छत्तीसगढ़

जीवन मे समृद्धि के लिए मुट्ठी भर बीज फेंको आषाढ़ मास में

वीरेंद्र श्रीवास्तव की कलम से, पर्यटन एवं पर्यावरण चिंतन --07

Ghoomata Darpan


भारतीय संस्कृति के रंग खानपान, पहनावा एवं तीज त्यौहार  के विविध पक्ष ऋतु एवं मास परिवर्तन के साथ बदलते रहते हैं. अंग्रेजी पंचांग में जहां नया वर्ष जनवरी फरवरी जैसे माह से शुरू होते हैं, वहीं हिंदू पंचांग के अनुसार चैत, वैशाख, जेठ, आषाढ़, सावन, भादो, कुवांर, कार्तिक, अगहन, पूष, माघ, फागुन जैसे माह अपनी अलग पहचान के साथ वार्षिक कैलेंडर में स्थापित होते हैं. तपती जेठ की दुपहरी और गर्मी के समापन के साथ ही आषाढ़ का आगमन एक सुखद अहसास देता है जेठ की नौतपा काल का 9 दिन का समय जब ज्यादा गर्मी देता है तब मौसम वैज्ञानिक कहते हैं इस वर्ष अच्छी बारिश की संभावना है. गर्मी के साथ वातावरण में मनुष्य सहित समस्त जीव जंतु को जब आषाढ़ मास अपने आगमन के साथ ठंड का अआभास कराती है तब यह ऋतु हमें अच्छी लगने लगती है.

आषाढ़ मास अपने आगमन के साथ बारिश लाती है जो गर्मी को भी शांत करती है, वहीं आसपास के क्षेत्र में कई परिवर्तन साथ लेकर चलती है. जीवन की आपाधापी के मध्य मौसम के बदलते बदलाव को महसूस करने हेतु आपको थोड़ा समय निकालना होगा, आप गंभीरता से अपने आसपास देखेगे, तब आपको महसूस होगा कि आपके आसपास की धरती पानी से सराबोर होकर बहुत खुश हो गई है. छोटे-छोटे घास के बीच दूब एवं पेड़ पौधों ने फिर सिर उठाकर अपने ऊपर के आसमान को देखना प्रारंभ कर दिया है. छोटे-बड़े फूलों एवं फलों के पेड़ों ने मुस्कुराना प्रारंभ कर दिया है. हर नए पत्ते जो गर्मियों में छोटे-छोटे निकलने की कोशिश कर रहे थे अब हरे रंग का कवच पहनकर अपनी खूबसूरत तस्वीर प्रस्तुत करने लग गए हैं अपने आसपास की पहाड़ियों पर नजर डालें तब आप पाएंगे की पहाड़ियों को इसी आषाढ़ के पानी में नहला-धुला कर स्वच्छ एवं सुंदर पत्तों से सजीला बना दिया है. कभी-कभी यह भी लगता है कि यदि यह आषाढ़ का जल न बरसता तब इन पहाड़ों को नहलाता कौन. इन पर गर्मी में उड़ती हवाओं के साथ आई धूल की परतों को आखिर धोता कौन. क्या आपने कभी मनेन्द्रगढ़ के पास सिद्ध बाबा की पहाड़ी पर इस परिवर्तन को महसूस किया है. हमारी प्रकृति और भारतीय ऋतुओं का क्रम इसी प्रकार जीवन के बदलाव को भी परिभाषित करती रहती है.
जीवन में सुख-दुख की यात्रा अनुभव के बीच प्रकृति यह संदेश देने का प्रयास करती है कि जीवन में कष्ट के बाद फिर आनंद की उत्पत्ति होती है. इसलिए दुख के दिनों में कभी भी घबराना नहीं चाहिए. तपती जेठ की गर्मी जहां हमें बेचैन करती है वहीं बीजों एवं कई मौसमी पौधों को जमीन से बाहर लाने की एक ऐसी कोशिश होती है जिसके बिना जीवन संभव नहीं है. ग्रामीण इलाकों में पैदा होने वाली पूटू, खुखड़ी, बोडा जैसे जंगली लेकिन औषधि गुणों से युक्त अपनी अलग पहचान रखने वाली यह प्राकृतिक संरचना सब्जी के रूप में उपयोग की झाती है. इस पौधे का जीवन पेड़ों के जड़ों से एक विशेष मौसम में ही प्रारंभ होता है उनके लिए यह आषाढ़ का महीना और मौसम ईश्वर का वरदान है अन्यथा जैव विविधता की यह विरासत हमेशा के लिए समाप्त हो जाती. एक वर्ष पैदा होने के बाद उनके बीज वहीं जमीन में पड़े रहकर वर्ष भर इसी आषाढ़ की बारिश का इंतजार करते हैं. इसी तरह कई बीज जमीन के भीतर किसी सिद्ध योगी की तरह तपस्या करते हैं जिसका फल इसी आषाढ़ के जल और अंकुरण के साथ प्राप्त होता है.
हिंदू पंचांग में कोई भी माह कृष्ण पक्ष से प्रारंभ होता हैं एवं शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन समाप्त हो जाता हैं. प्रत्येक पक्ष में 15 दिन होते हैं वर्ष के 12 माह में कई बार एकम, द्वितीया या कई तिथियां एक साथ संयुक्त हो जाने से माह के कुल तिथियां को समायोजित किया जाता है. इसलिए कई बार एक ही दिन में दो तिथियां दर्शा दी जाती है. आषाढ़ मास हिंदू नव वर्ष का चौथा महीना होता है. आषाढ़ का प्रारंभ इस वर्ष आज अर्थात रविवार 23 जून 2024 को एकम एवं द्वितीया तिथि की संयुक्ति के साथ प्रारंभ हो रही है, जो आगे 21 जुलाई को शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के साथ समाप्त होकर झूलों और आध्यात्मिक पर्व के सावन को आगमन का आमंत्रण देगी. भारतीय जीवन शैली अपने ऋतुओं के अनुसार एवं हिंदू पंचांग पर आधारित होती है इसलिए यह यूरोपियन संस्कृति से अपनी अलग पहचान रखती है. समय और वक्त के बदलाव ने कई भारतीय पंचांग पर आधारित रीति रिवाज एवं तीज त्यौहार को प्रभावित किया है जो हमारे जीवन शैली को प्रभावित कर रही है, वहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हमें कमजोर कर रही है. यह माह.जैव विविधता की उत्पत्ति का सबसे सशक्त माह कहा जाता है क्योंकि लाखों जीव जंतु वनस्पतियां इसी माह में जन्म लेती है जिनमें से कई जीवन का कार्यकाल मात्र कुछ घंटों का होता है और कई जीव जंतु कुछ दिन या माह के जीवन के साथ पृथ्वी पर जन्म लेते हैं और इसी के अनुसार समाप्त हो जाते हैं. भारतीय आध्यात्म के अनुसार 84 लाख योनि में विविध जीव जंतुओं का जन्म मरण की कई प्रजातियां इसी आषाढ़ मास में जन्म लेती है इसी तरह हर हिंदू माह का अपना एक विशिष्ट महत्व होता है.
आषाढ़ मास से चौमासा भी प्रारंभ होता है. भारतीय परंपरा के अनुसार संत महात्मा योगी ऋषि मुनि इस चौमासा में अपनी यात्राएं स्थगित कर देते हैं. क्योंकि सभी संत महात्मा की सोच में इस मास में पैदा होने वाले जीव जंतु का जीवन हमारी यात्रा के दौरान पैरों के नीचे आने से समाप्त हो सकता है. संत महात्मा द्वारा विभिन्न जीव जन्तु, नव बीजांकुर के मार्ग में बाधक नहीं बनने की इच्छा रखते हुए किसी एक आश्रम या स्थान पर रहकर चौमासा बिताने की परंपरा रही है.

इसीलिए इस मास के साथ ही चौमासा तक किसी स्थल विशेष में ध्यान योग यज्ञ एवं सिद्ध करने की परंपरा रही है. किवदंतियों में छत्तीसगढ़ के जनकपुर मे मवई नदी के किनारे सीतामढ़ी हर चौका में इसी तरह आषाढ़ मास में भगवान राम ने अपना एक चौमासा व्यतीत किया था . अपने दैनिक संध्या पूजा आरती हेतु भगवान शिव के शिवलिंग की स्थापना की थी. प्रत्येक संत एवं महात्मा इस चातुर्मास में जप तप करते रहते हैं. इसका एक सशक्त कारण यह भी है की बारिश प्रारंभ अर्थात आषाढ़ माह से चौमासा तक शरीर की रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है. इसलिए भी यात्रा टालना न्यियोचित प्रतीत हुआ होगा. इस ऋतु में आयुर्वेद की दृष्टि से बासी भोजन खाने से भी परहेज करना उचित है.
आषाढ़ मास के समाप्ति के साथ हिंदू पंचांग में शुभ कार्यों पर प्रतिबंध लग जाता है. कहा जाता है कि इस मास के समाप्त होते ही भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा में चले जाते हैं इसी कारण से सभी शुभ कार्य बंद कर दिए जाते हैं. सूर्य को जल चढ़ाने एवं सूर्य के उपासना इस समय आपके परिवार के लिए सुख शांति एवं क्रांति आभा का द्वार खोलती है. आषाढ़ का आगमन आपको अपने घर के आसपास खाली भूमि पर या गमले में नई मिट्टी डालकर नए पौधों को लगाने की नई ऊर्जा और प्रेरणा देती है. आसपास की पहाड़ियों पर या सड़क किनारे पौधा रोपण करके भी आप एक विशेष आत्मिक शांति का सुख प्राप्त कर सकते हैं. जहां पौधे लगाने की सुविधा न हो वहां आप पहाड़ियों पर बीजों को फेंक कर फैला कर या पानी वाले स्थान पर डालकर भी पौधारोपण में सहयोग कर सकते हैं. बच्चों को बीज भरी मिट्टी की गोलियां गुलेल से दूर तक फेंकने का सुख भी आप इसके माध्यम से दे सकते हैं. यह बीज भरी मिट्टी की गोलियां किसी स्थान पर पहुंचकर पानी मिलते ही अंकुरित हो जाएगी और आने वाले समय में एक समृद्ध पेड़ आपके हाथों अनायास ही लग जाएगा. इसी तरह बच्चों के द्वारा पौधारोपण करवा कर उन्हें प्रकृति संरक्षण एवं वन विकास की नैतिक शिक्षा की ऐसी परंपरा सौंपने का कार्य आप करेंगे जो उन्हें अपने जीवन सहित आगामी पीढ़ी को यह स्वस्थ परंपरा आगामी पीढ़ी को सौपने की परंपरा के साथ जोड़ देगी. वह इसकी मिसाल देते हुए फुर्सत एवं शांति के क्षणों में आगामी पीढ़ी को बताएंगे कि मैं अपने माता-पिता से पौधों को लगाने से लेकर पेड़ बनने तक की प्रकृति संरक्षण का यह ज्ञान प्राप्त किया है. आपके ना रहने पर भी आपके बच्चे इसी माध्यम से आपको याद करते रहेंगे.

पर्यावरण चिंतन में शामिल इस वर्ष का आषाढ़ मास का आगमन आपके बच्चों के साथ आपकी भी प्रतीक्षा कर रहा है किसी पहाड़ी पर मुट्ठी पर बीच फेंकों अभियान, गुलेल से बीज भरे गोली फेंकने का अभियान, के द्वारा पौधों का अंकुरण और रोपण आपके बच्चों को प्रकृति संरक्षण की इस नई परंपरा से जोड़े देगा. आपके घर के आस-पास या अनायास गलत जगह पर उगे छोटे-छोटे पौधों में बरगद, नीम, पीपल या सीताफल के पौधों को सड़क किनारे या पहाड़ियों पर लगाने का उपक्रम करें. निश्चित मानिए आप और आपका परिवार खुशियों और आनंद से भर जाएगा. पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण की इस यज्ञ में इस आषाढ़ मास आपके द्वारा जमीन पर डाली गई बीजों की आहुति की तपस्या की शक्ति और समृद्धि आपके परिवार को खुशियों से भर देगी.
पर्यावरण चिंतन में
फिर मिलेंगे एक नए विचार के साथ….


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