छत्तीसगढ़

राघवेंद्र राव :बैरिस्टर, शिक्षाविद के साथ अंग्रेजों के समय के प्रभारी राज्यपाल तक.

वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से....{किश्त 188}

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ई.राघवेन्द्र राव का जन्म अगस्त 1889 में कामठी नगर (महाराष्ट्र)में हुआ था, उनके पिता नागन्ना, संपन्न व्यापारी थे।नागन्ना, व्यापार के लिये बिलासपुर (छग) आए थे और उसके बाद यहीं बस गये। नागन्ना की पत्नी लक्ष्मी नरसम्मा,उदार स्वभाव की धार्मिक,अनु शासनप्रिय महिला थीं। राघ वेन्द्र पर पारिवारिक आदर्श का बाल्यावस्था से प्रभाव पड़ा। फलस्वरूप उन्होंने एक प्रतिभाशाली,मेधावी, बुद्धिमानी, विलक्षण व्यक्ति के साथ उज्ज्वल,चरित्रवान बनने की पहली सीढ़ीबाल्य काल में तय कर ली।प्राथ मिक शिक्षा बिलासपुर में ही हुई। म्युनिसिपल हाई स्कूल से मैट्रिक किया,उच्च शिक्षा के लिए राघवेन्द्र ने हिस्लॉप कॉलेज,नागपुर में प्रवेश लिया। वहीं से कानून की शिक्षा प्राप्त करने के इच्छा जागी।सरस्वती बाई नामक सुशील, सरल स्वभाव की कन्या से उनका विवाह संपन्न हुआ, राघवेन्द्र राव कानून की शिक्षा प्राप्त करने विलायत जाना चाहते थे। पिता नागन्ना राव लंदन नहीं भेजना चाहते थे, किसी तरह मनाकर लंदन चले गए राघवेन्द्र राव ने विलायत में बैरिस्टरी की शिक्षा आरंभ ही की थी कि पिता नागन्ना राव का निधन हो गया।राघवेन्द्र को शिक्षा बीच में छोड़ स्वदेश लौटना पड़ा। 1912 में राघवेन्द्र पुनः विलायत चले गए, वकालत की शिक्षा पूरी की। 1914 में राघवेन्द्र बैरिस्टर बन कर बिलासपुर लौटे, वहीं वकालत शुरूकर दी। देश के स्वाधीनता आंदोलन की बागडोर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के हाथों में थी। सारे देश में उस समय गरमदल की हवा चल रही थी। राघवेन्द्र का राजनैतिक जीवन में प्रवेश हुआ,1916-1927 तक बिलासपुर नगर पालिका के अध्यक्ष रहे। जिला परिषद के अध्यक्ष पर भी 8 वर्षों तक पदासीन रहे। 1920 में राष्ट्रपिता गाँधी के आह्वान पर राघवेन्द्र राव वकालत छोड़कर सक्रिय राजनीति में कूद पड़े। उसी वर्ष महाकौशल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। जब मोतीलाल नेहरू ने स्वराज्य पार्टी का गठन किया,तब राघवेन्द्र भी सम्मिलित हो गए,1923- 1926 तक वे सीपी बरार विधान सभा में स्वराज्य पार्टी के सदस्य व नेता रहे। सेठ गोविंद दास, पं. रवि शंकर शुक्ल के साथ मिल कर क्षेत्र में स्वराज्य पार्टी का गठन किया था। 1926 में गठित मंत्रिमण्डल में राघवेन्द्र राव शिक्षामंत्री बनाए गए थे। यद्यपि वे शासन के सक्रिय सदस्य थे, साइमन कमीशन का बहिष्कार कर उन्होंने देशभक्ति के अदम्य साहस का उदाहरण प्रस्तुत किया।1930 मे राघवेन्द्र 7 वर्षों के लिए मध्यप्रांत के राज्यपाल के गृह सदस्य नियुक्त हुए, उस समय राज्यपाल के बाद सबसे महत्वपूर्ण पद होता था। इस पद पर रहकर कृषकों की दशा सुधारने के लिए ऋणमुक्ति, सिंचाई सुविधाओें का विस्तार,चकबंदी इत्यादि कई जनहित के कार्य करवाए। 1936 में राघवेन्द्र राव चार माह के लिए मध्यप्रांत के प्रभारी राज्यपाल बनाए गए। उन दिनों किसी भारतीय नागरिक को सम्मान प्राप्त नहीं होता था। 1939 में राघवेन्द्र भारत सचिव के सलाहकार पद पर लंदन बुलाए गए। वहाँ वे दो वर्षों तक रहे। अंतिम समय में ई. राघवेन्द्र राव वाइसराय की कार्यकारिणी कौंसिल में प्रतिरक्षा मंत्री पद पर भी नियुक्त हुए। अंग्रेजी शासन के उच्च पदों पर आसीन रहते हुए भी राघवेन्द्र राव ने राष्ट्रीयता की भावना का त्याग नहीं किया। अंग्रेजी प्रशासन में भी भारतीयों के अधिकार के लिए सतत् संघर्ष करते रहे।1916 में जब बिलासपुर क्षेत्र में प्लेग की महामारी फैली हुई थी, तब राघवेन्द्र राव ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए विश्वसनीय साथियों के साथ बीमार लोगों की खूब सेवा की। सन् 1929-30 में ऐतिहासिक अकाल के समय भी गरीब किसानों की भरपूर सहायता की। उनके प्रयासों से लगान व मालगुजारी की वसूली पर रोक लगाई गई तथा लगान का पुनर्निर्धारण उदारता के साथ किया गया। राघवेन्द्र ने मध्यप्रांत में निरक्षरता दूर करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा की तीव्रगामी योजना बनाई। ग्रामीण क्षेत्रों में पुस्तकालयों की व्यवस्था करना, शिक्षा में कृषि को शामिल कर रोजगार से जोड़ना, बालिकाओं की समुचित शिक्षा-दीक्षा के लिए स्कूलों की व्यवस्था करना, शिक्षा मंत्री के रूप में उनकी बड़ी उपलब्धियाँ थी। उन्होंने संपूर्ण बिलासपुर जिले में पाठशालाओं का न केवल जाल फैला दिया अपितु प्रचलित पाठ्यक्रम के मापदण्ड को ऊँचा उठाने सतत् प्रयास किया। राघवेन्द्र राव रसायन शास्त्र,ज्योतिष, खगोल विज्ञान, अंग्रेजी हिन्दी साहित्य के ज्ञाता थे। इसके साथ-साथ संसदीय व्यवहार नीति में भी उनकी विद्वता प्रसिद्ध थी। आंध्रप्रदेश के वाल्टेयर विश्व विद्यालय ने राघवेन्द्र राव को डी. लिट् की उपाधि से सम्मानित किया। राघवेन्द्रर के व्यक्तिगत पुस्तकालय में लगभग 15 हजार पुस्तकें थीं नगरपालिका वाचनालय बिलासपुर,एसबीआर कॉलेज वाचनालय,बिलासपुर नागपुर विश्वविद्यालय तथा आंध्रप्रदेश विश्वविद्यालय में आज भी उपलब्ध हैँ।15 जून 1942 को 53 वर्ष की अल्पायु में ई. राघवेन्द्र राव का निधन हो गया।


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