छत्तीसगढ़

लगभग 5 हजार साल पुराना महापाषाणीय क़ब्रसमूह विलुप्त होने की कगार पर….

वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से {किश्त 135}

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भारत का सबसे प्राचीन कब्रगाहोँ में से एक छग के बालोद जिले (पहले दुर्ग जिला) में धनोरा के विशाल क्षेत्र में फैला है।महापाषाण कालीन पुरातात्विक अव शेष विशाल कब्र समूह ग्राम करकाभाट धनोरा,की तरह की कब्र बस्तर, नागालैंड, मणिपुर,अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में भी पाए गये हैं,करकाभाट,धनोरा का कब्रसमूह सबसे बड़ा और विशाल है। महानदी और शिवनाथ नदी के मध्य में स्थित लगभग 10 किलो मीटर की परिधि में फैले महापाषाणकालीन पुरातात्विक अवशेष,विशाल कब्र समूह ग्राम करकाभाट में विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर स्व.अरुण कुमार शर्मा के अनुसार बालोद जिले के करकाभाट क्षेत्र का विशाल कब्रसमूह पांच हजार वर्ष पुराना है। छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के प्राचीन कब्र समूह में से एक समूह बालोद जिले के करकाभाट करहीभदर, टेंगनाबरपारा कपरमेटा,चिरचारी,सोरर, धनोरा, भरदा,करियाटोला आदि तक महापाषाण के अवशेष प्राप्त हुए हैं।भारत के इस पिछड़े क्षेत्र में भारत का अतीत छिपा है। मृतकों की स्मृति में स्मारक बनाए गये हैं।जिला मुख्यालय से 10 किमी दूरी पर धमतरी मार्ग में करकाभाट स्थित है।यह गांव महापाषाणीय स्थल के रूप में जाना जाता है,सड़क के दोनों ओर महापाषाणीय अवशेष है। माना जाता है कि इस क्षेत्र में कभी विशेष सभ्यता ही अस्तित्व में रही होगी..! जिनमें मृतकों की स्मृति में स्मारक बनाने की परम्परा होगी,जो आज भी लोगों को देखने को मिल रही है। बालोद- धमतरी मार्ग से गुजरने वाले महापाषाणीय स्मारक स्थल को जरूर देखते हैं। सड़क के ही किनारे में संस्कृति पुरातत्व विभाग का बोर्ड भी लगा हुआ है। जो सिर्फ खाना पूर्ति कर रहा है…! महापाषाणीय स्मारक स्थल की संस्कृति के बारे में पूरी जानकारी दी गई। पर पत्थर तुड़वाई के कारण महापाषाणीय स्थल को क्षति पहुंची है।मूल संरचना ही नष्ट हो गई है! कुछ अवशेष बचे हैं। यह स्थल नयापारा से मुजगहन तक फैला है। उस समय उत्तर की ओर आधार तल पर पत्थर से वृत्त,बोल्डर का उपयोग करके पिरामिडनुमा शिखर बनाया जाता था। प्रत्येक वृत्त के निर्माण में चारों तरफ गाेलाई में बोल्डर भर दिया जाता था। वैसे अन्य आदिम पुरातात्विक स्थलों की बात की जाए तो इस तरह की संरचना विशेष है ऐसा दुर्लभ मृत्यु स्मारक कही नही मिलता..!अब यह स्थल अतिक्रमण और बढ़ती आबादी का शिकार हो रहा है यदि यही आलम रहा तो वह दिन दूर नहीं जब करकाभाट की यह महापाषाणीय सभ्यता की धरोहर अस्तित्व ही खो देगी….!


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