रत्याशियों की घोषणा होना तय है ?


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