छत्तीसगढ़

ब्रिटेन की महारानी के ताज जैसे अष्टकोणीय भवन का इतिहास करीब डेढ़ सौ साल पुराना

वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से....{किश्त 183}

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छ्ग की राजधानी में एक भवन स्थापत्य कला का अनूठा नमूना है। आठ कोण,उन पर लगे तीखे मेहराब, हर दो कोण के बीचोँ-बीच लगीं गोलाकार खिड़कियां,उन पर जाली दार आकृति। यह हू-ब-हू ब्रिटेन की महारानी के ताज जैसा लगता है। यह भवन करीब 150 साल पुराना इतिहास अपने में समेटे हुए है। मेहराबदार पत्थर से बनी यह अष्टकोणीय सफेद इमारत,आज हल्की धुंधली हो गई है। इस ऐतिहासिक धरोहर का रंग उड़ गया है। इसे आज महाकौशल कला वीथिका के नाम से जाना जाता है।इतिहासविदों की मानें तो राजनांदगांव के राजा महंत घासीदास के दान से 1875 में इस भवन का निर्माण कराया गया था। पुरातत्व संग्रहालय स्थापित किया गया,जहां छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्य में मिले ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, प्राकृतिक महत्व की सामग्री रखी गईं,इसकी सुरक्षा लिए भवन की दीवारें 24 इंच मोटी बनी थीं।संस्कृति विभाग में संग्रहालय बनने के बाद1965 में ये इमारत महाकोशल कला परिषद को सौंप दी।1875 में इस भवन के निर्माण के बाद भवन को संरक्षित इमारत घोषित करने 1986 में पहली अधिसूचना जारी की गई थी, लेकिन अभी तक भवन संस्कृति, पुरातत्व विभाग ने अपने कब्जे में नहीं लिया है। यह आज भी पूरी शान से खड़ा है, मगर इसे धरोहर के रूप में संरक्षित करने की जरूरत है। इतिहासकार कहते हैं कि भवन ऐतिहासिक है,ऐसे भवनों का निर्माण अब नहीं होता है,इसलिए जरूरी है कि इसे संरक्षित किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ियों को कुछ तो देखने को मिले।महाकौशल कला परिषद को इस भवन का आधिपत्य 1965 में राज्य शासन ने दे दिया था। तब परिषद के संस्थापक कल्याण प्रसाद शर्मा थे,जो मूलतः कलाकार थे। सांस्कृतिक विभाग परिसर में स्थापित महंत घासीदास संग्रहालय भारत के 10 प्राचीन संग्रहालय माने जाते हैं। समय के साथ-साथ क्रिएटिव आर्किटेक्चर की संख्या बढ़ ने के कारण 1953 में नवीन संग्रहालय भवन का निर्माण हुआ,जो महंत घासीदास संग्रहालय के नाम से प्रसिद्ध हुआ।इस भवन का शिलान्यास भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने किया था। उस समय मध्यप्रदेश के राज्यपाल डॉ.पट्टाभि सीता रामैया, पहले मुख्यमंत्री पं. रवि शंकर शुक्ल थे।नवीन संग्रहालय भवन के निर्माण हेतु रानी जोयती देवी ने महंत घासीदास की स्मृति डेढ़ लाख रुपये दान दिये थे। अभी इस भवन के पिछले हिस्से में संग्रहालय, बाकी हिस्सों में से अधिकांश क्षेत्र में संस्कृति विभाग संचालनालय का ऑफिस है। रानी जोयती देवी संग्रहालय के सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना के लिए भी महंत सर्वेश्वरदास की स्मृति में 50 हजार रुपये दिए गए थे। पुस्तकालय वर्तमान में शहीद स्मारक भवन में संचालित है।


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