संगीत,नृत्य सम्राट राजा चक्रधरसिंह पोर्ते , ‘रायगढ़ घराना’ और गणेशोत्सव….
वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से..(किश्त187
छत्तीसगढ़ रायगढ़ के राजा चक्रधरसिंह ऐसे विलक्षण राजा हुए,जिन्होंने नृत्य और संगीत में स्वयं का मुकाम तो बनाया ही,प्रतिभाओं को भी पल्लवित और स्थापित किया। 17 अगस्त 1905 में जन्मे चक्रधर को अल्पायु में 1924 में राज सम्हालना पड़ा था। विद्या। और बुद्धि के देवता गणेशजी का जन्म भाद्र शुक्ल चतुर्थी के दिन हुआ था। राजा चक्रधरसिंह का जन्म भी गणेश चतुर्थी के दिन ही 19 अगस्त 1905 को हुआ था,1914 में राजकुमार कालेज रायपुर में दाखिल कराया गया। 9 वर्ष तक वहां के कड़े अनुशासन में विद्याध्ययन करने के बाद 1923 में प्रशासनि क ट्रेनिंग के लिए छिंदवाड़ा चले गये। कुशलतापूर्वक प्रशासनिक ट्रेनिंग पूरा कर रायगढ़ लौटने पर उनका विवाह बिंद्रानवागढ़ के जमींदार की बहन से हुआ था। जिनसे ललित कुमार, भानु प्रताप,मोहिनी,गंधर्व कुमारी का जन्म हुआ।15 फरवरी 1924 को राजा नटवर सिंह की असामयिक मृत्यु हो गयी।उनका कोई पुत्र नहीं था,रानी साहिबा ने चक्रधर सिंह को गोद ले लिया।चक्रधर सिंह रायगढ़ रियासत की गद्दी पर आसीन हुए। 4 मार्च 1929 में सारंगढ़ के राजा जवाहिर सिंह की पुत्री बसँतमाला से राजा चक्रधर का दूसरा विवाह हुआ। 1932 सुरेन्द्र कुमार सिंह का जन्म हुआ। उनकी मां का देहांत हो जाने पर राजा ने कवर्धा के राजा धर्मराज सिंह की बहन से तीसरा विवाह किया जिनसे कोई संतान नहीं हुई। उनका जन्म ‘गणेशचतुर्थी’ के दिन हुआ था, पिता भूपदेव सिंह अपने पुत्र का जन्मदिन हर साल गणेश उत्सव के साथ धूम -धाम से मनाते थे। रायगढ़ का गणेश मेला उन दिनों प्रसिद्ध था।राजमहल में खूब रौनक हुआ करती थी।चक्रधर सिंह भी संगीत और साहित्य में भी काफी दिलचस्पी रखते थे।आगे चल कर वह शास्त्रीय संगीतऔर नृत्य के कुशल कलाकार के रूप में प्रसिद्ध हुए। बचपन से संगीत प्रेमी थे। नृत्य और संगीत के प्रति दीवानगी इतनी थी कि कत्थक में निपुणता प्राप्त की। एक विशिष्ट शैली के जनक हुए और कत्थक के “रायगढ़ घराना” की स्थापना की। तबला वादन में राजा साहब ने मौलिक शोध किया। 1938 में चक्रधर ने इलाहाबाद में आयोजित पहले भारतीय संगीत सम्मेलन का नेतृत्व किया। सम्मेलन में चक्रधर सिंह 60 कलाकारों के साथ गए।1939 सम्मेलन में भारत के वायसराय के लिए एक स्वागत पार्टी का आयोजन किया,कथक नर्तक कार्तिक कल्याण ने नृत्य प्रस्तुत किया, तबला बजाने वाले चक्रधर सिंह ने उनकी सहायता की। इस सम्मेलन में वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो द्वारा संगीत सम्राट (संगीत के राजा) की उपाधि दी गई थी।1943 में खैरागढ़ सम्मेलन में चक्रधर सिंह ने कल्याण दास के नृत्य प्रदर्शन में फिर से तबला बजाया।उनका हिंदी,उर्दू, उड़िया भाषा पर अच्छा दखल था, संगीत पर कई पुस्तकें लिखी हैं।अलकापुरी तिलस्मी,बैरा गड़िया राजकुमार,जोशे फरहादी, काव्या का नानो,माया चक्र मूरजपरान पुष्पाकर, मृगनयन नर्तन सर्वस्य निगारे फरहादी, प्रेम के तीर,रागरत्न मंजुषा,राम्यारसी रत्नाहारी ताल, टॉयनिधि,तालबल पुष्पकरी… ये ग्रन्थ इतने वृहद् हैं कि कल्पना से परे हैं ‘तालबल पुष्पाकर’ की पाण्डुलिपि का वज़न 32 किलो है तो ‘मूर्जपरण’ का वज़न ही 6 किलो है।राजा ने कई दुर्लभ बोलों का भी अविष्कार किया, कड़क, बिजली परन, एक्कड़,मुक्ता हार,गीतांगी, कचनार आदि बोल उनकी ही देन है।उस समय कलाकारों, साहित्य कारों को सम्मान,आतिथ्य और प्रश्रय राजा चक्रधर सिंह ने दिया था। पं.ओंकार नाथ ठाकुर,मनहर बर्वे,नारायण राव व्यास,पं.विष्णु दिगम्बर पुलस्कर जैसे संगीतज्ञों के साथ माखनलाल चतुर्वेदी,पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी, डॉ रामकुमार वर्मा, लोचनप्रसाद पाण्डे, मुकुटधर पांडे, दीवान डॉ बलदेव प्रसाद मिश्र का सानिध्य इनके कारण रायगढ़ को मिला। महावीर प्रसाद द्विवेदी को प्रतिमाह 55 ₹ की आर्थिक सहायता उनके जीवनपर्यंत प्रदान की थी। 7 अक्टूबर 1947 को इस प्रतिभा का अल्पायु में ही निधन हो गया।इनकी स्मृति में रायगढ़ में हर वर्ष राष्ट्रीय चक्रधर समारोह का भी आयोजन होता है।