छत्तीसगढ़

पचराही,आदिमानव युग के हथियार,बर्तन,पुरानी मूर्तियां से लेकर जीवाश्व तक

वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से...{किश्त 185}

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कबीरधाम जिले में ऐसे कई स्थान हैं जहां कई पुरातत्व इतिहास के राज खुल सकते हैं। बोड़ला ब्लॉक के सिली पचराही में पुरात्व विभाग द्वारा 10 वर्ष पूर्व खुदाई शुरू की गई, खुदाई के दौरान आदिमानव युग के हथियार बर्तन, खिलौने मिले,जो अब तक छग में कहीं भी नहीं मिले थे। 15 हजार वर्ष पुराने मंदिर, मूर्तियां भी मिली। सबसे खास लगभग 15 करोड़ वर्ष पुराना जीवाश्व मिला है ।यह एक घोंघा था।पुरातत्व वेत्ता मानते हैं कि यह क्षेत्र करोड़ों वर्ष पहले समुद्र था..! यह राज्य ही नहीं बल्कि देश के लिए भी एक नई खोज रही। पचराही मुख्यालय कवर्धा से 45 किमी, ब्लाक मुख्यालय बोड़ला से 17 किमी दूरी पर उत्तर-पश्चिम दिशा में हाफ नदी के दाहिने किनारे स्थित है,पचराही का सामान्य अर्थ जहां पांच रास्ते मिलते हों या पांच रास्ते निकलते हों, लोक मान्यता में पांच रास्ते जिनको जोड़ते हैं,वे रतनपुर,सहसपुर, भोरमदेव,मंडला और लांझी हैँ। उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से लगता है कि यहां अपेक्षाकृत बड़ी बसाहट रही होगी। स्वर्ण- रजत सिक्के,महल,मंदिर के अवशेष,सम्पन्न व्यक्तियों राजपुरुषों के निवास करने को प्रमाणित करता है।पचराही के पुरातात्विक अवशेषों की जानकारी लोक मानस के अलावा इतिहास कारों/सर्वेक्षणकर्ताओं को भी काफी समय से रही है।आस-पास लोक-जीवन में प्रसिद्ध कंकाली टीला देवी मूर्ति के कारण ‘कंकाली देवी’ के नाम से जाना जाता रहा है। क्षेत्र का सर्वप्रथम सर्वे आर.जेनकिन्स द्वारा (संभवत:1830-40 के मध्य) किया गया,जिनकी रिपोर्ट ‘एशियाटिक रिसर्चेस वॉल्यूम 15 ‘ में प्रकाशित हुई थी। रिपोर्ट में दो शिलालेखों की प्राप्ति का उल्लेख किया है, उन्हें ध्वस्त मंदिर के पास ही प्राप्त हुआ था। इनमें से एक, तीन हिस्सों में खण्डित था कोई तिथि अंकित नहीं थी।दूसरे शिलालेख में 849 अंकित था जेन किन्स के बाद अलेक्जेंडर कंनिंगघम ने 1881-82 में क्षेत्र का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया।’आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया’ वॉल्यूम 17 में ‘रिपोर्ट ऑफ ए टूर इन द सेंट्रल प्रोविंसेस एंड लोवर गंगेटिक दोआब’ के नाम से भी प्रकाशित हुआ
कंनिंगघम ने रिपोर्ट में लिखा – कंकाली की मूर्ति ध्वस्त मंदिर के बाहर रखी हुई है, जो वीरान किले के अंदर है।कंकाली टीला(पचराही) बोरिआ के निकट होने से पचराही की अपेक्षा बोरिआ नाम का उल्लेख हुआ है। कंनिंगघम को जेनकिन्स द्वारा उल्लेखित’तीन हिस्सों में खंडित’ शिलालेख 849 अंकित भी प्राप्त नहीं हो सका,लेकिन एक शिलालेख प्राप्त हुआ जिसे उन्होंने सम्वत् 910 पढ़ा। शिला लेख दाढ़ीयुक्त हाथ जोड़े एक राजपुरुष की मूर्ति के पादतल (चौकी) में अंकित है।धानूलाल श्रीवास्तव(अष्ट राज अंभोज, 1925) के अनुसार,यह वही अभिलेख है जिसे जेनकिन्स ने 849 पढ़ा था। बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि अभिलेख युक्त मूर्ति अभी बूढ़ा महादेव मंदिर कवर्धा में है। पचराही के इतिहास में महत्व पूर्ण मोड़ तब आया जब विधिवत पुरातात्विक स्थलों का उत्खनन हुआ।उत्खनन 2007-09 के दौरान सोबरन सिंह यादव के निर्देशन, अतुल प्रधान के नेतृत्व में हुआ। उत्खनन से पचराही के इतिहास को नई रौशनी मिली, कई कड़ियाँ जोड़ने में मदद मिली। अवश्य कोई महत्व पूर्ण प्रस्तर अभिलेख प्राप्त नहीं हो सके,मगर विभिन्न राजाओं के सिक्के प्राप्त हुए हैं,जिनसे महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई हैं। इस उत्खनन से प्राप्त अवशेषों को उन्होंने पांच कालों में विभाजितकिया है,1,पूर्व ऐतिहासिक 2, उत्तर गुप्तकालीन (पांडु वंशी) 3,कलचुरी कालीन 4,फणि नागवंशी कालीन 5,इस्लामिक। पूर्व ऐतिहासिक काल के अवशेषों,माइ क्रोलीथिक औजार जैसे लुनेट (अर्ध चंद्राकार) ट्रेपेज (समलंब आकार) स्क्रेपर (खुरचनी) पाइंट (नोक) आदि प्राप्त हुए हैं। उत्तर गुप्तकालीन अवशेषों में कोई लिखित साक्ष्य प्राप्त नहीं है मगर उस काल की बड़ी वर्गाकार ईंटें प्राप्त हुई हैं। साथ ही पत्थर का बैल, टेराकोटा, कई पट्टिकाएं मिली,पार्वती,कार्तिकेय की अचिन्हित आकृतियां उत्कीर्ण हैं। कलचुरी कालीन पर्याप्त अवशेष प्राप्त हुए हैं, ईंटों से बने रहवास, किले बंदी के अवशेष, लोहे-तांबे के सामान,चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने का कारखाना सिक्के मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। सिक्कों में रत्नदेव का स्वर्ण सिक्का, प्रतापमल के दो स्वर्ण ,ताम्बे के सिक्के,रत्न देव के दो पृथ्वीदेव के एक, जाजल्यदेव के दो सिक्के मिले हैं।पचराही में फणिनाग वंशियों के पर्याप्त अवशेष मिले हैं जैसे सिक्के, मूर्तियां, वास्तु रूपांकन, भवन अवशेष,टेराकोटा आदि। इनमें नक्कड़देव का स्वर्णसिक्का श्रीधरदेव का रजत सिक्का यशोराज देव का एक रजत सिक्का जय त्रपाल के भी दो रजत सिक्के,फणिनाग वंशियों के सिक्के पहली बार मिले हैं,अभी तक विवरण केवल शिलालेखों में प्राप्त हुए थे।उत्खनन में इस्लामिक काल के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं, महत्वपूर्ण हैं।अलाउद्दीन खिलजी के 2 ताम्र सिक्के (1308-09) प्राप्त हुए हैं। यह व्यापार से आये होंगे। ब्रिटिशकालीन रजत सिक्का भी प्राप्त हुआ है,यह बाद के समय यात्रा करनेवाले व्यक्तियों के द्वारा आये होंगे।

जीवाश्म (फॉसिल)
भी मिला…..

पचराही में ही उत्खनन में मोलस्का फाईलम का एक जीवाश्म प्राप्त हुआ है, जो सर्पिलाकार (1-2 से.मी.) है। मैनकर दत्त (उप संचालक, भूगर्भ शास्त्र, रायपुर) के अनुसार यह जुरासिक काल के मोलस्क (20.3- 13.3 करोड़ साल पूर्व) के समान है,सम्भवत: किसी और क्षेत्र से यहां पहुंचा होगा, क्योंकि इस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियां उसको धारण करने के अनुकूल नहीं है।


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