नगर में ऐसी साहित्यिक प्रतिभाएं हैं जिन पर शोध करके शोधार्थी प्रोफेसर बन रहे हैं, उनकी किताबें विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही हैं- प्रो.भागवत दुबे
मनेन्द्रगढ़। एमसीबी। श्रवण कुमार उरमलिया की कहानियां समय का सत्य उजागर करती हैं तो कुछ कहानियां मानव मन की उहापोह, पल पल बदलते विचारों को उजागर करती हैं
विगत दिवस कोरिया साहित्य व कला मंच द्वारा जनपद सभाकक्ष, मनेन्द्रगढ़ में आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में श्री उरमिला जी के कृतित्व पर बोलते हुए प्राचार्य, शा.लाहिड़ी कालेज डा.रामकिंकर पाण्डेय ने कहा कि उरमलिया जी की कहानियों में कहीं प्रेमचंद की झलक मिलती है तो कहीं जैनेन्द्र जैसा मनोविज्ञान भी उसी तरह उनके व्यंग्य भी उन्हें परसाई जी के बराबर खड़ा करते हैं
श्री पाण्डेय ने कहा कि उरमलिया जी कहानियों में तत्कालीन समय को बेहतरीन तरीके से उकेरते हैं उनका व्यंग्य उपन्यास नेपथ्य वध कहीं तीखे व्यंग्य कसता है तो कहीं इतना मार्मिक है कि दहला देता है
इस अवसर पर पूर्व प्राचार्य शा.लाहिड़ी कालेज व सशक्त साहित्यकार प्रो.भागवत दुबे ने कहा कि मनेन्द्रगढ़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है लेकिन अफसोस है कि इस नगर में प्रतिभाओं की कमी नहीं है लेकिन प्रतिभाओं को,नगर के महापुरुषों जैसे स्व.रतनलाल मालवीय आदि को उचित सम्मान नहीं मिलता यह शर्मनाक है मालवीय जी जिन्होंने संविधान सभा के सदस्य के रूप में सक्रिय भूमिका निभाई है उनका कहीं कोई नामोनिशान नहीं है नगर में ऐसी साहित्यिक प्रतिभाएं हैं जिन पर शोध करके शोधार्थी प्रोफेसर बन रहे हैं, उनकी किताबें विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही हैं कौन उनका सम्मान कर रहा है ?
प्रो.दुबे ने श्री उरमिला की कहानियों का विश्लेषण करते हुए कहा कि उरमलिया कहानियों में अपने समय के समाज, सामाजिक परिस्थितियों, मान्यताओं को बेहतर तरीके से उकेरने में सफल हैं
इसी तारतम्य में लेखक श्रवण कुमार उरमलिया ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कहा कि लिखना मेरा शौक नहीं बल्कि एक विवशता है। आसपास व्याप्त परिस्थितियां और घटनाएं मेरी संवेदनाओं को इस सीमा तक उद्वेलित करती हैं कि लिखना मज़बूरी बन जाता है। मैं समझता हूं कि हर इंसान अपने समय का सच होता है। इसलिए अपना दायित्व समझता हूं कि समय की नब्ज़ को पहचानूं और समय के दर्द को अभिव्यक्ति दूं।इस ख़तरे से मैं अनजान नहीं हूं कि यदि कहीं विचारों की आग सुलगाई जाती है तो सबसे पहले धुएं को अपने अस्तित्व पर सहना पड़ता है। यदि मैं अपने समय के प्रति वफादार हूं तो मुझे यह ख़तरा उठाना ही पड़ेगा।
इस अवसर पर पर्यावरण संरक्षण में लगे सतीश द्विवेदी, सतीश उपाध्याय, अनवर,कवयित्री मंजुला कौरव, गौरव अग्रवाल, रितेश कुमार श्रीवास्तव, वीरांगना श्रीवास्तव, मृत्युन्जय सोनी,रामचरित द्विवेदी,कार्टूनिस्ट जगदीश पाठक सहित अनेक साहित्य प्रेमी व गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे