सतयुग,त्रेता,द्वापर से अस्तित्व में है रायपुर, अब छ्ग की राजधानी..
वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से...{किश्त 202}
रायपुर का नाम सतयुग में कनकपुर,त्रेता में हाटकपुर और द्वापर में कंचनपुर था। इसकी जानकारी नागपुर के भोसलाराजा रघुजी तृतीय के शासन के दस्तावेजों से मिलती है।जनश्रुति के अनु सार क्षेत्र बहुत ही समृद्ध था। इसे सोने के समान माना जाता था।श्रीराम इसी क्षेत्र से होकर वनवास गये थे। त्रेतायुग में खारून नदी के किनारे स्थित हटकेश्वर महादेव के नाम पर रायपुर का नामकरण हाटकपुर भी हुआ था। 1837 में राजा रघुजी तृतीय भोसले ने रायपुर के नाम को ले सर्वे करवाया था। इसमें नामकरण की यह जानकारी सामने आई थी।बूढ़ातालाब के राज घाट में 1458 का शिला लेख मिला था। इसमें राजा ब्रह्मदेव राय,रायपुर के नाम का जिक्र है। इतिहासकार इसे नामकरण का आधार मानते हैं।रायपुर जिला ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से काफ़ी महत्वपूर्ण है। कभी दक्षिणी कोसल का हिस्सा था,मौर्य साम्राज्य के अधीन माना जाता था। रायपुर शहर लंबे समय छग के पारंपरिक किलों को नियंत्रित करने वाले हैहयवंशी राजाओं की राजधानी रहा है। शहर 9वीं शताब्दी से अस्तित्व में है, किले के पुराने स्थल, खंडहर, शहर के दक्षिणी भाग में देखे जा सकते हैं।सातवाहन राजाओं ने दूसरी-तीसरी शताब्दी तक शासन किया, 4थी शताब्दी में राजा समुद्रगुप्त ने क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी, पांचवीं-छठी शताब्दी तक अपना प्रभुत्व स्थापित किया था यह हिस्सा सरभपुरी राजाओं के शासन में आ गया था। पाँचवीं-छठी शताब्दी में कुछ समय नल राजाओं का क्षेत्र पर प्रभुत्व रहा,बाद में सोमवंशी राजाओं ने कब्ज़ा कर लिया,सिरपुर(श्रीपुर-धन का शहर) को राजधानी बनाकर राज किया। महाशिवगुप्त बालार्जुन वंश का सबसे शक्ति शाली सम्राट था।उनकी मां, सोमवंश के हर्षगुप्त की विधवा रानी, वसाटा ने ही लक्ष्मण का प्रसिद्ध ईंटों का मंदिर बनवाया था, तुम्मन के कल्चुरी राजाओं ने रतनपुर को राजधानी बनाकर इस भाग पर लम्बे समय तक शासन किया। रतनपुर, राजिम, खल्लारी के पुराने शिलालेखों में भी कलचुरि राजाओं के शासन का भी उल्लेख है। माना जाता है कि इस राजवंश के राजा रामचन्द्र ने ही रायपुर शहर की स्थापना की,बाद में इसे राज्य की राजधानी बनाया।रायपुर की एक कहानी यह है कि राजा रामचन्द्र के पुत्र ब्रह्मदेव राय ने रायपुर की स्थापना की थी। राजधानी खलवाटिका (अब खल्लारी) थी। नवनिर्मित शहर का नाम ब्रह्मदेव राय के नाम पर ‘रायपुर’ रखा गया।14 02 ई. में हाजी राजनाइक के शासनकाल में ही खारुन नदी के तट पर हटकेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया गया था।राजवंश के शासन का पतन राजा अमरसिंह देव की मृत्यु के साथ ही हुआ।अमरसिंह देव की मृत्यु के बाद यह भोसले राजाओं का अधिकार क्षेत्र बन गया था। रघुजी तृतीय की मृत्यु के साथ ही यह ब्रिटिश सरकार ने नागपुर के भोंसला से ले लिया, 1854 में छत्तीसगढ़ को रायपुर में मुख्यालय के साथ कमिश्नरी भी घोषित किया। स्वतंत्रता के बाद रायपुर जिले को मध्य प्रांत और बरार (सी पी एंड बरार) में शामिल किया गया था। बाद में मप्र बना तब भी रायपुर महत्वपूर्ण रहा। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद रायपुर कोराजधानी बनने का गौरव हासिल है।