छत्तीसगढ़

तुलेन्द्र, चैतन्य से “स्वामी आत्मानंद” बनने का सफरनामा

वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से....{किश्त197 }

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स्वामी आत्मानंद,रामकृष्ण मिशन के एक संत,समाज सुधारक,शिक्षाविदथे,उनका जन्म रायपुर में हुआ था, पिता धनीराम वर्मा, स्वतंत्र ता संग्राम सेनानी, शिक्षक थे।महात्मा गांधी केआह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। गिरफ्तारी हुई, नौकरी भी छूट गयी। वर्धा आश्रम में गांधीजी के साथ रहे।स्वामी आत्मानंद, तब तुलेन्द्र,चार साल के थे तब वे वर्धा आश्रम में गांधी का प्रिय भजन- ‘रघुपति राघव राजा राम ‘ हारमोनियम पर गाकर सुनाते थे। वे बहुत कुशाग्र थे। गणित विषय में नागपुर से स्नातकोत्तर की परीक्षा उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल कर उत्तीर्ण की थी। तब छत्तीसगढ़, सीपी बरार प्रांत का हिस्सा था।नागपुर में ही विवेकानंद आश्रम से उन्हें स्वामी विवेकानंद के पथ पर चलने की प्रेरणा मिली।आइसीएस (इंडियन सिविल सर्विस) की परीक्षा में टाप दस में थे,इसके बाद भी वह कलेक्टर नहीं बने बल्कि स्वामी विवेकानंद आश्रम में शामिल हुए। विवेकानंद रायपुर में भी अपने बचपन में रहे थे।कलकत्ता के बाद रायपुर में ही उन्होंने अपने जीवन का सबसे ज्यादा समय गुजारा।इंदिरा गांधी, राज्य सरकार के अनुरोध पर स्वामी आत्मानंद ने आश्रम, विद्यालय भी खोले । स्वामीजी ने रायपुर में आश्रम खोला, कड़ी मेहनत की। मगर उसी वक्त अकाल पड़ा। स्वामी ने आश्रम के लिए जमा किए सारे पैसे अकाल पीड़ितों की सेवा में खर्च कर दिये । जगह- जगह आश्रम खोले। इंदौर, भिलाई,अमरकंटक में आश्रम खोले। इसी दौरान उनकी मुलाकात तब पीएम इंदिरा गांधी से हुई।उनके अनुरोध पर स्वामीजी ने नारायणपुर में आश्रम खोला और विद्यालय भी स्थापित किया।स्वामी आत्मानंद को बचपन में तुलेंद्र के नाम से पुकारते थे। तुलेन्द्र 6 अक्टूबर 1929 को रायपुर के बरबंदा गांव में जन्म लिया था ।उनके पिता धनीराम वर्मा स्कूल में शिक्षक रहे, माता भग्यवती देवी एक गृहणी थीं। परिवार शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ा था,लिहाजा बचपन से पढ़ने लिखने, लोगों की सेवा का शौक रहा। स्वामीजी के पिता अक्सर गांधी जी के सेवा आश्रम में जाया करते रहे। साल 1949 में तुलेन्द्र ने बीएससी की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ पास की। साल 1951 में स्वामी जी ने एमएससी (गणित) में प्रथम स्थान प्राप्त किया, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए चले गए,जल्द अपनी लगन के दम पर सिविल सेवा की परीक्षा भी पास कर ली।पर अंतिम चरण की चयन प्रक्रिया में शामिल नहीं हुये । पढ़ाई के दौरान ही उनकी रुचि समाज सेवा, शिक्षा के प्रसार को लेकर बढ़ने लगी थी। बाद में स्वामीजी की रुचि समाज सेवा को लेकर बढ़ने लगी। पुणे के धन टोली में जाकर एक आश्रम में रहने लगे,वहीं आश्रम में रहने के दौरान संन्यास ले लिया।वक्त बीतने के साथ साथ तुलेंद्र,’चैतन्य’ बन गए संत रुप में जीवन बिताने लगे। माना जाता है कि1960 को चैतन्य ने संन्यास लिया,बाद में लोग उन्हे स्वामी आत्मानंद के नाम से पुकारने लगे, समाज सेवा को देखते हुए मप्र सरकार ने जनवरी 1961 में उन्हें आश्रम निर्माण के लिए 93,098 वर्ग फीट जमीन दी।13 अप्रैल 1962 को इस आश्रम का उद्घाटन हुआ।रायपुर में आज जिस खूब सूरत विवेकानंद आश्रम को देख रहे हैं, वह उनकी कड़ी मेहनत का नतीजा है।स्वामी आत्मानंद छग के लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा करते रहे जो भी पैसा उनके पास होता वो सेवा भाव से जरुरतमंदों के बीच बांट दिया करते थे।राज्य सरकार के विशेष अनुरोध पर स्वामी ने नारायणपुर में आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा के स्कूल का शुभारंभ किया। युवा सशक्तिकरण और नैतिक शिक्षा के लिए उनके किए गए कामों की आज भी तारीफ होती है।स्वामी ने समाज के दबे कुचले लोगों के उत्थान के लिए अपना सारा समय और संसाधन लगा दिया, स्वामी को विश्वास था कि ‘शिक्षा बड़े पैमाने पर सामाजिक परिवर्तन लाने का एक शक्तिशाली साधन है ” स्वामीजी ने शिक्षा को बढ़ावा दिया और सुनिश्चित किया कि बच्चों, युवाओं को अपने पुस्तकालय में अच्छी किताबें, पत्रिकाएं मिल सकें।बुजुर्गों, बीमारों की सेवा के लिए उन्होंने एक अस्पताल खोला ताकि लोगों को हर तरह का बुनियादी इलाज मुफ्त मिल सके स्वामी आत्मानंद एक इंसान नहीं बल्कि अपने आप में एक संस्था थे। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके योगदान को कभी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है। 27 अगस्त 1989 को नागपुर से रायपुर लौटते एक सड़क दुर्घटना में स्वामीजी की मृत्यु हो गई,उन्हें खारून नदी के तट पर अंतिम बिदाई दी गई।


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