आध्यात्मिक कहानियां में कृष्ण कन्हैया के मुख में उनकी माता यशोदा ने जिस ब्रह्मांड को देखा था इसी ब्रह्मांड में बसा है हमारा सूर्य और यह हमारा सौरमंडल. जिसमें नौ ग्रह अपने अपने परिक्रमा राह में सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहे हैं. उसी में एक ग्रह हमारी पृथ्वी भी है जो कई रहस्यों से भरी हुई है इसी रहस्य का एक अध्याय खुलता मनेन्द्रगढ़ में. पृथ्वी पर जीवन उत्पत्ति का वैज्ञानिक दस्तावेज “गोंडवाना मेरिन फासिल्स” अर्थात गोंडवाना समुद्री जीवाश्म मनेन्द्रगढ़ में स्थित है आईए मेरी लेखनी से इसी पर्यटन विषय पर पूर्व में लिखे पर्यटन केंद्र 2 के लेख से आगे की चर्चा प्रारंभ करते हैं.
वैज्ञानिक जानकारी के अनुसार पृथ्वी का निर्माण लगभग साढे चार अरब वर्ष पूर्व हुआ था लेकिन इस पृथ्वी पर जीवन प्रारंभ में मौजूद नहीं था गर्म तपती पृथ्वी के अलग-अलग स्वरूप में जब ठंडापन आया होगा तब धीरे धीरे पृथ्वी की इस हलचल में समुद्र का निर्माण हुआ होगा. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आज से लगभग 50 से 100 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर समुद्र का निर्माण हुआ ,जो धरती के नीचे की टेक्टानिक प्लेट के खिसकने के कारण ही यह संभव हुआ . जो पृथ्वी के साथ-साथ पानी को भी अलग-अलग खंडो में बांट देती है. पृथ्वी की आयु ब्रह्मांड की आयु से लगभग एक तिहाई है. प्रारंभिक वातावरण में पृथ्वी पर कोई ऑक्सीजन अर्थात प्राणवायु नहीं थी. समय के बदलाव में धीरे-धीरे परिवर्तन हुआ और समुद्र की उत्पत्ति के बाद ऑक्सीजन का निर्माण भी प्रारंभ हुआ जो जीवन को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी था.
पृथ्वी के जीवन को वैज्ञानिकों ने कई काल खंडो में विभाजित किया है जिसमें पेलियोजोइक और मिजोजोइक कालखंड जीवन की उत्पत्ति के कालखंड माने गए. कई करोड़ वर्ष पुराने जीवन उत्पत्ति के कालखंड में पृथ्वी पर जीवन उत्पत्ति एवं नष्ट होने के भु प्रमाण मिलते रहे है. वर्तमान प्रजातियां 10 से 14 मिलियन वर्ष पुरानी कही जाती है पुराने जीवन की उत्पत्ति का काल 55 करोड़ वर्ष पुराना माना गया है, जो प्रारंभ होकर समाप्त हो गया. टेक्ट्रॉनिक प्लेट के आपसी टकराहट से पृथ्वी पर देश और समुद्री सीमाएं समय-समय पर बनती बिगड़ती रही और इसी में भारतवर्ष की सीमाएं भी शामिल थी. जिसे अफ्रीका महाद्वीप का एक हिस्सा भी माना जाता है.
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भारत की सीमा में करोड़ों वर्ष पहले एक टेथिस काल्पनिक महासागर का फैलाव था. जो पृथ्वी के उत्तरी 30′ से लेकर भूमध्य रेखा तक फैली हुई थी. इसी महासागर की एक धारा का फैलाव मनेन्द्रगढ़ तक था. यह टेथिस महासागर एक प्राचीन महासागर था जो हिंद महासागर के विकास के 250 से 300 मिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में था. यह महासागर पूर्व से पश्चिम की ओर उन्मुक्त और गोंडवाना तथा लारेशिया के महाद्वीपों को अलग करता था वैज्ञानिकों द्वारा आल्पस एवं अफ्रीका से प्राप्त समुद्री जीवाश्म के रिकॉर्ड का उपयोग करके एक विशाल महासागर की उपस्थिति का अनुमान लगाया गया है. पृथ्वी के निर्माण के प्रर्मियन काल में 28 करोड़ वर्ष पहले के समुद्री सीमा के हिस्से में मनेन्द्रगढ़ का यह हिस्सा भी शामिल रहा होगा. ऐसा अनुमान इसमें रहने वाले प्राथमिक जीवन के समुद्री जीव लगभग 28 से 29 करोड़ वर्ष पहले प्राकृतिक बदलाव से मनेन्द्रगढ़ तक आ पहुंचा था और उस काल के जीवन का प्रमाण यहां हिमनद के मौसमी परिवर्तन में बर्फ के बीच दबकर यथावत रह गए. जो जीवन के साक्ष्य के रूप में पत्थरों के बीच दबे हुए यथावत आज भी पाए जा रहे हैं. भारतवर्ष के छत्तीसगढ़ राज्य के मनेन्द्रगढ़ नगर एवं आसपास के गांव को घेर कर चलने वाली हसदो नदी की धारा के दाहिनी ओर मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी रेलवे पुल के नीचे पाई गई है. यह पुल से उत्तरी दिशा की ओर लगभग 1 किलोमीटर दूर हसिया एवं हंसदो नदी के मिलन स्थल तक फैली हुई है .
छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ में पाया जाने वाला गोंडवाना मरीन फॉसिल्स की जानकारी मैं अपने पूर्व पर्यटन लेख क्रमांक 2 में “समुद्री धरातल पर बसे नगर मनेन्द्रगढ़” में पहले ही दे चुका हूं किंतु इस मेरीन फॉसिल्स की 1954 ( जानकारी मिलने के बाद ) से अब तक के विकास यात्रा के उतार-चढ़ाव की कहानी के कई पन्ने बाकी हैं जिन्हें इस लेख में जोड़ने की कोशिश कर रहा हूं. 1982 में जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया कलकत्ता द्वारा “जिओ टूरिज्म पार्क” घोषित कर या यह संस्था चुप हो गई और इसके विकास के कार्यों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. शोध छात्रों के अध्ययन टूर के अतिरिक्त यहां पर और कुछ भी नहीं बनाया गया. और सुधारतियों द्वारा इसके विकास और प्राचीनता को लेकर जगह-जगह पत्र पत्रिकाओं और शोध ग्रंथ में इसकी चर्चा होती रही जो इसके जीवन बने रहने के लिए पर्याप्त थे. किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए जुनून की हद तक रुचि रखने वाले संस्थानों एवं समूह की आवश्यकता हमेशा से इस तरह के विकास कार्यों के लिए समाज में पड़ती रही है चाहे वह स्थान मनेन्द्रगढ़ हो या कोई और स्थान. एक वैज्ञानिक खोज को उसकी महत्ता के साथ पर्यटन एवं शिक्षाप्रद मनोरंजन स्थल बनाने में काफी समय लगता है. उससे भी ज्यादा जरूरी होता है राजनीतिक व्यवस्थाओं के बीच ऐसे स्थलों को विकास के मुद्दे बनाकर समाज एवं प्रचार प्रचार माध्यमों के बीच जीवित रखना. स्थानीय संस्थाओं में 1947 से संचालित साहित्य, पर्यावरण एवं धरोहरों के विकास एवं संरक्षण के लिए समर्पित संस्था संबोधन साहित्य एवं कला परिषद ने इसे जीवित बचाए रखा जिसमें बीरेंद्र श्रीवास्तव जैसे माइनिंग इंजीनियर के रुचि एवं ज्ञान ने इसे आगे बढ़ाया. धीरे-धीरे कई और संस्थाएं भी सहयोग के लिए जुड़ती चली गई. इन संस्थाओं विकास के कार्य नींव की पत्थरों की तरह समय के बदलाव के साथ दबा दी जाती है. प्रशासन और राजनीतिक संस्थाएं ही इसके निर्माण का श्रेय प्राप्त करती है क्योंकि विकास का आर्थिक ढांचा उनके हाथों में होता है, लेकिन विकास के लिए प्रयत्नशील संस्थाएं अपने उद्देश्य के अनुरूप निरंतर गति से कार्य करती रहती है. ऐसी संस्थाओं को पुस्तकों में और शोध ग्रंथों में भले ही स्थान मिल जाता हो लेकिन सामाजिक रूप से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. गोंडवाना मैरिज फॉसिल्स के लगातार चर्चा में बने रहने के कारण समय एवं परिस्थितियों ने इसे राजनीतिक सीढ़ीयो तक पहुंचा दिया और क्रमशः वर्ष नवंबर 2012 ,वर्ष 2015 की बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट, लखनऊ की रिपोर्ट के बाद वर्ष 2020-21 में तत्कालिन मुख्यमंत्री द्वारा छत्तीसगढ़ वन विभाग के जैव विविधता विभाग का ध्यान आकर्षित कराया गया जिससे यह विकास यात्रा अब दो-चार कदम ही सही लेकिन आगे चल पड़ी है और इस क्षेत्र का संरक्षण एवं विकास में चारों तरफ फेंसिंग कर दी गई है. भीतर में कई पगोड़ा बनाकर ऐसे बैठक स्थल बना दिए गए हैं जिसमे आप परिवार एवं मित्रों सहित नदी नालों तथा वनों का प्राकृतिक आनंद ले सकते हैं. फॉसिल्स स्थल को नष्ट होने से बचाने के लिए अलग से फेंसिंग कर इसे आकर्षक स्वरूप दे दिया गया है जो फोटोग्राफी और मनोरंजन की दृष्टि से हमें आकर्षित करता है. इसी फासिल्स स्थल में एक किनारे एक और पगोड़ा बनाकर वहां से समुद्र तथा फॉसिल्स पार्क की वास्तविक स्थिति को देखा जा सकता है इसके साथ ही साथ ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यह हमें मनोरंजन तथा पर्यटन की दृष्टि से आकर्षित करता है. फॉसिल से स्थल तक पहुंचाने के लिए प्राकृतिक पत्थरों के दो मार्ग बनाए गए हैं जो रोमांच पैदा करते हैं और ऊंची नीची पहाड़ी रास्ते पर चलते हुए संभलने के लिए हमें संदेश देते हैं. इस पहाड़ी मार्ग पर चलते हुए आपके शरीर को कसरत तथा योग की विभिन्न मुद्राओं से बचकर चलने के कारण आपके शरीर को स्वस्थ रखने में भी सहयोग करते हैं. हालांकि धन के अभाव में इसकी अपेक्षित प्रगति नहीं हो पा रही है. अब तक की प्राप्त जानकारी के अनुसार एसईसीएल द्वारा सहयोग का हाथ बढाये जाने से उम्मीद बड़ी थी लेकिन अब तक उनकी सहयोग राशि प्राप्त नहीं हो पाने के कारण विकास कार्य टुकड़ों में करने के लिए जैव विविधता विभाग बाध्य है. पर्यटन एवं शोधार्थियों के लिए यहां उपलब्ध फॉसिल्स के अवशेष को सुरक्षित रखने के लिए इसे मोटे कांच से ढकने की योजना है जिसमें मैग्नीफाइंग ग्लास भी लगाने की योजना शामिल है ताकि इसे क्षरण से बचाया जा सके। इसके किनारे पतले मार्ग बनाकर पर्यटकों को दूर से दिखाने का प्रयास किया जा रहा है. एक छोटे म्यूजियम का निर्माण कार्य जारी है जहां फॉसिल्स अवशेष की लाइटिंग एवं फॉसिल्स की जानकारी से इसे साफ-साफ देखा और समझा जा सकेगा. इसी तरह एक बड़े पर्दे पर पृथ्वी की संरचना के उतार-चढ़ाव के मध्य मनेन्द्रगढ़ की संरचना में प्राप्त फासिल्स की उपस्थिति की संक्षिप्त जानकारी भी देने का प्रयास किया जाएगा. दृश्य श्रव्य (ऑडियो- विजुअल) संसाधन की यह प्रस्तुति अंचल के लिए एक नए आकर्षण का केंद्र बनेगी.
करोड़ों वर्षों के भूगर्भी ऐतिहासिक जीवन के लिए संरक्षित इस वन में जैव विविधता के कई वृक्ष और पौधे की प्रजातियां को भी बचाने का प्रयास किया जा रहा है. इस वन में आपको पुराने समय में सोने को तौलने के सुनारों द्वारा उपयोग किया जाने वाला रत्ती जिसे घुंची भी कहा जाता है इस जंगल में पाया जाता है. रास्ते में चलते समय यदि आप ध्यान से जमीन की तरफ देखते रहेंगे तब लाल रंग के छोटे गोल ठोस बीज पर लगा काला धब्बा इसकी सुंदरता पर लगे डिठौने जैसा दिखाई पड़ता है. जो आपका भी ध्यान आकर्षित करता है. यह घुंची अपनी खूबसूरती और सुन्दरता के कारण आपका मन मोह लेगी. इसी तरह पत्थरों के आसपास अमृत संजीवनी नाम से ज्ञात एक सैवाल जो सुख जाने के बाद भी उठाकर पानी में डाल देने से फिर हरी भरी पत्तियों से भर जाता है, यहां काफी मात्रा में पाया जाता है. आपके छूने मात्र से शरमा जाने वाली छुईमुई भी आपको यहां रुके हुए पानी के गढ्ढो के आस पास मिल जाएगी. कई रोगों की दवा जिसमें आसानी से महिलाओं की जचकी के लिए भी ग्रामीण इसका उपयोग करते हैं.
इस विश्व धरोहर गोंडवाना समुद्री जीवाश्म पार्क के आसपास की भूमि पर तेजी से बढ़ता अतिक्रमण आज सबसे बड़ी चिंता का कारण बन चुका है शासन प्रशासन द्वारा इस अंतरराष्ट्रीय धरोहर के विकास के लिए आसपास काफी भूमि की आवश्यकता होगी लेकिन प्रशासन की ही अनदेखी के कारण शासकीय भूमि पर अनाधिकृत कब्जा चिंतित कर रहा है जो इसके विकास और निर्माण में बाधक होगा. हमारी चिंता और लिखने का यह प्रयास प्रशासन तक अपनी बात पहुंचाने की एक ऐसी तकनीक हैजो शांत सोये हुए तालाब मे कंकरी मार चेतना की लहरें उठाने का प्रयास है.
विकास की गति अभी धीमी है किंतु हम आशा करते हैं कि इसके विकास के लिए आगे गतिरोध नहीं होगा. एसईसीएल द्वारा अपने संसाधनों मे स्वीकृत सहयोग राशि शीघ्र ही इस फासिल पार्क के विकास के लिए प्राप्त होगी. ऐसी उम्मीद है. खनिज संसाधनों से भरपूर छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र डीएमएफ मद से भी इसके लिए आर्थिक मदद कर सकता है . स्थानीय जनप्रतिनिधि माननीय विधायक श्याम बिहारी जायसवाल ने भी इसके विकास हेतु अपना संकल्प दोहराया है. जिससे एक उम्मीद जगती है कि इस दिशा में विकास की नए सोपान गढ़े जाएंगे और धन की कमी इसके विकास में आड़े नहीं आएगी. हमें उम्मीद है कि दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और भारतवर्ष के मनेन्द्रगढ़ मे प्राप्त यह अंतरराष्ट्रीय धरोहर मनेन्द्रगढ़ को छ.ग. सहित पूरे भारत भूमि पर विशिष्ट स्थान दिलाएगा. जिसमें मनेन्द्रगढ़ अंचल के निवासी गर्व कर सकेंगे.
बस इतना ही…..।