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छत्तीसगढ़ के हिमाचली मलयागिरी चंदन के जंगल देखने, इस बार हमारी पर्यटन यात्रा हिमाचली मलयागिरी चंदन वनों  की ओर है…..

पर्यटन केंद्र 16 -- आईए चले पर्यटन के लिए पर्यावरण व धरोहर चिंतक वीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव की कलम से

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कीमती चंदनवन की छत्तीसगढ़ में पाए जाने की चर्चा आपकी जिज्ञासा बढ़ा देगी कि  आखिर हिमाचली मलयागिरी चंदन यहां कहां मिल  पाएगा. लेकिन  आपको जानकर हैरानी होगी कि  छ.ग. के एमसीबी  जिले के निवासी होने के नाते आप गर्व से कह सकते हैं कि मेरे जिला  मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ से 18  कि. मी. दूर ग्राम लाई (नागपुर) छ. ग. में     मलयागिरी श्वेत चंदन का 35  हेक्टेयर का विशाल जंगल है, जिसकी प्राकृतिक खुशबू और सौंदर्य से यह क्षेत्र परिपूर्ण है.  हसदो नदी का किनारा और डूमर पहाड़ की तराई के साथ-साथ चलता राष्ट्रीय राजमार्ग 43 के दोनों और सदाबहार पतली पतली पत्तियों से लदे हरे भरे सुंदर सदाबहार चंदन वनों की श्रृंखला आपको मुग्ध कर देती है. इन्हीं पहाड़ियों के बीच-बीच में ऊंचे ऊंचे बाँस के बीच  झुरमुट में झुके बाँस से ऐसा प्रतीत होता है मानो आपका रास्ता रोककर  कह रहे हों कि आओ  कुछ देर ठहर कर इन चंदन वनों के साथ हवा की शीतलता का आनंद ले लो फिर आगे बढ़ो. इसीलिए जर्मन से भारत आए इन्जीनियर ने चिरमिरी से लौटते हुए अपनी घड़ी में इस अंचल के पांच कि. मी. दूरी में 1.3 डिग्री  तापमान परिवर्तन पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए अपनी कार रोक कर चंदन पेड़ो की सुन्दरता पर मुग्ध हो गया था. अपनी व्यस्तता के बावजूद उसने एक घंटे का समय इस रास्ते पर दिया था.

पुरातन काल से हमारे आदि पुरुष ऋषि मुनियों के द्वारा माथे में चंदन का टीका लगाने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है समय के बदलाव के साथ हिंदू धर्म से विभाजित धर्म के भी यह चंदन का टीका माथे से हटकर गले या साधू सन्यासियों द्वारा बाहों में लगाए जाने लगा लेकिन चंदन का उपयोग टीका के लिए क्यों किया जाता है इस पर यदि विचार करें तब पता चलेगा कि माथे पर चंदन का टीका आपके माथे को ठंडकता प्रदान करता है और माथे पर आए क्रोध पर भी अंकुश लगाता है. जन्म से मृत्यु तक लगातार आपके साथ चलने वाला चंदन कभी मंदिर में भगवान विष्णु के माथे में सुशोभित होता है और आध्यात्म के हवन की अग्नि से लेकर चिता की अग्नि में भी अपनी महत्ता साबित करता है

सनातनी हिंदू संस्कृति का प्रतीक चंदन हमारे जीवन से जुड़ने का एक सीधा कारण ऋषि मुनियों की तपस्थली ज्यादातर हिमालय की पहाड़ियों के आसपास रही है इसकी पवित्रता तथा शीतलता को लेकर ही इसके साथ जुड़ाव रहा है हिमालय की तराई के मैदानी इलाके में इसकी उपलब्धता भी इसे विशेष महत्व प्रदान करती है इन्हीं तपस्थलियों के आसपास सुगंधित चंदन की उपलब्धता ने तपस्वी ऋषि मुनियों को इससे संभवतः जोड़ दिया होगा हालांकि नीचे के मैदान इलाके में प्राप्त चंदन के वनों की अलग तासीर के कारण इसमें बहुत खुशबू नहीं होने के बाद भी इसके महत्व को कम नहीं होने दिया गया और इसका नाम लाल चंदन रखा गया क्योंकि इसमें लेप लगाने वाले चंदन के अतिरिक्त औषधि युक्त होने के कारण इस चंदन का भी महत्व ज्यादा बढ़ गया. हमारे आपके घरों में भगवान के मंदिरों में रखा हुआ यही चंदन मिलता है जिसे हम भगवान के माथे पर लगाते हैं.

भारतवर्ष में किसी भी धर्म या जाति से आपका जुड़ाव हो लेकिन चंदन की जानकारी एवं महत्व से कोई अछूता नहीं है आज सौंदर्य प्रसाधन की हर सामग्री में चंदन का जिक्र जरूर रहता है लेकिन इसके महंगे होने के कारण घर में एक टुकड़े के अतिरिक्त या ज्यादा नहीं पाया जाता कारण स्पष्ट है कि हिमाचली तराई में पाया जाने वाला यह मलया गिरी चंदन यहां तक पहुंचने में बहुत महंगा हो जाता है एवं इसका औषधि उपयोग इसे बाजार मे और महंगा कर देता है. सौंदर्य प्रसाधन एवं चर्म रोगों की दवाओं में इसका ज्यादा से इसका ज्यादा उपयोग इसे कीमती बना देता है वर्तमान में इसकी कीमत ₹5 से ₹15000 तक प्रति क्विंटल रखी जा रही है. अपनी आस्था एवं आवश्यकता के अनुसार टुकड़ों में ही सही लेकिन यह मंदिर में स्थान रखता है. भारतवर्ष के राज्यों में कर्नाटक राज्य का नाम हिंदू संस्कृति के पुरातन प्रसिद्ध मंदिरों के लिए जाना जाता है लेकिन उसी के साथ एक और नाम कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन के लिए भी याद किया जाता है जिसने कर्नाटक के सरकारों की नींद उड़ा दी थी और वीरप्पन के कारण चंदन की तस्करी रोकने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स जैसे पैरा मिलिट्री को चंदन वनों की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया.

इसी  कीमती चंदनवन की छत्तीसगढ़ में पाए जाने की चर्चा आपकी जिज्ञासा बढ़ा देगी किआखिर हिमाचली मलयागिरी चंदन यहां कहां मिल  पाएगा. लेकिन  आपको जानकर हैरानी होगी कि एमसीबी  जिले के निवासी होने के नाते आप गर्व से कह सकते हैं कि मेरे जिला  मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ से 18  कि. मी. दूर ग्राम लाई (नागपुर) छत्तीसगढ़ के आसपास मलयागिरी श्वेत चंदन का 35  हेक्टेयर जंगल है, जिसकी प्राकृतिक खुशबू और सौंदर्य से यह क्षेत्र परिपूर्ण है.  हसदो नदी का किनारा और डूमर पहाड़ की तराई के साथ-साथ चलता राष्ट्रीय राजमार्ग 43 के दोनों और सदाबहार पतली पतली पत्तियों से लदे हरे भरे सुंदर सदाबहार चंदन वनों की श्रृंखला आपको मुग्ध कर देती है. इन्हीं पहाड़ियों के बीच-बीच में ऊंचे ऊंचे बाँस के बीच  झुरमुट में झुके बाँस ऐसा प्रतीत होता है मानो आपका रास्ता रोककर  कह रहे हों कि आओ  कुछ देर ठहर कर इन चंदन वनों के साथ हवा की शीतलता का आनंद ले लो फिर आगे बढ़ो. इसीलिए जर्मन से भारत आए इन्जीनियर ने चिरमिरी से लौटते हुए इस अंचल के पांच कि. मी. दूरी में 1.3 डिग्री  तापमान परिवर्तन पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए अपनी कार रोक कर चंदन पेड़ो की सुन्दरता पर मुग्ध हो गया था. अपनी व्यस्तता के बावजूद उसने एक घंटे का समय इस रास्ते पर दिया था.


चंदन की मुख्यतः भारत में दो प्रजातियां पाई जाती है लाल एवं श्वेत चंदन. इनमें से लाल चंदन कर्नाटक के साथ आंध्र प्रदेश के शेषाचलम पहाड़ियों में बहुतायत से पाया जाता है. लकडिय़ों का घनत्व ज्यादा होने के कारण यह लकड़ी भारी होती है और पानी में डालने पर डूब जाती है इसमें बिल्कुल सुगंध नहीं होती लेकिन औषधि युक्त होने के कारण इसका सबसे ज्यादा प्रयोग औषधीय में होता है और इसी कारण इसकी मांग और कीमत दोनों देश से लेकर विदेश तक ज्यादा है जिस कारण इस चंदन का तस्करी में ज्यादा उपयोग होता है. लाल चंदन का वैज्ञानिक नाम टैरोकार्पस सेंटर लाइनस है चीन जैसे देश में इसकी ज्यादा मांग होने के कारण ही चंदन वनों की सुरक्षा के लिए एसटीएफ को जिम्मा दिया गया है.
 श्वेत चंदन हिमालय की तराई में ज्यादा विकसित होने के कारण इसे हिमाचली मलयागिरी चंदन कहा जाता है इसी श्वेत चंदन के वन के एन एच 43 से मुख्यालय सै 13 किलोमीटर दूर से लेकर 22 किलोमीटर दूर सड़क के दोनों और विकसित हो रहे हसदो नदी के किनारे किनारे ठंडा वातावरण एवं जलवायु के कारण यह जंगल स्वयं ही विकसित होने लगे इस चंदन में सुगंधित तेल की मात्रा अधिक होने के कारण इसकी तस्करी करने एवं अर्ध विकसित पेड़ों की चोरी जब पत्र पत्रिकाओं की सुर्खियां बनने लगी तब अंचल की सांस्कृतिक एवं पर्यावरण सचेतक संस्था संबोधन साहित्य एवं कला परिषद मनेन्द्रगढ़ में अपनी चिंता में इसे शामिल कर लिया और 2003 में दो पहिया साइकिल यात्रा रैली का आयोजन कर जन जागरण का प्रयास किया गया.., जिसमें स्थानीय विधायक एवं संभ्रांत नागरिकों सहित बौद्धिक एवं बुद्धिजीवी वर्गों ने भी सहयोग किया और एक रिपोर्टिंग के द्वारा शासन प्रशासन का ध्यान इसके संरक्षण संवर्धन एवं विकास की ओर आकर्षित किया. संस्था के लगातार प्रयासों में तत्कालीन केंद्रीय वन मंत्री माननीय कमलनाथ ने राज्य सरकार को इसे संरक्षित करने का आदेश दिया तथा संबोधन संस्था को सहयोग प्रदान करने हेतु निर्देशित किया. धीरे-धीरे केंद्र एवं राज्य सरकारों के मिले-जुले प्रयासों ने आज लगभग 90 एकड़ चंदन वन की विशाल शृंखला हमारे आसपास बिखरे हुए हैं . धीमी गति से बढ़ने वाला यह चंदन का पौधा 10 एकड़ से विकसित होकर हंसदो नर्सरी के आसपास विकसित हो रहा है और इसे आगे हंसदो नदी के चर्चित अमृत धारा जलप्रपात की ओर भी रोपण के बाद विकसित करने का प्रयास जारी है. हसदो नदी की जलधारा से निर्मित जलवायु परिवर्तन एवं इसके बी ज के प्रसारण करने में मददगार चूचूहिया चिड़िया की उपस्थिति इसके विकास में सहायक है. चंदन के पौधे की भी अपनी अलग कहानी है चंदन के पौधे परजीवी पौधे होते हैं, जो स्वयं अपनी जड़ों पर नहीं बढ़ सकते. दूसरे पौधों की जड़ों में अपनी जड़े घुसा कर यह जीवित रहते हैं . मनेंद्रगढ़ के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 43 में विकसित हो रहे इन चंदन वन को फैलाने में यहां पहले लेंन्टाना के झाड़ियां एवं विशेष रूप से चूचूहिया (छोटी चिड़िया) का विशेष योगदान है क्योंकि इसके बीज कड़े होने के कारण आसानी से उगते नहीं है लेकिन पक्षियों अर्थात इसी चिड़िया के खाने के बाद पेट में बीज का पाचन नहीं हो पाता किंतु उसके ऊपरी हिस्से को अपनी पेट की गर्मी से कमजोर जरूर कर देते है , जो चंदन बीच के अंकुरण के लिए अनुकूल वातावरण पैदा कर देती है. लेन्टाना के फूलों पर बैठी चिड़िया जब बीट करती है तब अंकुरित चंदन के पौधे अपनी जड़े लेंन्टाना के जड़ों में डालकर अपने लिए भोजन पाती है, और धीरे-धीरे यही पौधे बड़े होकर जंगल का स्वरूप ले लेते हैं यही कारण है कि इस क्षेत्र के साथ-साथ आसपास के गांव के जंगलों में भी पहाड़ी खेतों पर भी चंदन के पेड़ अब विकसित होने लगे हैं सामान्यत चंदन समुद्र तल के 600 से 900 मीटर की ऊंचाई वाले जलवायु में विकसित होता है यहां विकसित होने वाले श्वेत चंदन के लिए यूकेलिप्टस लेंन्टाना झाड़ी के साथ अन्य पेड़ों के आसपास भी इसे विकसित होते देखा गया है

मनेन्द्रगढ़ से 18 किलोमीटर दूर नागपुर (लाई में वन विभाग की नर्सरी के प्रभारी विनय कुमार सिंह ने नर्सरी एवं पौधों की जानकारी देते हुए बताया कि मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना के अंतर्गत अब चंदन के पौधे अपने बाड़ी में लगाने के लिए भी लोगों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं पिछले वर्ष 2022-23 में लगभग 70000 चंदन पौधों की नर्सरी तैयार की गई थी उसके पहले भी छोटे-छोटे नर्सरी तैयार कर हम लोगों को चंदन के लगभग 2 लाख पौधे बांट चुके हैं. नर्सरी में चंदन के पौधों के साथ पहले छोटे अरहर का बीज भी डाला जाता था जिसकी जड़ों से पोषण प्राप्त कर चंदन धीरे-धीरे बढ़ता था, लेकिन वैज्ञानिक प्रयोग के बाद अब इसमें परिवर्तन कर लाल पट्टी की झाड़ियां अर्थात रेड एरिशन का उपयोग प्रारंभ कर दिया गया है जो छोटा एवं स्थानांतरित करने में आसान है और इसमें भी चंदन के लिए आवश्यक झखरा जड़े आसानी से उपलब्ध हो जाती है। 2023- 24 में दो लाख पौधों की नर्सरी अभी लगाई गई है बिहारपुर रेंज के वन क्षेत्र के कक्ष क्रमांक 766 में रॉकेट चंदन वनों की श्रृंखला सड़क के दोनों ओर आपको दिखाई देती है. वहीं अमृत धारा के जंगलों में कक्ष क्रमांक 781 में चंदन के पौधों का रोपण किया गया है कुछ पेड़ अब पांच – दस साल के विकसित हो गए हैं . सदाबहार वनों की प्राकृतिक सुंदरता के साथ चंदन की लकड़ी से लेकर पेड़ के छाल, जड़, टहनियो तक उपयोग होने वाला यह कीमती पेड़ आज हमारे आसपास के जंगलों में विकसित है और हम इस प्रकृति के साथ ईश्वर का ही वरदान मानते हैं जो इस चंचल के निवासियों के पुण्य प्रताप का फल कहा जा सकता है अब इस वन विभाग की नर्सरी में रक्त चंदन के पौधों की नर्सरी भी तैयार करने का प्रयास प्रारंभ कर दिया गया है लगभग 1000 पौधे प्रयोग के तौर पर तैयार करने में हम सफल रहे हैं क्योंकि इसके बीजों का अंकुरण का प्रतिशत काफी कम है लेकिन जल्दी ही यह क्षेत्र रक्त चंदन वनों के लिए भी अपनी पहचान साबित करेगा ऐसा हमारा विश्वास है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार सर्वप्रथम इस क्षेत्र में चंदन का वृक्ष लाने का श्रेय पी एम लार्ड (IFS) को जाता है जिनके द्वारा यहां की जलवायु को देखते हुए चंदन के पांच पेड़ लाए गए थे जिसमें से कुछ पौधे नर्सरी में और कुछ पौधे कोरिया राजा के पैलेस में लगाए गए थे. वर्ष 1984 मे रोपित पुराने चंदन के पेड़ आज भी नर्सरी में देखे जा सकते हैं. 15 – 20 वर्ष के चंदन पेड़ अपनी सुगंध के लिए पहचान बनाने में सक्षम हो जाते हैं. यही कारण है कि आसपास के घरों एवं वनों में लगाए गए चंदन की चोरी आज एक बड़ी समस्या बनकर उभर रही है. इसके चोरों को पकड़वाने में 2003 में प्रयासरत नर्सरी प्रभारी फारेस्टर अमृतलाल द्विवेदी को अंचल की पर्यावरण सचेतक चर्चित संस्था संबोधन साहित्य एवं कला परिषद मनेन्द्रगढ़ द्वारा प्रर्यामित्र अलंकरण से सम्मानित किया गया था. इस अलंकरण में पर्यावरण की चेतना हेतु अंतरराष्ट्रीय साइकिल यात्रा करने वाले चर्चित सतीश द्विवेदी पटेल एवं कुलदीप पटेल सहित तीन अन्य सहयोगियों को भी पर्यामित्र अलंकरण से सम्मानित किया गया था. इसी अवसर पर सर्वाधिक वृक्षारोपण जागृति के लिए कृष्णकांत मिश्रा को एवं नगरपालिका के वर्मा जी को नगरपालिका उद्यान मे विशेष औषधि पौधरोपण के लिए भी विशाल समारोह मे पर्यामित्र अलंकरण प्रदान किया गया था. यह उनके जीवन की उपलब्धियों का एक अहम् हिस्सा था.
चंदन की चोरी रोकने में ग्रामीणों की भूमिका अहम होती है वनों को चराई एवं आग से बचाकर विकसित करने में ग्रामीणों की भूमिका के बिना इसका विकास संभव नहीं है. अब तक प्राप्त जानकारी में चंदन वन से चंदन काटने वाले ज्यादातर लोग उज्जैन, इटावा से जुड़े रहे हैं क्योंकि जमानती अपराध होने के कारण वे जल्दी ही छूट जाते हैं. कई बार ऐसा भी हुआ है कि जमानत में छुटने वाला अपराधी पुनः दूसरे दिन फिर चंदन काटते गिरफ्तार कर लिया गया और दोबारा जेल भेज दिया गया. आश्चर्य तब होता है कि उज्जैन के गोलबा, खंडवा के निवासी चोरों की वकालत करने और छुड़ाने वाले लोग इटावा एवं कानपुर के वकील होते हैं जिससे इस तस्करी के कारोबार में लिप्त लोगों के बड़े सांठगांठ का भी पता चलता है. चंदन चोरों की ताकत का अंदाजा इस बात से पता चलता है कि  एस पी,  कलेक्टर के बंगलो के साथ  साथ नगर पालिका अध्यक्ष के निवास से भी चंदन के पेड़ रातों-रात काट लिए गए हैं .
प्राकृतिक चंदन वन का यह क्षेत्र बाल्मिक रामायण के अरण्यकांड के अनुसार भगवान राम के दंडकारण का यह क्षेत्र रहा है जिसे देवभूमि का दर्जा दिया गया था,क्योंकि यह ऋषि मुनियों के आश्रमों के साथ-साथ तपस्थली का हिस्सा रहा है. भगवान राम के लिए भी यह क्षेत्र प्रेरणादायी रहा है. भगवान राम ने हसदो के तट पर वर्तमान चंदन क्षेत्र के अमृत- धारा आश्रम में पहुँचकर वाम ऋषि से आशीर्वाद प्राप्त किया था. कई नदियों के किनारे किनारे चलते हुए वे यहां तक आए थे. इसी प्रकार भगवान शिव की आराधना स्थली जटाशंकर आश्रम से उन्होंने मंत्र शक्ति से धनुष बाण में शक्ति पैदा करने की शिक्षा ऋषि निदान से प्राप्त की थी. ऐसे अंचल में पैदा होने वाले चंदन वनों का अपना अलग महत्व है. एक बार अपने बच्चों के साथ इस चंदनवन को जरूर देखें और आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा पैदा करें. इसी तरह के चंदन वनों को सुरक्षित और संरक्षित रखने मे आप अपनी छोटी – बड़ी भूमिका का गर्व प्राप्त कर सकते हैं. आप एक सुगंधित चंदन का पेड़ अपने घर के पास बाड़ी में जरूर लगाए ताकि आपका अपना परिवार और घर भी इस सुवासित चंदन के सुगंध से परिपूर्ण रहे.और एक चंदन लगाने का गर्व हासिल कर सकें ।


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