नरपति, गजपति, रथपति और अश्वपति,श्रीराम की बानर सेना के अंग
वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से .. {किश्त 184}
रामायणकालीन छत्तीसगढ में ऐसे अनेक तथ्य हैं जो इंगित करते हैं कि ऐति हासिक दृष्टि से छग की प्राचीनता रामायण युग को स्पर्श करती है।
उसी काल में ही दण्ड कारण्य नाम से प्रसिद्ध वनाच्छादित छ्गभी आर्य-संस्कृति का प्रचार केन्द्र था। यहाँ के एकान्त वनों में ऋषि-मुनि आश्रम बना कर रहते और तपस्या करते थे। इनमें वाल्मीकि, अत्रि,श्रँगी, अगस्त्य,सुतीक्ष्ण आदि प्रमुख थे, इसीलिये दण्डकारण्य में प्रवेश करते श्रीराम इन सबके आश्रमों में गये। राम के काल में भी कोशल राज,उत्तर कोशल, दक्षिण कोशल में विभाजित था।कालिदास के रघुवंश काव्य में उल्लेख है कि राम ने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज दिया था। शरावतीऔर श्रावस्ती को एक मान लिया जाये तो निश्चय ही लव का राज उत्तरभारत में था, कुश दक्षिण कोशल के शासक बने। सम्भवतः उनकी राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी..! कोसला ग्राम उस काल की कुशावती थी। यदि कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि भी मान लिया जावे तो भी किसी प्रकार की विसंगति प्रतीत नहीं होती। रघुवंश काव्य के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिये विन्ध्याचल पर्वत को पार करना पड़ता था, इससे सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोशल में ही था। सभी उद्धरणों से स्पष्ट है छत्तीसगढ़ आदि काल से ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों का पावन तपोस्थल रहा है।
अंगकोट (कंबोडिया) में रामायण की ‘वानरसेना’ का एक दृश्य से प्रतीत होता है कि छोटा नागपुर से लेकर बस्तर, कटक से सतारा तक बिखरे हुये राजवंशों को संगठित कर श्रीराम ने वानर सेना बनाई हो, आर.पी. व्हान्स एग्न्यू ने लिखा था कि”सामान्य रूप से इस विश्वास की परम्परा चली आ रही है कि रतनपुर राजा प्राचीनकाल से शासन करते चले आ रहे हैं। उनका ही सम्बन्ध हिन्दू ‘माइथॉ लाजी'(पौराणिक कथाओं) में वर्णित पशु कथाओं से है। चारों महान राजवंश,सतारा के नरपति,कटक के गजपति,बस्तर के रथपति और रतनपुर के अश्वपति है “(A Reep ort on theSuba or Province of Chha ttisgarh – written in 1820)।अश्व और हैहय पर्यायवाची हैं। एग्न्यू का मत था कि कालान्तर में ‘अश्वपति’ ही हैहयवंशी हो गये। इससे स्पष्ट है कि इन चारों राजवंशोँ का सम्बन्ध बहुत प्राचीन है,उनके वंशों का नामकरण ही चतुरंगिनी सेना के अंगों के आधार पर किया गया है। बस्तर के शासकों के ‘रथपति’ होने के प्रमाण स्वरूप आज भी दशहरे में रथ निकाला जाता है तथा दन्तेश्वरी माता की पूजा की जाती है। राम की उस परम्परा का संरक्षण है जब दशहरा के दिन शक्ति की पूजा कर लंका प्रस्थान किया था। राजाओं की उपाधियों से यह स्पष्ट होता है कि राम ने छत्तीसगढ़ के तब के वन राजाओं को संगठित किया और चतुरंगिनी सेना तैयार कर उन्हें नरपति, गज पति, रथपति और अश्वपति उपाधियाँ प्रदान की। इस प्रकार रामायण काल से ही छत्तीसगढ़ श्रीराम कालीला स्थल तथा दक्षिण भारत में आर्य संस्कृति का केन्द्र बना था…..!