यूवा प्रकोष्ठ ने याद किया छत्तीसगढ की करूणामयी_ममतामई मिनीमाता की स्मृति दिवस पर
रायपुर :::सतनामी समाज युवा प्रकोष्ठ के रायपुर जिला अध्यक्ष कमल कुर्रे ने बताया की सतनामी समाज में जन्मी ममतामई को याद करते हुए उनको नमन, पुष्पांजलि अर्पित करते हुए उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि, रायपुर पुराना बस स्टैंड पंडरी में माता जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया.
आगे कहा कि छत्तीसगढ में अकाल पडा था, सौ बरस पहले । लोग घर से बेघर हो गए । गांव के गांव खाली हो गए । पशु मर गये । नदी सूख गई । तालाब में पानी नहीं रहा । कुएं का जल भी सूख गया । सब गांवों की तरह सगोना गांव पर भी संकट आया । अकाल का संकट ।
पंडरिया मुंगेली के पास ग्राम सगोना रायपुर जिले का बडा गांव था । भरा-पूरा गांव । इस गांव के लोग भी अन्न-पानी को तरसते । हाहाकार मच गया । मजदूर गांव छोड कर भाग गए । फिर छोटे किसान निकल पडे । अंत में गांव के बडे किसान भी मजबूर हो गए । गांव वीरान होने लगा । जिसे जहां आसरा मिला, चल पडा ।
आजादी के बाद लोगों के मनाने पर वह चुनाव में भी खडी हुई बडे शान से वे देश की संसद में 1952 में चुनकर पहुंची, देश नें एक गुणी और सेवाभावी सांसद को पाया । यहां से वहां तक यश गाथा पहुचने लगी । कद से छोटी मगर सोंच से बडी थी मिनीमाता । छत्तीसगढ की नारियों का मान बढा ।
उनका दिल्ली का बंगला आश्रम बन गया विद्यार्थी वहां रह कर पढते, लेखक आश्रय पाते, पत्रकारों का बसेरा बना वह घर । मिनीमाता नें सबको अपना समझा, उन्होंने किसी बच्चे को जन्म नही दिया लेकिन हर बच्चा उन्हे अपना बच्चा लगा । मिनीमाता नें सपनों को धरती पर उतारा । मिनीमाता नें धन नही कमाया जन का मान पाया । छत्तीसगढ की मिनीमाता को सबने पहचाना ।
11 अगस्त1972_को_मिनीमाता यात्रा के लिए हवाई जहाज से निकलीं और जहाज भयानक आवाज के साथ नष्ट हो गया । मिनीमाता चल बसी । एक मशाल अचानक बुझ गयी । मिनीमाता की देह मिट गई नाम अमर हो गया ।
सबको जो साथ लेकर चलता है वही अमर होता है मिनीमाता नें समझाया था कि मानव मानव सब बराबर हैं बेटी बेटों में भेद नहीं हैं काम रह जाता है नाम रह जाता हैं । मिनीमाता के जीवन से यही संदेश मिलता है इस अवसर पर मोना खांडे, मोनी काठले विजय डाहरिय, मनीष रात्त्रे, नरोत्तम घृतलहरे जी संदीप गंगेले जी एवम बड़ी संख्या में समाज के लोग उपस्थित थे उक्त जानकारी मीडिया प्रभारी लक्षमण गेंदे प्रवीन, राहुल, आशीष, कुलेश्वर कुर्रे के द्वारा दीया गया