छत्तीसगढ़

ठाकुर प्यारेलालसिंह, आंदोलनकारी से लेकर विस में नेता प्रतिपक्ष तक

वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से.. {किश्त 186 }

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ठा. प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ में श्रमिक आंदोलन के सूत्रधार,सहकारिता आंदो लन के प्रणेता थे। जन्म 21 दिसंबर सन1891 को राज नांदगाँव जिले के दैहान ग्राम में हुआ था। उनके पिताजी दीनदयाल सिंह, माता का नाम नर्मदा देवी था। दीन दयाल सिंह शिक्षा विभाग में एक अधिकारी थे। ठा.प्यारेलाल सिंह की प्रारंभिक शिक्षा राजनांदगाँव में हुई। रायपुर के गवर्नमेण्ट हाई स्कूल से मैट्रिक, हिसलाॅप कॉलेज नागपुर से ही इंटर मीडिएट पास किया। जबलपुर से बीए, इलाहबाद से वकालत पढ़ी। विद्यार्थी जीवन में मेधावी, राष्ट्रीय विचारधारा से ओत प्रोत थे। ठा.प्यारेलाल के संघर्ष की शुरूआत उनके छात्र जीवन से ही हो गई थी। शिक्षकों के अविवेकी निर्णयों,राजपरिवारों के बालकों की उद्दण्डता को ठीक करने का बीड़ा उन्होंने उठाया। उनके नेतृत्व में एक बाल टोली बनी,1905 -06 में गरीब छात्रों को शिक्षा से वंचित करने के लिए फीस बढ़ा दी, यूनिफार्म अनिवार्य कर दिया गया। प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में छात्रों ने इसके विरूद्ध आंदोलन किया, सफलता प्राप्त की 1906 में ठा.साहब बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों के संपर्क मेंआए, क्रांतिकारी साहित्य का प्रचार करते हुए राजनीतिक जीवन की शुरू आत की। विद्यार्थी जीवन में ही सन् 1909 में राजनांदगाँव में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की। क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार-प्रसार का अच्छा माध्यम सिद्ध हुआ।1928 में ब्रिटिश सरकार ने इस पुस्तकालय में ताला लगा दिया।वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद ठाकुर साहब वकालत करने लगे। पहले दुर्ग में वकालत की फिर रायपुर में। जल्दी उनकी गणना प्रतिभाशाली वकीलों में होने लगी। निर्धन तथा कमजोर लोगों को न्याय दिलाने वे सदैव तत्पर रहते।अप्रेल 1920 में उनके नेतृत्व में राजनांदगाँव की बीएनसी मिल के मजदूरों ने हड़ताल कर दी। यह देश की सबसे लम्बी हड़ताल थी,जो 37 दिनों तक चली। अंत में मजदूरों की माँगें पूरी हुई। इससे मजदूरों की प्रति वर्ष एक लाख की आमदनी बढ़ गई।इसी वर्ष गांधीजी के आह्वान पर वे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े,वकालत छोड़ दी। खादी- स्व देशी का खूब प्रचार- प्रसार किया। उन्होंने पं. बलदेव प्रसाद मिश्र के साथ राज नांदगाँव में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की थी 1924 में राजनांदगाँव के मिल मजदूरों ने ठा.प्यारेलाल के नेतृत्व में पुनः हडताल कर दी। कई गिरफ्तारियाँ हुई । उन पर सभा लेने,भाषण देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। राजनांदगाँव छोड़ने के लिए मजबूर किया गया पर वे मजदूरों की माँगें पूरी होने के बाद ही राजनांदगाँव छोड़े। वे स्थायी रूप से रायपुर में बस गए। पं.सुंदर लाल शर्मा के अंत्योद्धार कार्य में सहयोग किया।बाद में ठाकुर साहब ने छत्तीसगढ़ में शराब भट्ठियों में पिकेटिंग, हिंदू- मुस्लिम एकता,नमक कानून तोड़ना, दलित उत्थान जैसे अनेक कार्यों का संचालन किया।आजादी आंदोलन में भाग लेते हुए वे अनेक बार जेल गए, यातनाएँ भी सहीं, मनोबल तोड़ने के लिए घर पर छापा मार सारा सामान कुर्क कर दिया गया। वकालत की सनद भी जब्त कर ली गई, परंतु वे अपने मार्ग से नहीं हटे।1934 में जेल से छूटते ही महाकोशल प्रांत कांग्रेस कमेटी का मंत्री चुना गया।1936 में पहली बार सी पी एंड बरार विधान सभा के सदस्य चुने गए। वे नेता प्रतिपक्ष भी रहे।राजनैतिक झंझावतों के बीच वे तीन बार (1937,1940 व 1944) रायपुर नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गए। वे हर बार प्रचंड बहुमत से चुने जाते थे। उन्होंने कई स्कूल,दो अस्पताल खोले, सड़कों पर तारकोल बिछवाई और बहुत से कुँए खुदवाए।छग के बुनकरों को संगठित करने के लिए 6 जुलाई 1945 को छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ की स्थापना की। मृत्युपर्यंत उसके अध्यक्ष रहे।छत्तीसगढ़ कंज्यूमर्स,मप्र पीतल धातु निर्माता सहकारी संघ, विश्वकर्मा औद्योगिक सह कारी संघ,तेलघानीसहकारी संघ, ढीमर सहकारी संघ, स्वर्णकार सहकारी संघ आदि अनेक संस्थाओं का निर्माण किया। छत्तीसगढ़ में सहकारी आंदोलन के पुरोधा थे।छग की रियासतों का भारतीय संघ में विलय कराने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रवासी छत्तीसगढ़ियों को शोषण, अत्याचार से मुक्त कराने की दिशा में भी वे सक्रिय रहे।1950 में प्यारेलाल सिंह ने ‘राष्ट्रबंधु’नामक अर्ध साप्ताहिक भी शुरू किया। वे संस्थापक,  प्रधान सम्पादक थे। वे हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी के विद्वान थे। इतिहास, राजनीति,धर्म, दर्शन के क्षेत्र में उनका ज्ञान अगाध था। ग्रामीणों के बीच वे अपना भाषण छत्तीसगढ़ी, सामान्य बोलचाल की भाषा में देते थे,वैचारिक मतभेदों के कारण ठा.प्यारे लाल सिंह ने कांग्रेस से त्याग पत्र दे दिया वैचारिक मत भेदों के कारण सत्ता पक्ष को छोड़कर आप आचार्य कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी में शामिल हुए। 1952 में रायपुर से विधानसभा के लिए चुने गए तथा विरोधी दल के नेता बने। विनोबा भावे के भूदान एवं सर्वोदय आंदोलन को छत्तीसगढ़ में विस्तारित किया। 20 अक्टूबर 1954 को भूदान यात्रा के समय अस्वस्थ हो जाने से उनका निधन हो गया। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सहकारिता क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए ‘ठाकुर प्यारेलाल सिंह सम्मान’ स्थापित किया है।


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