जन सूचना अधिकारी आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों को बना रहे मजाक, भ्रष्टाचार छिपाने का हो रहा प्रयास
मनेंद्रगढ़।एमसीबी। वन विभाग के अंदर चल रहे भ्रष्टाचार और आरटीआई अधिनियम के तहत मांगी गई सूचनाओं को छुपाने का गंभीर मामला सामने आया है। जन सूचना अधिकारियों द्वारा जानकारी छिपाने का खेल, जो लंबे समय से उच्च अधिकारियों के संरक्षण में चल रहा है, अब आम जनता के अधिकारों पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहा है। वन विभाग के विभिन्न मामलों जैसे सरकारी कैश बुक, निर्माण कार्य या सामग्री की खरीद की जानकारी देने से बार-बार इनकार किया जा रहा है, जो कानून का स्पष्ट उल्लंघन है।
आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब भी वे जानकारी मांगते हैं, उन्हें गोपनीयता का हवाला देकर सूचनाएं देने से मना कर दिया जाता है। यह भ्रष्टाचार को उजागर होने से बचाने का प्रयास प्रतीत होता है। निचले स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत से यह खेल लंबे समय से जारी है, और प्रथम अपील अधिकारी भी जन सूचना अधिकारी का ही पक्ष लेते हैं।
यह मामला अब गंभीर होता जा रहा है क्योंकि निचले स्तर पर भ्रष्टाचार और अनुचित प्रथाओं को रोकने के बजाय, उसे बढ़ावा दिया जा रहा है। आरटीआई अधिनियम, जो जनता को शासन की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था, अब वन विभाग में मजाक बनकर रह गया है।
सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत धारा 2(f) के अंतर्गत आने वाली सूचनाओं को भी सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है, जिससे जनता के अधिकारों का हनन हो रहा है। उच्च अधिकारियों, विशेषकर जिला कलेक्टर, को इस मामले में हस्तक्षेप कर दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इसके साथ ही सभी जिम्मेदार अधिकारियों को आरटीआई के प्रावधानों के तहत सही तरीके से प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी समस्याओं का सामना न करना पड़े।
वन विभाग में व्याप्त इस अराजकता और लापरवाही ने जन हित में उठाई जा रही आरटीआई मांगों को गंभीर संकट में डाल दिया है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले को कितनी गंभीरता से लेता है और कब तक भ्रष्टाचार और गोपनीयता के नाम पर छिपाई जा रही जानकारी आम जनता तक पहुंचाई जाएगी।