राजा मोरध्वज की परीक्षा लेने छत्तीसगढ़ आए थे कृष्ण-अर्जुन..!आरंग,रतनपुर से जुड़ा है प्रसंग.
वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से....{किश्त 180}
श्रीराम, सीता,लक्षमण के वनवासकाल में छ्ग आने के तो कई प्रमाण मिले हैं परन्तु श्रीकृष्ण के छत्तीसगढ़ प्रवास के पुख्ता प्रमाण, सबूत नहीं मिलते हैं लेकिन राजा मोरध्वज की कथा में स्पष्टरूप से श्रीकृष्ण-अर्जुन के राजदरबार में आने का जिक्र है। राजा मोरध्वज की राजधानी को लेकर विद्वानों के दो मत हैं।एक मत है कि उनकी राजधानी रायपुर से 35 किमी दूर स्थित आरंग थी तो दूसरों का मान है कि पौराणिक काल में दक्षिण कोसल की राजधानी रही रतनपुर में थी, दोनों स्थानों पर मोरध्वज की नगरी होने श्रीकृष्ण और अर्जुन प्रवास के प्रमाण के दावे हैं। कहते हैं कि आरंग का नामकरण ही लकड़ी चीरने वाले ‘आरे’ पर ही रखा गया है। राजा मोरध्वज के अपने बेटे ताम्रध्वज को आरे से काटने की घटना से ही है। बिलासपुर से 25 किमी दूर रतनपुर में तालाब ‘कृष्णार्जुनी’ है जो कृष्ण और अर्जुन को मिला कर रखा गया है। ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण, अर्जुन को राजा मोरध्वज की दान वीरता,ईश्वरभक्ति दिखाने लाये थे तो इसी तालाब के किनारे डेरा डाला था।एक कथा यह भी प्रचलित है कि युधिष्ठिर केअश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा, तालाब किनारे मोर ध्वज के बेटे ताम्रध्वज ने पकड़ लिया,घोड़े के पीछे चल रहे अर्जुन से उसका युद्ध भी हुआ,बाद में अर्जुन ने श्रीकृष्ण से ताम्रध्वज के संबंध में पूछा तो उन्होंने मोरध्वज की दानवीरता, भक्ति का प्रमाण देने साधु के भेष में अर्जुन को, मोर ध्वज के दरबार ले गये थे। राजा मोरध्वज की कथा में यहां श्रीकृष्ण आये थे, यह प्रमाणित करने ऐतिहासिक तथ्य नहीं हैं।पर वैष्णव संप्र दाय मानता है कि श्रीकृष्ण यहां आए थे,दंतकथाओं में यह अभी भी चर्चा में है।
छ्ग में श्री कृष्ण और
मोरध्वज की कथा….
अर्जुन के सामने श्रीकृष्ण ने राजा मोरध्वज (मयूरध्वज) की दानवीरता,भक्ति की तारीफ की। इसे साबित करने तब श्रीकृष्ण,अर्जुन को साधु भेष में,यमराज को शेर बनाकर मोरध्वज के दरबार पहुंचे। उन्होंने राजा से शेर के भूखे होने, भोजन के रूप में उनके बेटे ताम्रध्वज को मांगा। राजा ने बेटे ताम्रध्वज के शरीर को आरे से काटकर शेर के सामने रख दिया।अर्जुन यह देखकर बेहोश हो गए। तब श्रीकृष्ण असली रूप में आए, राजा को आशीर्वाद देकर ताम्रध्वज को जीवित कर दिया था।
कई प्राचीन मंदिर….
सिरपुर तथा राजिम के बीच महानदी के किनारे बसेछोटे से नगर आरंग को मंदिरों की नगरी कहते हैं। प्रमुख मंदिरों में 11वीं- 12वींसदी में बना भांडदेवल मंदिर है। यह जैन मंदिर है, जिसके बाहरी हिस्सों में इरॉटिक मूर्तियां खजुराहोँ की याद दिलाती हैं। गर्भगृह में काले ग्रेनाइट से बनी जैन तीर्थं करों की तीन मूर्तियां हैं। महामाया मंदिर में 24 तीर्थ करों की दर्शनीय प्रतिमाएं हैं। बागदेवल,पंचमुखी महा देव,पंचमुखी हनुमान,दंतेश्वरी देवी मंदिर यहां के अन्य मंदिर हैं जो दर्शनीय हैं।
उत्खनन जरुरी….
पुरातत्वविदों का कहना है कि “आरंग” छत्तीसगढ़ का सबसे पुराना शहर है।यहां लगभग ढाई हजार साल पुराने सिक्के भी मिले थे, यहां रामायण-महाभारत दोनों युग की चर्चा है, पुष्टि के लिये पुरातत्व विभाग को आरंग सहित रतनपुर में भी उत्खनन कराना चाहिए, जिससे संबंधित सही जान कारी सामने आ सके….।