आइये चलें पर्यटन के लिए — जमीन से दो फुट उँचा उपर निकलता,चुटकी गाँव का “उपका पानी”

छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक संपदा अपने आप में कहीं विशाल जंगल पहाड़ों को अपने आंचल में समेटे हुए कहीं छोटे-छोटे नालों से लेकर नदियों के जल का कल- कल प्रवाह आपको घंटों तक तनाव एवं चिताओं से मुक्त जीवन के लिए आमंत्रित करता रहता है. टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुजर कर जंगल पहाड़ों से गुजरकर अपने ढलान की ओर बहती नदियां जब अचानक सैकड़ो फीट नीचे कूद कर किसी जलप्रपात का निर्माण करती हैं तब उसका सौंदर्य देख आप वाह कहने को बाध्य हो जाते हैं. छत्तीसगढ़ का सबसे छोटा जिला “मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर” (एम सी बी) प्रकृति के इस अंचल में प्राकृतिक खजाने से पूरी तरह भरा हुआ है. आप पहाड़ों से निकलकर नदियों के विभिन्न रूपों को देखकर मुग्ध हो गए होंगे, लेकिन क्या कभी जमीन की सतह पर दबाव के साथ पानी को बाहर में निकलते आपने देखा है. है न आश्चर्य.आज पर्यटन के इस विशेषांक में हम आपको ले चलते हैं चुटकी गांव। जहां जमीन की सतह पर धार बनकर पानी बाहर निकल रहा है. कहीं-कहीं यह पानी दो फीट ऊंचाई तक निकलता दिखाई पड़ता है.
छत्तीसगढ़ राज्य के राज्य मार्ग क्रमांक 8 जो राष्ट्रीय राजमार्ग 43 से मनेन्द्रगढ़ से अंबिकापुर की तरफ 8 किलोमीटर जाने के बाद कठौतिया चौक से आगे जाकर बायें तरफ मुड़ जाती है और हम जनकपुर मार्ग की यात्रा प्रारंभ करने लगते हैं. भगवान राम के वनवास काल से जुड़े रहने के कारण कई स्थानों के नाम बुजुर्गों ने भरतपुर जनकपुर सीतामढ़ी रख दिए हैं ग्राम्यांचलों में बुजुर्गों का मानना है कि आध्यात्मिक आस्था से जुड़े ईश्वर का नाम जैसे भी हो जुबान पर जितना ज्यादा आएगा उतना ही अच्छा है. ईश्वरीय नाम चाहे बच्चों के नाम पर हों या नगर- गांव के नाम हों. ईश्वर का नाम बार-बार जुबान आना चाहिए. जीवन के अंतिम समय में भी यदि बच्चों का नाम लिया जाए तब रामचरण नाम के साथ प्रभु श्री राम का स्मरण हो जाएगा और जीवन के अंतिम समय में भी हम भगवान राम को याद कर लेंगे. यही कारण है कि बच्चों के नाम रामचरण, राम भजन, लक्ष्मण सिंह, शत्रुघ्न, कृष्ण बिहारी, या भरत लाल, और बांके बिहारी जैसे नाम रखे जाते हैं वही गांव के नाम भरतपुर, जनकपुर, रामपुर रख दिए जाते हैं ताकि बातचीत में भी भगवान के नाम के साथ उन्हें याद किया जा सके. जनकपुर में भी भरतपुर गांव का नाम जुड़ा हुआ है छत्तीसगढ़ के विधानसभा क्रमांक 1 का नाम इसी भरतपुर ग्राम के नाम पर रखा गया है.
पर्यटन के लिए यूं तो रास्ते मैं मुख्य मार्ग से 6 किलोमीटर भीतर सलवा गांव के लिए भी रास्ता मिलेगा जो किवदंतियों में रावण की जन्मस्थली रही है. मुख्य मार्ग में आगे की यात्रा बिहारपुर, तारा बहरा, कछौड़, केल्हारी होते हुए सरई एवं सागौन ( साल एवं टीक) के जंगलों के बीच से गुजरते हुए हम प्रकृति की दूसरी दुनिया में पहुंच जाते हैं. ऊंचे नीचे रास्तों से भरे हुए हरे-भरे जंगलों के रास्ते में काले मुंह के बंदरों की धमा चौकड़ी बच्चों का ध्यान आकर्षण करती रहती है. वही लंगूर बंदरों के छोटे-छोटे बच्चों का सड़क पर अचानक आ जाना आपको संभाल कर गाड़ी चलाने की प्रेरणा देता रहता है. सियार एवं भालू का विचरण क्षेत्र होने के कारण कहीं कहीं इनसे आपकी मुलाकात संभव है. आपको इसके प्रति सचेत रहना होगा.
अपनी यात्रा के पड़ाव में मनेन्द्रगढ़ से लगभग 75 किलोमीटर चलने के बाद आप पहुंच जाएंगे. चुटकी गांव. जी हां चुटकी गाँव के नाम से अपनी पहचान रखने वाली इस गांव की आबादी लगभग 600 है. भंवरखोह के बारे में जानकारी लेने पर पता चला कि भंवरखोह गांव की पहाड़ियों की गुफाओं में पहले मधुमक्खियां का बहुत ज्यादा प्रभाव था और बड़े-बड़े मधुमक्खियां के छत्तों के कारण गांव वाले उधर जाना नहीं चाहते थे. इस कारण इस गांव का नाम भंवर खोह को पड़ गया. मुख्यमार्ग से जुड़े गांव के चौराहे पर लगे पत्थर में लिखा है चुटकी से भंवरखोह 3.7 किलोमीटर. इसी मार्ग पर लोगों को रोजगार देने हेतु वन विभाग ने सड़क किनारे वृक्षारोपण करवाया था. यह बात अलग है कि आज वहां पर पौधों के मर जाने के कारण पुनः वृक्षारोपण की आवश्यकता है पुराने लगे पौधे वृक्ष नहीं बन पाए . चुटकी गांव के चौराहे के उत्तर की ओर साप्ताहिक बाजार लगता है. इसी बाजार बैठकी के पीछे की ओर 50 कदम आगे चलने पर आपको दिखेगी
जमीन की सतह से ऊपर पूरी ताकत से निकलती 2 फीट ऊंची पानी की धारा . तात्कालिन कलेक्टर कोरिया माननीया रितु सेन के दौरे के दौरान उन्हे यह “उपका पानी” देखकर बहुत आश्चर्य हुआ. वहां पहुंचकर उन्होंने गांव वालों से इस बारे में जानकारी ली. गांव वालों ने कहा कि यह पानी देखकर आश्चर्य तो होता है लेकिन इसके लगातार बहाने के कारण हमारे खेतों में दलदल हो जा रहा है जिससे कोई खेती नहीं हो पाती. गांव वालों के अनुरोध पर कलेक्टर रितु सेन ने पाइप एवं टोटी लगवाने हेतु ग्राम पंचायत को स्वीकृति प्रदान की. जिससे खेतों में दलदल ना हो एवं पानी सिंचाई एवं निस्तार के काम में आसपास के ग्रामवासियों तक पहुंच सके. ग्रामीणों एवं पंचायत के सहयोग से 6 फीट लंबा पाइप जमीन में ठोक कर एक नल की टोटी इसमें लगा दी गई. ताकि इस पानी के पूरे खेत में फैलने और खेतों को दलदली जमीन बनने से बचाया जा सके. वन विभाग के द्वारा सड़क किनारे बने पुराने नर्सरी में निकलने वाले इस पानी में पाइप डालकर एक टोंटी लगा दी गई है. जिससे आसपास के लोगों को निस्तार के लिए पर्याप्त पानी मिल रहा है. वर्तमान में इस नर्सरी के भीतर राज्य सरकार का वर्षा मापन यंत्र लगा हुआ है. जिसमें आंचल में होने वाली वर्षा के बारे में जानकारी मिलती है
सड़क मार्ग से चुटकी गांव पहुंचने के साथ-साथ चौराहे से पहले एक ढाबा सड़क के दक्षिण दिशा में स्थित है. “बाबू ढाबा चुटकी” ढाबा मालिक के दरवाजे पर लगे नल में पानी देखकर हमें गाँव मे पानी की नल व्यवस्था देखकर आश्चर्य हुआ. हमने जानकारी लेने की कोशिश की . बाबू तुम्हारे इस नल में पानी किस प्लांट से आता है. बाबू ने उत्तर दिया- भगवान के प्लांट से. आश्चर्य से हमने जब पूछा तब उसने बताया मेरी जमीन पर अपनी जमीन से एक फीट ऊपर निकल रहा था. मैंने उसमें एक पाइप ठोकर टोंटी लगा दी और एक ढाबा खोल दिया है. आज इसी ईश्वरीय जल स्रोत से मेरा परिवार का गुजर- बसर चल रहा है.
गांव वालों से बातचीत में पता चला कि इसी गांव के दक्षिण दिशा में गांव के साथ-साथ लंबी चलने वाली पहाड़ी जल स्रोत का बहुत बड़ा केंद्र है. इसी पहाड़ी के नीचे तुर्रा की धार से एक ही स्थान से चार इंच पानी लगातार निकलता रहता है. ग्राम वासियों के अनुसार यह पानी का स्रोत है यदि इस पानी के स्रोत को पाइपलाइन बिछाकर जल संयंत्र की टंकी में इकट्ठा कर लिया जाए. तब यह पानी पूरे गांव को पीने एवं निस्तार के लिए अच्छे जल श्रोत की व्यवस्था का साधन बन सकती है, क्योंकि उपका पानी का स्वाद बहुत अच्छा नहीं है. स्थानीय प्रशासन का ध्यानाकर्षण हम कराना चाहेंगे कि पहाड़ के स्रोत के पानी एवं जमीन की सतह से निकलने वाली उपका पानी की जांच कराने की आवश्यकता है ताकि ग्राम वासियों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर न पड़े एवं स्वास्थ्य के अनुकूल सही पीएच वैल्यू का शुद्ध पानी लोगों को उपलब्ध हो सके.
इसी पहाड़ी के नीचे वन मंडल मनेन्द्रगढ़ के वन परिक्षेत्र बहरासी के अंतर्गत पौधों की रोपणी तैयार की गई है जहां वनो एवं घरों में लगाए जाने वाले पौधे तैयार किए जाते हैं. इसी के किनारे लगभग 500 मीटर दूरी पर दो बांध बनाए गए हैं. जिनमें पर्याप्त पानी इन पहाड़ों के जल स्रोतों से भर रहा है. इन बांधों का पानी पशु पक्षियों एवं वन्य जीव के पीने के लिए उपयोग होता है. वही भविष्य में सिंचाई के कार्यों में भी यह पानी उपयोगी सिद्ध होगा चिंता के साथ यह शोध का विषय भी है कि इस तरह के पानी जो जमीन के सतह से ऊपर कैसे आते हैं . और इतने पानी की इतनी उपलब्धता के बाद भी इस गांव में सब्जी- भाजी पैदा करने या कृषि कार्य के लिए इसका उपयोग बहुत कम देखा जा रहा है. जबकि यह ग्राम वासियों के लिए वरदान है. स्थानीय प्रशासन से अपेक्षा की जाती है कि इन गांव में कृषि विभाग एवं वन विभाग के माध्यम से रोजगार मूलक कार्यों को बढ़ावा देने के कार्य किया जाए. इसे पर्यटन स्थलो में जोड़ा जाए और पर्यटकों के आकर्षण के लिए ऐसे संसाधन बनाए जाएं ताकि लोग वहां पर पहुंचकर इस तरह के प्राकृतिक “उपका पानी” (जमीन की सतह पर बिना किसी पंप के ऊपर बहने वाले जल स्रोत ) का आश्चर्य पूर्वक आनंद ले सके.