छत्तीसगढ़पर्यटन

आईए अविभाजित कोरिया के पर्यटन स्थल एवं समुद्री धरातल पर बसे मनेन्द्रगढ़ ! के धरोहर देखने चलें.

पर्यावरण एवं धरोहर चिंतक, बीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की कलम से

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कृष्ण जन्माष्टमी के सुखद अवसर पर याद करें भगवान कृष्ण के बाल रूप को, जिसमें मैया यशोदा ने जमीन से  मिट्टी उठाकर  खाने के लिए कान्हा को डांटा था और प्यार से कान्हा ने कहा था – मैया मैंने माटी नहीं खाई है. मैया ने कहा- माटी नहीं खाई तो मुंह खोल कर दिखाओ.  तब कन्हैया ने मुंह खोला और कन्हैया के मुख मे संपूर्ण ब्रह्मांड देखकर माता यशोदा मूर्छित होकर गिर पड़ी थी.
जी हां कन्हैया के मुख मे बसे इसी  ब्रह्मांड का एक मोती हमारे नगर मनेन्द्रगढ़ में भी उपलब्ध है आप देखना चाहेंगे
“सतपुड़ा की पहाड़ियों के  घने जंगलों की तलहटी में बसे साल (सरई) के वनों से घिरे  मनेन्द्रगढ़ में ऐसी ही जीवन की 28 करोड़ वर्ष पूर्व के जीव जन्तुओं की उपस्थिति एक प्रश्न खड़ा करती है कि क्या मनेन्द्रगढ़ समुद्री धरातल पर बसा है या कभी विशाल समुद्र यहाँ लहराते थे, जो भू गर्भीय चट्टानों के टूटने और खिसकने  के साथ कहीं दूर चले गए और उनके अवशेष चट्टानों की शक्ल मे आज भी इस मनेन्द्रगढ़ नगर को  ऐतिहासिक नगरी का दर्जा प्रदान करती है.”

आइए चलते है मनेन्द्रगढ़ के समुद्री जीवाश्म मोतियों के सीप देखने-

रेलवे स्टेशन से ढाई किलोमीटर दूर आमाखेरवा केंद्रीय चिकित्सालय रोड से और आगे चलने पर मिलेगा पंचमुखी हनुमान मंदिर पांच मुखो का यह हनुमान मंदिर हस्दो नदी के तट पर एक अप्रतिभ सौंदर्य के साथ अपनी छटा बिखेर रहा है. मंदिरों के समूह के बीच आप मंत्र मुक्त हो जाएंगे. सामने बहती हसदो नदी का कल कल जल ध्वनि आपकी सारी चिताओं को दूर करने के लिए मंत्रोचार करती मिलेगी. इसी नदी के आसपास ऊंची ऊंची पहाड़ियों पर पनपते सघन वन जाने कौन-कौन सी वनौषधियों को समेटे हुए हैं. कभी-कभी लगता है कि इन पहाड़ियों के बीच से हसदो नदी ने अपना रास्ता बनाया होगा या पहाड़ियां खुद हटकर हसदो नदी को बहाने के लिए रास्ता दे दिया था. बहरहाल जो कुछ भी हो, लेकिन हसदो नदी अपने बहाव के साथ जाने क्या-क्या समेट कर ले आती है. अब देखिए ना, इसी हंसदो नदी के बहाव के साथ मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी रेलवे पुल के कुछ पहले दाहिनी ओर पत्थरों पर चमकते सीप दिखाई पड़ते हैं, जाने कौन लेकर आया. इन्हें इकट्ठा कर पत्थरों के ऊपर सजा दिया है. जी हां वैज्ञानिको की भाषा मे यह समुद्री सीप 28 करोड़ साल पुराने हैं ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति ने टोकनी मे बटोरकर सीप और मोतिया यहाँ पलट दिया था. समय बहुत तेजी के साथ बदलता है कुछ लोग कहते हैं कि यह जीवन की उत्पत्ति के वह पुरातन प्राणी है जिन्होंने इस पृथ्वी पर जीवन की पंक्तियां लिखी थी और कुछ लोगों का कहना है की विशाल समुद्र इस क्षेत्र में कभी लहराता था लेकिन धीरे-धीरे इन को इकट्ठा करके एक जगह एकत्रित कर दिया. ऐसा भी तो हो सकता है कि यह सीपीयाँ एक समूह में रहती हो अपने सुख-दुख के समय एक दूसरे का सुख-दुख बांटने के लिए. जी हां आज भी हमारे समाज में ऐसा ही होता है यहाँ सीप आसपास रहते हुए अपना जीवन इतने वर्षों तक बचा नहीं पाए लेकिन अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल हो गए और पत्थरों के बीच अपनी समाधि बना ली. सचमुच उतनी ही चमक जो मोतियों में होती है , आज भी इनके बीच दिखाई पड़ती है. सीपीयों का यह समूह कभी-कभी पानी के स्थिर तरंगों के बीच भी दिखाई पड़ता है ऐसा लगता है हाथ बढ़ाकर अभी इन मोतियों को आप अपने पास बुला लेंगे किंतु ऐसा होता कहां है आपने पानी में हाथ डाला और पानी हिल गया मोतिया चली गई सीपीयाँ बिखर गई. कभी-कभी लगता है कि आखिर सृष्टि भी क्या चीज है जाने किस-किस चीजों को कहां-कहां से बटोर कर हमारे पास ले आती है ठीक उसी तरह जैसे किसी बच्चे ने अपने खिलौने झोले में भरकर अपने आंगन की जमीन पर बिखर देते हैं और लाल पीले चकमक पत्थर मंत्रमुंग्ध कर देती है.


यह धरोहर कैसे आज की दुनिया तक पहुंची. कभी-कभी लगता है क्या हसदो नदी जानती थी कि यहां पर बहुत बड़ा खजाना छुपा हुआ है और उसे ढूंढने के लिए उसने इतनी बड़े पहाड़ को काटकर उसे ढूंढ निकाला. इसी पहाड़ी के आसपास के क्षेत्र में बड़े-बड़े चट्टान भी मिलते हैं ऐसा लगता है बहुत पहले किसी मजबूत हाथों ने इन पत्थरों को यहां पर छुपा रखा था. इन्हीं उबड़खाबड़ रास्तों से थोड़ा ऊपर जाएंगे तो आपको दीवाल की तरह पत्थरों की श्रेणियां के बीच मे सीप और पेड़ों की जड़े इन पत्थरों की दरारों के बीच घुसकर एक अपना साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश करती है. जाने वह अपने पेड़ को सहारा दे रही होती है या इन पत्थरों के बीच से कुछ खोजने की और कोशिश करती है. बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट के लखनऊ से आए वैज्ञानिकों ने सीप के किनारे बहाव की ओर पहाड़ियों मे कुछ पत्थरों के टुकड़ों को निकाल कर छात्रों को दिखाकर कहा था, यह देखो यह पत्थर आज के नहीं 28 करोड़ से भी ज्यादा पुराने समुद्र के समय के पत्थर हैं. संभाल कर रखना इन्हें बहुत नाजुक होते हैं ये समुद्र के बीच से पाए गए पत्थर बहुत ठोस नहीं होती. सचमुच हमे भी संभालना होगा इन्हें क्योंकि यह इतने पुरातन पत्थर है जिसकी कल्पना भी आज करना मुश्किल है. कुछ वैज्ञानिकों ने कहा कि नदी के उस पार भी इस तरह की सीप के समूह की चट्टानें होनी चाहिए लेकिन प्रश्न खड़ा होता है कि पहाड़ियों के अंदर और नदी के बहावके भीतर आखिर कौन ढूंढेगा इन्हें . कैसे ढूंढेगा और कब टूटेगा, यह प्रश्न आज भी जैसा का तैसा खड़ा है .
रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर के प्रोफेसर के साथ आए महाविद्यालय के शोध छात्र जहां-था जाने क्या-क्या ढूंढा करते थे और प्रोफेसर उन्हें छोटे-छोटे टुकड़े उठाकर दिखाते यह देखो यह पत्थर 28 करोड़ साल पुराना है. करोड़ों की गिनती प्रोफेसर ऐसा करते थे जैसे उनके लिए कुछ वर्षों की बात हो. सचमुच एक अपनी पहचान होती है समय की, चाहे वह पत्थरों के साथ हो या व्यक्ति के साथ केवल पहचानने वाले जौहरी की जरूरत होती है अन्यथा एक चमकता हीरा भी पत्थर ही कहा जायेगा. प्रकृति के इन सीपीयों को देखने आना हो तब अनुपपुर – चिरमिरी रेलवे लाइन के बीच कभी मनेन्द्रगढ़ स्टेशन पर उतरेंगे तो आपको मुख्य द्वार पर दिखाई पड़ेगा मनेन्द्रगढ़ रेलवे स्टेशन पर आपका स्वागत है ” समुद्री जीवाश्म देखने के लिए यहां उतारिए दूरी 2.5 किलोमीटर” यहां उतरकर रेलवे स्टेशन से किसी भी ऑटो या टैक्सी में बैठकर आप केंद्रीय चिकित्सालय आमाखेरवा रोड की और चल पड़ेंगे. स्वस्तिक स्वरुप की बसाहट के गांधी की चौक से आगे निकलकर छोटी-छोटी बस्तियों के बीच यह सड़क आपको नगर के अंतिम छोर के हसदो गंगा तट पर पहुंचा देगी.

वर्ष 1955 से नगर को पानी देने वाली विशाल पंप हाउस की आकृति को शिव लिंग आकृति यहां आपका स्वागत करती है..

शनि महाराज मंदिर मे आशीर्वाद लेकर सीढ़ियों से नीचे उतरने पर

आपको मां दुर्गा और सूर्य मंदिर के दर्शन कर आप की प्रसन्नता दुगनी हो जाएगी. एक आध्यात्मिक शांति के साथ आंखें बंद होने लगती है.श्रृद्धा से मन भर जाता है ऐसा लगता है की मंदिर में भगवान भोले बाबा और पंचमुखी हनुमान मंदिर का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आप यहां आए हैं.

इसी मंदिर के दक्षिण की ओर स्थित है यह समुद्री कोष का भरा साम्राज्य हसदो नदी अपने जलधारा के प्रवाह से नित्य प्रति इन सीपीयों को धोती है, पोंछती है, दुलारती है और कोशिश करती है कि उसके इन पुत्रों की चमक यूं ही बरकरार रहे, लेकिन ऐसा कहां हो पता है सूर्य की किरणों की तपिश और सूखी हवाऐं इन्हें तिल तिल कर तोड़ती चलती है जिससे अब यह नष्ट हो रही है. कोशिश तो बहुत की जा रही है कि इन्हे बचाया जाए और इसी अवस्था में इन्हें आगामी पीढ़ी को सौपा जाए. अंचल की कई संस्थाएं इसके संरक्षण में अपने-अपने स्तर पर जुड़ी हुई है.इसी कोशिश के फलस्वरुप जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की नजर वर्ष 1954 मे पड़ी और प्रारंभिक सुरक्षा के बाद वर्ष 1982 में इसे राष्ट्रीय भूगर्भीय धरोहर उद्यान घोषित कितने गया.भूगर्भीय वैज्ञानिक एवं डायरेक्टर  आर एल  जैन के कलकत्ता से अपने शोध छात्रों के साथ 2010 में मनेन्द्रगढ़ आगमन पर संबोधन संस्था के अनुरोध पर इस वैश्विक धरोहर के संरक्षण के लिए कलेक्टर कोरिया को उन्होंने लिखा था–

“मनेन्द्रगढ़ में पृथ्वी संरचना के 28 करोड़ वर्ष पुराने गोंडवाना सुपर ग्रुप की तालचेर फॉर्मेशन के चट्टानों की उपस्थिति मनेन्द्रगढ़ की हसदो नदी के इस स्थल को विशिष्ट बनाती है.  यह चट्टानें हसदो नदी के बहाव  के दाहिनी ओर पंप हाउस एवं रेलवे ब्रिज के मध्य पाई गई है इस स्थल को  जी एस आई.  द्वारा राष्ट्रीय गोंडवाना मैरिन फॉसिल पार्क घोषित किया जा चुका है जो www.gsi.gov.in की वेबसाइट पर देखा जा सकता है.  इस तरह के फॉसिल्स एवं चट्टानें वैज्ञानिक महत्व की ऐसी धरोहर है जो पूरे विश्व में पृथ्वीपर  पाए जाने वाले जीवन एवं समुद्र के वैज्ञानिक साक्ष्य हैं. मनेंद्रगढ़ में इस विश्व धरोहर की उपस्थिति मनेन्द्रगढ़ को विशिष्ट स्थान प्रदान करती है. किंतु शोध छात्रों एवं अवांछित मानवीय  गतिविधियां इसे नष्ट कर रही है. यह  सही समय है कि इस राष्ट्रीय भूगर्भीय धरोहर को संरक्षित तथा विकसित किया जाए, ताकि छात्र, शोधार्थियों, पर्यावरण प्रेमियों एवं पर्यटकों की इस अमूल्य धरोहर को इसी स्वरूप में संरक्षित कर आगामी पीढ़ी को सौपा जा सके”.

कवियों और संतों ने कहा है
करत करत अभ्यास की जड़मति होत सुजान
रसरी आवत जाते ते सील पर परत निशान

जी हां कई संस्थाओं ने इसके विकास के लिए बार-बार कोशिश की किंतु नतीजा बहुत ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ. मनेद्रगढ़ की गैरशासकीय संगठन संबोधन साहित्य एवं कला विकास संस्थान (पूर्व नाम संबोधन साहित्य एवं कला परिषद)  की कोशिश रंग लाई और इस संस्था के  पर्यावरण एवं धरोहर चिंतक वीरेंद्र श्रीवास्तव की मुलाकात छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा से हुई,  जिनके सामने इस करोड़ों वर्ष पुरानी विरासत को संवारने और विकसित करने का प्रस्ताव रखा गया उन्होंने इस गोंडवाना समुद्री जीवाश्म की विश्वस्तरीय उपस्थिति तथा यूनेस्को में शामिल होने की संभावना देखते हुए इस राष्ट्रीय धरोहर को मुख्यमंत्री तक पहुंचाने की कोशिश की, तथा छत्तीसगढ़ पुरातत्व एवं एवं संस्कृति मंत्रालय तक इसकी जानकारी उपलब्ध कराई.

धीरे-धीरे समय बीतने के साथ मुख्यमंत्री  भूपेश बघेल ने इसे स्वीकृति देकर वन विभाग के छत्तीसगढ़ बायो डायवर्सिटी विभाग को इसके विकास का दायित्व सौप दिया. वर्ष  2022 में स्वीकृत यह प्रोजेक्ट छत्तीसगढ़ बायोडायवर्सिटी बोर्ड के सचिव  अरूण पांडे  के संरक्षण मे आगे बढ़ाया गया. बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडियाकलकत्ता एवं रवि- शंकर विश्वविद्यालय की भूगर्भीय विभाग द्वारा किए गए सर्वेक्षण और रिपोर्ट के आधार पर अब इसका कार्य प्रारंभ किया गया है. जो धीरे-धीरे आकार लेने लगा है. इसे हसदो नदी तट पर देखा जा सकता है. बड़ी संभावनाओं के इस विश्व स्तरीय राष्ट्रीय धरोहर को इसके प्राकृतिक स्वरूप में ही सँजोने  की कोशिश की जा रही है.कोशिश है कि  हसदो नदी  की जल धारा बहाव के ऊपर एकत्रित सीपियों  के  समूह को कांच से ढंककर  रखा जाए ताकि लोग उसे उपर सै देख सके और उसके उपर चल सकें,किन्तु छूकर खराब न करे ,. इससे उसकी चमक बरकरार रखी जा सकेगी और शोधार्थियों, पर्यावरण एवं धरोहर चिंतकों के साथ-साथ छात्रों और पर्यटकों के लिए भी यह अमूल्य धरोहर बन जाएगी.  लेकिन कभी-कभी दुख होता है जब कार्य को मूर्त रूप देने वाले स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा मानकों के अनुरूप कार्य नहीं किया जाता. अपनी चिंता के स्वरों में हम इतना ही कहना चाहेंगे कि ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे और इसे राष्ट्रीय धरोहर को पूर्ण करने की योग्यता प्रदान करे ।

 

 


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