छत्तीसगढ़

बस्तर में मृत आत्माओं को ‘घर’ देने की अनोखी परंपरा

वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से ....{किश्त 178 }

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मौत के बाद आत्मा शरीर छोड़ देती है। शरीर का तो अंतिम संस्कार जाता है, लेकिन यह सवाल आज भी कायम है कि आत्मा कहां जाती है।मानव सभ्यता में हर बात का ख्याल रखा गया है। दुनिया भर में आज भी हज़ारों सालों से चलीआ रही संस्कृति को आदिवासी समाज के लोगों ने जीवित रखा है।यह जानकरअचरज होगा बस्तर की आदिवासी बस्तियों में मृत हो चुके परिजनों की आत्मा को भी घर दिये जाने की परम्परा अभी भी क़ायम है।शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में ‘ताजमहल’ निर्माण कराया था, क्या आपनेसुना है कि किसी ने मर चुके परि जन की आत्मा के निवास के लिए अलग से घर बन वाया हो…?चाहें तो आप छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ जाकर गाँवों में आत्माओं का घर देख सकते हैं। गोंडी भाषा में एक शब्द है ‘आना कुड़मा’ जिसका मतलब है ‘आत्मा का घर’… मान्यता है कि इन्हीँ स्थानों में आदि वासियों के पूर्वज,उनकी आत्मा निवास करती है।

आना कुड़मा में नहीं
जा सकती महिलाएं…..

अबूझमाड़ के कुछ गांवों में हांडियों के भीतर पूर्वजों कीआत्माओं कोरखा जाता है वैसे बस्तर संभाग में कई स्थान हैं,जहाँ आदिवासियों की अनोखी मान्यताओं को देखा समझा जा सकता है। पूर्वजों यानि आत्माओं के लिए बने घरों में महिलाओं और लड़कियों का प्रवेश पूर्णरूप से प्रतिबंधित होता है,लेकिन विवाह की रस्म अदायगी से पहले पूर्वजोंका आशीर्वाद लेने वहां जाना जरुरी होता है। किसी शुभ कार्य के आयोजन में निमं त्रण देकरआदिवासी समाज अपने पितृदेव का आशी र्वाद लेने ‘आना कुड़मा’ में जरूर जाता है ।बस्तर के नारायणपुर और बीजापुर जिले में आत्माओं के लिए तैयार किये जाने वाले घरों को देखा जा सकता है।आदिवासी समाज में पितृदेव को रक्षक माना जाता है। पितृदेव यानि पूर्वजों का आशीर्वाद रहेगा, तो जीवन में संकट टल जाते हैं और बुरी आत्माओं से रक्षा होती हैं।यही वजह है कि आदि वासी समाज अपने पूर्वजों को भी एक अलग मंदिर में स्थान भी देते हैं, उनकी बोली में ‘आना कुड़मा’ का नाम दिया गया है।हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक आदिवासी पितर या पितृ पक्ष नहीं मानते है, पूर्वजों की पूजाअपनी रीति-रिवाज से करते हैं।

छोटे से कमरे में रहती हैं
पूर्वजों की आत्माएं…

आदिवासियों के पूर्वजों के रहने के लिए बनाया गया ‘घर ‘ एक छोटा सा कमरा होता है। जिसमें काफी मृद भांड रखी रहती हैं। आदि वासी समाज के पितृदेव का वास होता है।इसी तरह समाज में घरों में भी एक कमरा पूर्वजों का होता है। जानकार बताते हैं कि आत्माओं के घर के रख- रखाव को लेकर आदिवासी बेहद सावधानी बरतते हैं।


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