छत्तीसगढ़

सतपुड़ा की पहाड़ियों पर बसे भोले बाबा के मंदिर सिद्ध बाबा

Ghoomata Darpan

                  जीवन के उतार-चढ़ाव में जब हम किसी परेशानी में घिर जाए तब स्वाभाविक रूप से ईश्वर को याद करते हैं. मानव जीवन का आस्था से बहुत गहरा नाता है. यह आस्था प्राकृतिक संरचना के साथ भी हो सकता है और अदृश्य शक्ति के साथ भी , जिसे हम ईश्वर या अल्लाह के नाम से जानते हैं.  जंगलों के बीच बसने वाली आदिवासी संस्कृति प्रकृति को देवता मानती है और उसी की पूजा करती है . वही हिंदू सनातन धर्म की आस्था 33 कोटी देवी देवताओं में जो इस विशाल भारत के अलग-अलग स्थलों पर अपनी आस्था के साथ स्थापित है. इसी आस्था की एक कड़ी छत्तीसगढ़ की कारीमाटी अर्थात मनेन्द्रगढ़ के दक्षिणी छोर पर स्थित है.

सतपुड़ा की पहाड़ियों पर बसे भोले बाबा के मंदिर सिद्ध बाबा
ईश्वरीय  आस्था भगवान भोले शंकर का यह निवास मनेंद्रगढ़ को आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक समृद्धि प्रदान करता है.  किवदंतियों में इस मंदिर का वैभव और समृद्धि हमेशा मनेन्द्रगढ़ को समृद्धि के नए द्वार से परिचित कराया है. कहतें है कि मनेन्द्रगढ़ का अवरुद्ध विकास सिद्धबाबा महादेव मंदिर के पुनः निर्माण के साथ शुरू हुआ है. बाबा के आशीर्वाद  ने कंटकभरे रास्ते से गुजरकर  40 वर्षों बाद मनेन्द्रगढ़ जिले की धोषणा और मेडीकल कालेज के साथ युवा शक्ति के शिक्षा के  सपनों को साकार करने के कई द्वार खोले हैं.

सतपुड़ा की पहाड़ियों पर बसे भोले बाबा के मंदिर सिद्ध बाबा

नगर सीमा पार करते ही सतपुड़ा पहाड़ी की बाहों में गलबहियाँ डालकर प्राकृतिक नजारों का मनमोहक दृश्य राष्ट्रीय राजमार्ग क्र.  43 से गुजरते किसी भी व्यक्ति को बरबस ही  आकर्षित करता है. सिद्ध बाबा पहाड़ी की तराई में छ.ग. वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा रोपित ऑक्सीजोन वन के साथ-साथ सिद्ध बाबा पहाड़ी के ढलान मे  विकसित साल वनों के लंबे-लंबे पेड़ आसमान को छूने की कोशिश में लगे हैं.  इन्हीं पेड़ों के पैरों तले वन विभाग ने साल  की लकड़ियों के बड़े-बड़े  टाल बना दिए हैं.जहां से छ.ग. शासन के लकड़ियों का कारोबार होता है.

सतपुड़ा की पहाड़ियों पर बसे भोले बाबा के मंदिर सिद्ध बाबा

बसंत के पतझड़ के बाद साल वृक्षों के फूल पूरे जंगल को फूलों से ढक देते हैं.  वही इसके फल जब जमीन पर गिरते हैं, तब ऐसा लगता है मानों तितलियों के झुंड जहां-तहां उड़ते दिखाई पड़ रहे हैं. बीच बीच मे टेसू के फूलों से लदे वृक्ष ऐसे  प्रतीत होते हैं जैसे किसी ने प्यार का इजहार कर प्रकृति के बालों में लाल पुष्पों की वेणी लगा दी हो.   साल वनों की इसी खूबसूरती को भवानी प्रसाद मिश्र ने अपनी पंक्तियों में बांधकर लिखा था-
सतपुड़ा के घने जंगल, नींद में डूबे हुए उंघते अनमने जंगल.
टेढ़े-मेढ़े रास्ते के घाट चढ़ने के बाद पहाड़ी पर बने त्रिशूल गड़े मंदिर के गुंबज को देखकर आस्था से मन भर जाता है और आशीर्वाद हेतु श्रद्धा से मस्तक झुकाकर भोले बाबा को कोई भी व्यक्ति प्रणाम कर लेता है. घाट की चढ़ाई सकुशल पार कर लेने के बाद रास्ते की सुनसान  चढाई के डर को कम करने की कोशिश मे ईश्वर को याद करने और राह चलते मुसाफिरों और वाहन चलाते ड्राइवर की इसी आस्था को भुनाने  की एक कोशिश ने  सड़क किनारे एक देवी मंदिर तथा हनुमान मंदिर बनाने की प्रेरणा दी , जो सड़क चलते मुसाफिरों को सिद्ध बाबा पहाड़ी के लिए आकर्षित करती है.

पूर्वी गुजरात से महाराष्ट्र होकर  मध्य प्रदेश की सीमा से गुजरते हुए सतपुड़ा की पहाड़ियाँ  छत्तीसगढ़ की पूर्वी सीमा मनेन्द्रगढ़  में प्रवेश करती है. इसी  पहाड़ियों की लगभग पांच सौ फुट की ऊंचाइयों पर भगवान भोले शंकर विराजे हैं.  सिद्ध बाबा पहाड़ी अपने अंतस में मनेन्द्रगढ़ की आर्थिक समृद्धि का राज अर्थात कोयले के अकूत भंडार छुपाए  रखा है. जो झगड़ाखांड, लेदरी, खोंगापानी  के खदानों से निकलकर  महानगरों के विकास  के लिए उद्योगों तक पहुंच चुकी है. मनेन्द्रगढ़ में  विकास के नए अध्याय का शुभारंभ करने वाली  रेल लाइन का विस्तार भी  वर्ष 1928 में इन्हीं कोयला खदानों के कारण हुआ है. मनेन्द्रगढ़ को आर्थिक  समृद्धि इसी कोयले और रेल के कारण मिली है.
1960 के दशक में जब सिद्ध बाबा पर चढ़ने के लिए कोई सड़क नहीं थी.  बचपन में  पगडंडियों से बने रास्ते पर दौड़ कर चढ़ना और थक जाने पर किसी पत्थर पर बैठकर सुस्ताना और फिर लंबी सांस भरकर आगे की यात्रा के पश्चात आखिरी पड़ाव मंदिर पहुंचना किसी  विजेता की तरह गर्व से भर देता.  मंदिर से आशीर्वाद प्राप्त कर पहाड़ियों के किनारे बैठ कुल्लू के पेड़ो पर अपने किसी प्रिय का नाम लिख देना आज भी सिहरन पैदा करता है, यह सोचकर कि यह आज से पचास साल बाद भी बड़े बड़े अक्षरो मे यह यथावत  दिखाई देगा.  मंदिर की ऊंचाइयों से शहर ऐसा दिखाई पड़ता है जैसे किसी कलाकार ने पेंसिल से लंबे चौड़े कागज पर डब्बे की तरह  मकानों को उकेर दिया हो. इसी  बसाहट  के बीचो-बीच गुजरने वाली  रेल लाइन का विस्तार जब टेढ़े-मेढ़े मार्गो से गुजर कर बहती चांदी की तरह चमकती जलधारा से भरी हसदो नदी के पुल से गुजरती है तब जिज्ञासा कौतुहुल और विस्मय के आनंद की ऊंचाइयाँ  रोमांचित कर देती है. किसी पहाड़ी की ऊंचाइयों से आसपास नजर डालने पर आपको कोयला खदानों की रोशनी और चलती हुई मशीनरी बेल्ट कन्वेयर दिखाई देगी जो इस क्षेत्र के व्यवसाय की कुंजी है और बाजार को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है

सतपुड़ा की पहाड़ियों पर बसे भोले बाबा के मंदिर सिद्ध बाबा
समय के परिवर्तन के साथ अब उबड़ खाबड़ रास्ते को समतल करने की कोशिश जारी है.   जंगलों के बीच से पेड़ो को काटकर  मंदिर तक पहुंचने के लिए  कंक्रीट की सड़क बनाकर रास्ता आसान बना दिया गया है. रेतीले चट्टानों के बीच से बनाई गई सड़क पर वन विभाग द्वारा सड़क के दोनों और बरगद, पीपल, जामुन, एवं सदाबहार पौधे का पौधारोपण कर रास्ते को पर्यावरण के अनुकूल अच्छा बनाने की कोशिश की गई है. मनेन्द्रगढ़ की 45 वर्षों की साहित्यिक एवं पर्यावरण सचेतक संस्था संबोधन साहित्य एवं कला विकास संस्थान द्वारा इस मार्ग पर सूख गए पेड़ों को पुनर्जीवित करने हेतु पुनः पौधा रोपण कर कई पेड़ों को जीवन देने की कोशिश कर रही है. जो पेड़ बड़े होकर इस मार्ग की शोभा बढ़ाएंगे, वहीं पशु पक्षियों और यात्रियों को सुस्ताने के लिए आरामदायक छाया देंगे. संस्था ने एक अभियान चलाकर इसे हरा भरा करने का प्रयास कर रही है. इसके अंतर्गत यहां आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को अपने साथ एक मुट्ठी बीज लेकर आना है और इसे इस पहाड़ी पर बिखेर देना है.प्रकृति इन बीजों को बहाकर अपने अनुसार जीवित कर लेगी, ऐसा हमारा विश्वास है. यह बीज आम, जामुन, चार चिरौंजी, बेर, या अन्य फलों के बीज हो सकते हैं. आपका यह बीज अर्पण भोलेबाबा की सबसे बड़ी सेवा होगी. पहाड़ियों की ऊंचाई पर समतल क्षेत्र तथा मंदिर के आसपास ग्रीन वैली संस्था के प्रयास से कनेर एवं सदाबहार पौधों का रोपण एक प्रशंसनीय प्रयास है.जो कटे हुये जंगल की कुछ सीमा तक भरपाई करने मे सफल होगा और फूलों के रंगो से पहाड़ी को भरने की सफल कोशिश साबित होगी.
साल (सरई), तेंदू, चार- चिरौंजी, चिरायता, गुड़मार एवं कुल्लू गोंद के पेड़ों के मिश्रित वन अपने हृदय  में  कई यादों को  समेंटे हुए हैं. आज से 50 साल पहले कल्लू के पेड़ों पर खुदाई कर लिखे नाम बड़े अक्षरों में खोदे हुए आज भी देखे जा सकते हैं . 70 साल पूर्व बने इस  मंदिर का जीर्णोद्धार करने का कार्य  अब कुछ युवा हाथों ने  संभाला है. मनोज कक्कड़,  विकास श्रीवास्तव ने  सिद्बबाबा निर्माण समिति और जन सहयोग से भोले बाबा के मंदिर को केदारनाथ मंदिर के सुंदर स्वरूप में निर्माण करना प्रारंभ कर दिया है जो अब अंतिम चरण में है. कार्यालय एवं विश्राम गृह के निर्माण के साथ यह  पर्यटन स्थल एवं ईश्वरीय आस्था का केंद्र सिद्ध बाबा मंदिर और भोले बाबा का आशीर्वाद मनेन्द्रगढ़ को नई ऊंचाइयां प्रदान करता रहेगा. लोगों का यह विश्वास आज भी हमारी पूंजी है जो विकास के नए द्वार खोलने के लिए आतुर हैं.  एक बार इस सिद्ध बाबा पहाड़ी के भोले बाबा से आशीर्वाद लेने जरुर जाए. निश्चित मानिए आपकी आस्था आपके विश्वास को जगाए रखेगी और प्रकृति की खुशियों का खजाना आपकी सारी चिंता समाप्त करने का माध्यम बनेगी.


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