छग में भी है महात्मा गांधी का मंदिर….8 4 देशों में भारत के राष्ट्रपिता की 110 से अधिक मूर्तियां…
वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से
यह सवाल बड़ा मौजू है कि हाड़-मांस का बना एक व्यक्ति अपने जन्म के150 साल बाद भी कभी भी असामयिक नही हुआ। जो लोग उसे मानते हैं और जो लोग उसके खिलाफ (?) खड़े हैं उन लोगों के लिये भी गांधी का होना जरूरी है। सहमति-असहमति ही विचारों की बुनियाद है। महात्मा गांधी को भारत का राष्ट्रपिता कहा जाता है। 6 जुलाई 1944 को राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित करने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस का हम गाहे-बगाहे अपमान तो नहीं कर रहे हैं…! छत्तीसगढ़ के धमतरी के एक गांव में महानदी के किनारे बापू का मंदिर है तो लन्दन की पार्लियामेंट स्क्वेयर में भी गाँधी दिख जाते हैं..। हिंदुस्तान! जिस इंसान ने अंग्रेजों से छीन लिया,उसी शख्स की तांबे से बनी सजीव मूर्ति, उन्हीं अंग्रेजों ने संसद के सामने ‘महत्वपूर्ण जगह’ पर लगाई है…ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरॉन ने,गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के शताब्दी वर्ष पर, इसका अनावरण किया था और याद रहे, ये वैश्विक गांधी भारत के आइकन नही है। गांधी की निजी शख्सियत है, यह उनका दैवत्व है। वैसे ही भारत, गांधी का रंगमंच भर है। यह सम्मान, उस शख्स की सहृदय स्मृति है,जिसके बारे में आइंस्टीन ने कहा- “आने वाली पीढियां यह विश्वास नही करेंगी, कि हाड़-मांस का ऐसा शख्स कभी इस धरती पर हुआ था “। ये आदिम जमाने में बुध्द, और ईसा के संदेशोँ की मौजूदा दौर में सततता है। इनका मूल एक है। ये फलसफा, किसी देश, किसी दौर के सफल राज नीतिक का यादगार भाषण नही। यह एक जीवन है, जीवन शैली है। शताब्दी में दुनिया ने दो महायुद्ध देखे। जब भाषा,धर्म, रंग, रेस के आधार पर उच्चताका युद्ध, मानवता को विनाश के मुहाने तक ले जाये, तो थके मन को गांधी की बातें उसे वापस मनुष्यता की तरफ लौटा लाती हैं।अमेरिका, जर्मनी, रूस, इटली, तमाम यूरोप,गांधी को मानवता का मसीहा समझता है। तो इसका भारत से लेना देना नही है।100 सालों से गांधी की अहिंसा को कमजोरी बताया गया है। उनके राज नैतिक निर्णयों पर सवाल हुए,टिप्पणियां हुईं और होती भी रहेंगी? गांधी पर हर किस्म का विमर्श खुला हुआ है।लेकिन चीन में माओ, पाकिस्तान में जिन्ना, वियतनाम में होची मिन्ह की आलोचना का विमर्श खुला नही। आप लिंकन और बेंजामिन फ्रैंकलिन पर सवाल कर नही ही सकते ?लेकिन गांधी, नकारने के लिए भी उपलब्ध हैं। उन्हें मानिये, या न मानिये यह आपकी मर्जी है..! पर यह तय है कि गांधी से दूर जाता हर मार्ग भयावह है। नफरत, दुश्मनी,विनाश की ओर लेकर जाता है।लेकिन गांधी मरे नही हैँ बल्कि वह फैल गये हैं , दुनिया के हर कोने में….। आज ब्रिटेन सिकुड़ चुका है और जितने देशोँ में गांधी की मूर्तियां लग चुकी, उस साम्राज्य में सूरज अस्त नही होता…।आज भारत से उन्हें हटाने की कोशिशें हो रही है..!लेकिन गांधी जरा भी नहीं हिलते।वह अपने कातिलों से निगाहें मिला रहे हैँ… , हिंदुस्तान में ठठा रहे हैं …। गांधी या बापू के प्रशंसक दुनियाभर में फैले हुए हैं। दुनिया के 84 देशों में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की 110 से अधिक मूर्तियां लगी हुई हैं।इनमें पाकि स्तान,चीन, ब्रिटेन,जर्मनी अमेरिका भी शामिल हैं।विदेश मंत्रालय की वेब साइट के अनुसार अमेरिका में बापू की 8 मूर्तियां हैं, जबकि जर्मनी में ब्रिमेन शहर सहित उनकी 11प्रति माएं उस देश में स्थापित हैं।रूस और कम्युनिस्ट देश चीन तक में उनकी मूर्तियां लगी हैं।इन देशों में हैं एक से अधिक प्रतिमाएं हैँ।स्पेन के बुर्गस शहर में महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाई गई है जहां वह इसे प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में प्रचारित करता है। ब्रिटेन के लिसेस्टर, गांधी की प्रतिमा स्थापित है। अमेरिका के वॉशिंगटन के बेलेवुए में बापू की आदमकद प्रतिमा स्थापित है।दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी की तीन प्रतिमाएं स्थापित हैं जहां बापू ने सबसे पहले सत्या ग्रह का प्रयोग किया था ।श्रीलंका के छापामार संग ठन लिट्टे के गढ़ जाफना में बापू की प्रतिमा स्थापित हैँ।कनाडा में ओंटारियो सहित विभिन्न शहरों में 3 प्रतिमाएं स्थापित है,इटली,अर्जेटीना, ब्राजील और आस्ट्रेलिया में गांधी की 2-2 प्रतिमाएं हैं।रूस के स्विट्जरलैंड और मास्को के जिनिवा में बापू की प्रतिमाएं हैं। इराक, इंडो निशया, न्यूजी लैंड, पोलैंड, दक्षिण कोरिया,सिंगापुर, सर्बिया, मलेशिया, यूएई, युगांडा, पेरू, फ्रांस, मिस्र, फिजी, इथोपिया, घाना, गुयाना, हंगरी, जापान,बेला रूस, बेल्जियम,कोलंबिया, कुवैत, नेपाल, मालावी,तुर्क मेनिस्तान, कतर, वियत नाम, सऊदी अरब, स्पेन, सूडान, तंजानिया में भी बापू की प्रतिमाएं स्थापित हैं।क्या भारत की सरकार, राज्यों की सरकारें यह तय नहीं कर सकती कि बापू के खिलाफ टिप्पणी को ‘राज द्रोह’ माना जाए…? यह उनका कर्तव्य भी है और समय की मांग भी.!
महानदी के किनारे छ्ग में है गाँधी का मंदिर….
छत्तीसगढ़ में महात्मा गांधी का आगमन आजादी के पहले 2 बार हुआ था, वे पहली बार कंडेल सत्यागृह के लिए और दूसरी बार हरिजन उद्धार के सिलसिले में…! धमतरी जिले के ग्राम सखियारा में तब किसी ने गांधी का मंदिर बनाया था। कहा जाता है कि गंगरेल बांध सखियारा ग्राम में ही बनना था,कुछ निर्माण स्ट्रक्चर अभी भी मौजूद है पर आर्थिक खर्च अधिक बढऩे के नाम पर गंगरेल में बांध बनाया गया,धमतरी जिले के गंगरेल बांध के डूबान क्षेत्र के ग्राम सखि यारा में काफी पहले बापू यानि गांधी को देवता मान कर उनकी मूर्ति स्थापित कर मंदिर का निर्माण किया गया था। छ्ग की जीवन दायनी महानदी का पानी टकराने से मंदिर प्रभावित न हो इसके लिए मंदिर के पास बड़े बड़े पत्थरों की आड़ भी ग्रामीणों ने लगाई है,आज भी मंदिर के बाहर जय भारतमाता,जय जनता गांधी,जय महात्मा गांधी लिखा है। स्थापना 1989 -90 भी अंकित है, वहां के बुजुर्गों की मानें तो मंदिर काफी पुराना है 89-90 में तो जीर्णोद्धार किया गया है।सूत्रों की माने तो मंदिर में पहुंचने का मार्ग कष्टप्रद है। चरामा मार्ग से 40 किलो मीटर दूर इस मंदिर में पहुंचा जा सकता है। वैसे माडम सिल्ली होकर भी इस मंदिर में जाया जाता है पर लगभग 6 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। मंदिर में पूजा पाठ होता है, अगरबत्ती, दीपक जलाकर बापू को नमन किया जाता है वैसे राज्य सरकार, मंदिर का जीर्णोद्धार कर पहुंच मार्ग ठीक कराकर इस ऐतिहासिक मंदिर को संरक्षित कर गांधी विचार धारा को विस्तारित करने का प्रयास तो कर ही सकती है।