छत्तीसगढ़

विश्व की एकमात्र अद्भुत रूद्र शिव प्रतिमा, जिसे 12 राशियों और 9 ग्रहों से भी जोड़ा जाता है..

वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से... (किश्त 181)

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छत्तीसगढ के ताला गांव में रुद्र शिव की अद्भुत प्रतिमा भारत नहीं विश्व में कौतुहल का विषय बनी हुई है।गांव बिलासपुर से 30 किमी दूर है,टीलों के उत्खनन से 5वीं शताब्दी के 2मंदिर मिले हैं देवरानी और जेठानी।देव रानी मंदिर के उत्खनन में 87-88 में शिव की विशाल प्रतिमा मिली जिसे रुद्र शिव नाम दिया गया है,प्रतिमा 9 फीट लम्बी,4 फीट चौडी है शिलाखंड पर बनी है।वजन 5-6 टन के बीच है।इसका अलंकरण 12 राशियों और 9 ग्रहों के साथ हुआ है।प्रतिमा में 11अंग विभिन्न जलचर -थलचर प्राणियों के हैं।ताला में महत्वपूर्ण मूर्ति कला लाल बलुआ पत्थर से बनी दो मीटर से ज़्यादा ऊँची आकृति है। जिसे रुद्र शिव कहा जाता है।मूर्ति कला का एक अनूठा नमूना है जो पुरातत्व इतिहास में कहीं और नहीं पाया जाता है।रुद्रशिव की अनूठी कला कृति है।इसे शिव के रूप मेंअनुमानित करने का एक और संभावित कारण यह है कि शिव को पशुपति नाथ, जानवरों के भगवान के रूप में भी जाना जाता है। यह आकृति इस छवि के शरीर के अंगों के रूप में गढ़ी गई विभिन्न जानवरों की आकृ तियों के माध्यम से उनके उस पहलू को दर्शाती है। लाल बलुआ पत्थर से बनी शिव की इस अनोखी मूर्ति को समझना जानवरों और इंसानों के चेहरे से बनेशरीर के अंग अनोखी आकृतिको बनाते हैं।सिर का वस्त्र साँप की कुंडलियों से बना है, नाक एक गिरगिट है जिस का अंत वृश्चिक जैसा है, मेंढक से बनी भौहें,अंडे के रूप में नेत्र गोलक,मोर जैसे कान,ठोड़ी के साथ केकड़ा – मछली से बनी मूंछें,कंधे मगरमच्छ का मुंह हैं,हाथी की सूंड भुजाएँ,साँप के मुँह जैसी उंगलियाँ…(कुछ लोग पंचमुखी नाग या पाँच मुँह वाला साँप कहते हैं)स्तनों पर मानव आकृतियाँ,पेट के रूप में एक गोल घड़े जैसी मानव आकृति,कुंभ को दर्शा सकती है,जांघों पर विद्याधर की आकृतियाँ – मत्स्य कन्या या जलपरियाँ हो सकती हैं,तराजू या तुला के समान हैं,जांघों के किना रों पर गंधर्व की आकृतियाँ, संभवतःमत्स्य कन्या भी, सिंह घुटनों के बल बैठा है, सिंह -हाथी जैसे पैर,दोनों कंधों पर रक्षक के रूप में दो सांप,एक और सांप पैरों के निचले हिस्से के पास पीछे से लिपटा हुआ था।पशु एवं ज्योतिषीय संकेत। जैसा कि देख सकते हैं कि इनमें कुछ जानवर विभिन्न ज्योतिषीय संकेतों से जुड़े हैं। हैरानी की बात यह है कि ह छवि के कुछ हिस्से टूटे हुए हैं, फिर भी इसकी पूजा की जाती है। एएस आई ने इसे एक छोटे से बाड़े में रखा है जिसे बंद रखा जाता है, लोग धातु के दरवाजे के माध्यम से भी इसकी पूजा करते हैं।देव रानी-जेठानी मंदिर परि सर,जहाँ यह मूर्ति वर्तमान में रखी गई है, गुप्तकाल के दौरान रखी गई थी,लेकिन इस विशेष मूर्ति की तिथि के बारे में कोई सुराग नहीं है। इसकी शैली भी इतनी अनूठी है कि इसे किसी निश्चित अवधि से जोड़ना मुश्किल है। विशालता को देखते यह प्राचीन काल से संबंधित हो सकती हैया यह बाद की लोककला हो सकती है…!


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