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आध्यात्मिक आस्था का समंदर है “खडगवां का महामाया मंदिर”

पर्यावरण एवं धरोहर चिंतक वीरेंद्र श्रीवास्तव की कलम से, पर्यावरण एवं पर्यटन केंद्र 21--

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आध्यात्मिक आस्था का समंदर है "खडगवां का महामाया मंदिर"

अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय है यह विशाल ब्रह्मांड, जिसमें अनगिनत तारामंडल अपने-अपने ग्रहों के साथ विचरण करते रहते हैं. सबका एक निश्चित परिपथ है इस परिपथ से भटकने वाला तारा अपना अस्तित्व समाप्त कर इसी ब्रह्मांड में विलीन हो जाता है या कोई नया नाम ग्रहण कर लेता है. इसी ब्रह्मांड में हमारा सूर्य और सौरमंडल भी है जिसमें मनुष्य सहित कई जीव जंतु की उत्पत्ति होती हैं, लेकिन ब्रह्म और ब्रह्मांड का नियम हम पर भी लागू होता है कि अपने परिपथ को न छोड़ें अन्यथा हम भी उसी विशाल तारे की तरह नष्ट हो जाएंगे.
आध्यात्मिक संत महात्माओं के ज्ञान के अनुसार वर्तमान परिवेश में जब हम भौतिकवादी युग में धन यश कमाने में एक दूसरे को पीछे धकेलने की प्रतिस्पर्धा में तल्लीन दिखाई पड़ते हैं जो हमारे वास्तविक जीवन का उद्देश्य नहीं है. जीवन को जीने के उद्देश्य परक ज्ञान को प्राप्त करने की विधा हमें अध्यात्म में मिलती है. अध्यात्म जीने की एक ऐसी विधा है जिसमें जियो और जीने दो की शक्ति कार्य करती है. आपके व्यवहार में करुणा और सत्य दोनों होना चाहिए. ईर्ष्या प्रलोभन से दूर स्वयं के साथ दूसरों की प्रगति में खुशी महसूस करना ही अध्यात्म की प्रथम सीढ़ी है. अध्यात्म ही जीवन में प्रेम शांति खुशी और विवेक की शक्ति प्रदान करता है. हम सर्वव्यापी इस परमात्मा के अंश है जो ब्रह्म के अंदर समाहित है जिसका कोई स्पष्ट रूप नहीं है किंतु वह इस ब्रह्मांड और प्रकृति का नियंता भी है उत्तरोत्तर विकास के आगले चरण में हमें ज्ञान होता है कि हम देह नहीं मन नहीं बल्कि आत्मा है यह उसी परमात्मा का अंश है जो ब्रम्ह और ब्रम्हांड का नियंता है. आध्यात्मिक ज्ञान हमें पतन की ओर जाने से रोकता है.
आज के भौतिकवादी युग में मनुष्य के अंदर जो अंधकार उत्पन्न हो गया है उसे अध्यात्म के प्रकाश से ही दूर किया जा सकता है . मंदिरों एवं गुरु शक्ति के समीप पहुंचने का प्रयास भौतिकवादी जीवन से आध्यात्मिक जीवन में जाने का प्रथम चरण है. जब हम अपने भौतिक सुखों से विरक्त होने लगते हैं एवं जब आर्थिक संसार की ऊंचाईयाँ भी हमे शांति नहीं देती तब अध्यात्म के केंद्र, शक्ति स्थल मंदिर हमें एक शांति प्रदान करते हैं. दूसरी ओर सामान्य जन की भाषा में जब इसी पृथ्वी के जीव मनुष्य का एक वर्ग असफलता एवं निराशा के दौर से गुजरता है तब इन्हीं आध्यात्मिक शक्ति स्थल मंदिर में स्थापित मूर्ति को ब्रह्मांड की चेतना का अंश मानते हुए हम उनकी शरण में चले जाते हैं. यही शक्ति केंद्र हमें स्वयं की आत्मा से परिचित कराते हैं आध्यात्मिक शांति का हम अनुभव प्राप्त करते हैं. मंदिर और शक्ति केंद्र हमें नकारात्मकता की बजाय सकारात्मक प्रयास के लिए प्रेरित करते हैं . यही सकारात्मक भाव हमारे जीवन की दिशा तय करते हैं इसी दिशा परिवर्तन को हम ईश्वर, महामाया या शक्ति केंद्र का आशीर्वाद मानते हैं जिसके बल पर  हमारे जीवन की सफलता की आगामी यात्रा तय होती है.

आध्यात्मिक आस्था का समंदर है "खडगवां का महामाया मंदिर"
शक्ति स्थल की चर्चा में आईए आज चलते हैं छत्तीसगढ़ के 32 में जिले मनेन्द्रगढ़- चिरमिरी – भरतपुर के आखिरी छोर में बसे खडगवां विकासखंड के चनवारीडांड़ ग्राम में स्थित महामाया देवी के मंदिर की ओर, जो समय के अनुसार आध्यात्मिक आस्था का समंदर बनता जा रहा है. आदिवासी जनजाति के हजारों परिवारों से परिपूर्ण यह अंचल अपनी आदिवासी संस्कृति के गौरवपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेजों से परिपूर्ण है. आसपास के गांव में आदिवासी राजाओं के कई किस्से आज भी पुरखों की जुबानी सुनी जा सकती है. राजगोंड़ परिवार के लोग आज भी उनके वंशज कहलाने पर गर्व का अनुभव करते हैं. इस अंचल के धवलपुर, खडगवां, रानी कुंडी जैसे कई पर्यटन स्थल है जो इन राजाओं की कहानियों से जुड़े हुए हैं और कई किस्से आज किवदंतियों के रूप में प्रचलित है. जो आदिवासी गौरव की किस्सागोई के रूप में लोगों के द्वारा आज भी याद की जाती है. गोंड राजाओं के राज्यों के कई किस्सों के बीच खड़गवां ब्लॉक जो सैकड़ों वर्ष पूर्व से आदिवासी जमीदारों की निवास स्थल रही है. नए जिले मने- चिर- भरतपुर जिले की सीमाएं इसी खड़गवां विकास खंड से बिलासपुर और कोरबा जिले तक फैली हुई है. यहां के  चनवारी डांड ग्राम में गोंड राजाओं के समय काल से ही जमींदारी चली आ रही है. यहां के जमीदार स्वर्गीय उदित नारायण सिंह का राज निवास यहां खडगवां में था जहां पर उन्होंने अपने क्षेत्र की सुख समृद्धि के लिए महामाया देवी के पूजा स्थल की स्थापना की थी. जो उनकी कुलदेवी के रूप में मान्यता प्राप्त है. लेकिन समय के बदलाव के साथ राजाओं के राज्य और जमीदारों की जमींदारियाँ समाप्त हो गई. परिवार बिखर गए. तब ऐसे मंदिरों के शक्ति स्थल धीरे-धीरे आम जनमानस की आस्थाओं से जुड़ते चले गए. अपनी आध्यात्मिक आस्था के साथ जो भी इस महामाया मंदिर तक शांति के लिए या अपनी मनोकामनाओं के लिए पहुंचा इस ग्रामीण परिवेश में मां जगदंबा ने उसके भीतरी शक्ति को जागृत करने का अवसर दिया और यही आशीर्वाद के रूप में हमारे द्वारा किए गए कार्यों के क्रियान्वयन एवं सफलता का कारण बनी . इसी आशीर्वाद एवं पण्य प्रताप की चर्चा से इस महामाया मंदिर की कीर्ति आसपास के गांव शहर और पूरे छत्तीसगढ़ में फैल गई.  लोगों का आध्यात्मिक आस्था के साथ खडगवां के चनवारी डांड में स्थित इस महामाया मंदिर में लोगो का आवागमन बढ़ते बढ़ते यह स्थल आज आस्था का एक विशाल समंदर बन चुका है.
चनवारीडांड़ गांव में इस मंदिर की स्थापना की भी अपनी एक कहानी है. खड़गवां के पुराने निवासी राजेश्वर श्रीवास्तव के पुत्र अनिल श्रीवास्तव एवं महामाया मंदिर कमेटी के सचिव आर बी श्रीवास्तव ( राम बाबू श्रीवास्तव) से प्राप्त जानकारी के अनुसार पूर्वजों एवं किवदंतियों के अनुसार यह महामाया देवी की मूर्ति रतनपुर महामाया स्थल से पूर्व विधायक  चंद्र प्रताप सिंह के परदादा स्व. र्देवनारायण सिंह के पुत्र स्वर्गीय उदित नारायण सिंह द्वारा लगभग सौ साल पहले लाई गई थी. उस समय आवागमन हेतु घोड़े, बैलगाड़ी भैसागाड़ी  जैसे साधन ही उपलब्ध थे. अतः यह मूर्ति भी बैलगाड़ी मैं लादकर  खड़गवां में स्थापित करने के विचार से लाई गई, लेकिन रतनपुर से आते समय उन दिनों कच्चे रास्ते पर चलती बैलगाड़ी उबड़ खाबड़  रास्ते से गुजरती हुई चनवारी डांड के इस स्थान तक पहुंच कर कीचड़ भरे रास्ते में फँस  गई.  तालाब का किनारा होने के कारण यह रास्ता कीचड़ भरा कच्चा रास्ता था  जिसमें मूर्ति से लदी यह  बैलगाड़ी ज्यादा धँस गई. जिसे ग्रामीणों के  प्रयास से निकालने की कोशिश की गई लेकिन बैलगाड़ी को ना तो बैल खींच पाए और ना ही आदमी उसे निकाल पाए,  ऐसी स्थिति में मूर्ति को नीचे उतार कर कर तालाब के एक ऊंचे स्थान पर रख दिया गया. जिसे दूसरे दिन फिर से उठाकर  खड़गवां ले जाना तय किया गया, किंतु रात को जमीदार स्वर्गीय उदित नारायण जी को देवी जी ने उनके स्वप्न में प्रकट होकर कहा कि मुझे इस स्थान पर ही  स्थापित कर दो यह एक सिद्ध स्थल है . कहीं और ले जाने का प्रयास मत करो. देवी की यह मनसा को आशीर्वाद और आदेश मानते हुए उदित नारायण जी ने मां महामाया को आम के पेड़ के नीचे स्थापित कर दिया जो आज भी अपने स्थान पर स्थापित है.
सुरगुंजा का यह इलाका हाथियों के चिंघाड़ और चहलकदमी का विशाल भ्रमण का क्षेत्र था. जहां हाथियों के चिंघाड़ से यह क्षेत्र गुंजायमान हुआ करते थे. झुंड के झुंड हाथी यहाँ आया जाया करते थे. ऐसा माना जाता है कि गज भ्रमण के समय इसी तालाब में पानी पीने वाले हाथियों के चहल कदमी से देवी जी का ऊपरी हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था जिसे चांदी से मढ़कर ठीक किया गया. काफी प्रयास के बाद इंदौर से सुप्रसिद्ध मूर्तिकार शर्मा जी द्वारा लगभग 30 किलो चांदी से इस मूर्ति का नवनिर्माण किया गया.
संत महात्माओं के चरणधूलि से लगातार तृप्त होती महामाया देवी के आध्यात्मिक स्थल की कीर्ति छत्तीसगढ़ संस्कृति एवं पर्यटन विभाग रायपुर तक पहुंची. जिसे वर्तमान समय में मान्यता प्राप्त पर्यटन स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है जो इसकी गरिमा को बढ़ाती है एवं छत्तीसगढ़ के मुख्यालय रायपुर से चनवारीडांड़ के पर्यटन परिपथ में इस शक्ति केंद्र को जोड़ती है जो आस्थावान लोगों को इस मंदिर की ओर अधिक जानकारी के साथ आकर्षित करने का एक सशक्त माध्यम बन गई है.
जानकारी के अनुसार विगत चार दशक से इस महामाया मंदिर से जुड़े मंदिर कमेटी सचिव  आर बी श्रीवास्तव से चर्चा में पता चला कि पहले यहां केवल महामाया देवी का मंदिर था जहां नवरात्रि में नौ दिवसीय अखंड आस्था एवं मनौति ज्योति कलश का दीपक जलाया जाता था. धीरे-धीरे इस ज्योति की आस्था में बढ़ोतरी होने लगी अतः एक बड़े हाल की आवश्यकता महसूस हुई जिसे विस्तार देकर अब बड़ा बना दिया गया है वर्तमान में यहां पर लगभग 3000 ज्योति जलाई जा रही है. देवी भक्ति की साधना से जुड़े यहीं पर एक भैरवनाथ का मंदिर भी बनाया गया है. इसी मंदिर के पीछे वह तालाब है जहां बैलगाड़ी फंसी थी. अब उसे बांधकर बड़ा बना दिया गया है. यहां देवी मंदिर में आस्था के अनुसार धागा बांधकर या नारियल चढ़ाकर लोग अपनी मनौती मांगते हैं.

आध्यात्मिक आस्था का समंदर है "खडगवां का महामाया मंदिर"
महामाया मंदिर के मुख्यद्वार के निर्माण का आकर्षण पहुंचने वाले आस्थावान लोगों को दूर से ही आकर्षित करता है. एक एकड़ परिसर में फैली इस मंदिर में प्रवेश करने पर सामने महामाया देवी का मंदिर दिखाई पड़ता है . आस्था के सैलाब को नियंत्रित करने के लिए पाइप की रेलिंग लगा दी गई है ताकि दर्शनार्थी एक साइड से जाकर देवी की पूजा अर्चना के पश्चात दूसरी ओर बनी हुई रेलिंग पाइप से आगे की ओर बढ़ सके और अव्यवस्था ना हो. लोग अपनी पूजा अर्चना के बाद आगे ज्योति कलश कक्ष एवं हनुमान मंदिर और राम दरबार तथा भोलेनाथ के मंदिर के भी दर्शन के लिए यही से आगे बढ़ते हैं. इस मंदिर के सामने टीन सेड का एक छायादार स्थल बना दिया गया है ताकि लोग यहां बैठकर अपनी आस्था के अनुसार सत्यनारायण कथा या अन्य पूजन कार्य ब्राह्मण की उपस्थिति में यज्ञ हवन के साथ पूर्ण कर सकें . लंबी दूरी से आए हुए यात्री यहां कुछ देर के लिए शांति के साथ आंखें मूंदे चिंतन ध्यान करते हुए नजर आते हैं. भजन कीर्तन के लिए भी यह स्थल भजन मंडली के लिए उपलब्ध होता है। यहां कई नई जोडे़ अपने दाम्पत्यजीवन की शुरुआत करने विवाह संस्कार के लिए भी आते हैं उनकाविवाह कार्य भी यहां संपन्न कराया जाता हैं. कम खर्च में दो परिवारों को आपस में विवाह संस्कार से जोड़ने का यह कार्य मां महामाया के समक्ष उनके साक्ष्य एवं आशीर्वाद में संपन्न होता है.

आध्यात्मिक आस्था का समंदर है "खडगवां का महामाया मंदिर"

मंदिर के विशाल परिसर में दाहिनी ओर भव्य  हनुमान मंदिर एवं भोलेबाबा का शिव मंदिर का निर्माण इस मंदिर का आकर्षण है.  जिसका गुंबज दूर से ही दिखाई पड़ता है.  मंदिर निर्माण की चर्चा के दौरान आर बी श्रीवास्तव एक गहरी सांस लेकर कहते हैं कि मंदिरों का निर्माण कोई साल दो साल के समय में  नहीं बल्कि एक लंबा ऐतिहासिक कार्यकाल होता है. जिसमें हजारों लोगों की भावनाएं जुड़ी रहती है.  मंदिर निर्माण के लिए आस्था चिंतन और सहयोग के साथ-साथ धैर्य की आवश्यकता होती है. यह भी तय है कि ईश्वर की मर्जी के बिना किसी भी मंदिर का निर्माण नहीं किया जा सकता. समय और काल के पन्नो के अनुसार कई मंदिर निर्माण धैर्य के अभाव मे  आधे अधूरे रह जाते हैं लेकिन जहां पर सहयोग एवं आस्था  धैर्य के साथ प्रारंभ होता है या जिसे पूरा करने का मन बना लिया जाता है वह कार्य ईश्वर स्वयं पूरा करते हैं. दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर के प्रति जनमानस की  बढ़ती आस्था को ध्यान में रखकर जब भव्य हनुमान मंदिर का निर्माण का विचार  इस कमेटी के मन में आया तब 12 फरवरी 2003 को मंदिर के निर्माण हेतु पूजा पाठ कर मंदिर की  नींव  डाली गई. समय के अनुसार समय बितता गया और आज 21 वर्ष जब इस मंदिर को बीत चुके हैं तब हमें ऐसा लगता है कि यह कल की ही बात है.  विगत 22 फरवरी 2023 को  त्रिदिवसीय अनुष्ठान के साथ ही इस भव्य मंदिर में दक्षिण मुखी मारुति नंदन हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा की गई. इसी के पास राम दरबार मंदिर एवं भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग मंदिर भी स्थापित हैजिसमे आदि देव भगवान गणेश जी के साथ मां पार्वती और कार्तिकेय विराजमान हैं.  इस मंदिर के परिसर में पहुंचते साथ ही एक आध्यात्मिक शांति महसूस होती है यही कारण है कि यहां कई श्रद्धालु आंखें मूंदे शांति के साथ उपासना में मंत्र मुग्ध बैठे दिखाई देते हैं.  स्वच्छ एवं साफ सुथरे परिवेश का यह वातावरण आपको अध्यात्म के साथ जोड़ता है इसी हनुमान मंदिर के पास संत महात्माओं के विश्राम स्थल की व्यवस्था भी की गई है ताकि किसी संत महात्माओं के आने पर उनका समुचित स्वागत किया जा सके और प्रवास के लिए उन्हें एक उचित स्थान  दिया जा सके.

आध्यात्मिक आस्था का समंदर है "खडगवां का महामाया मंदिर"
ज्ञान एवं आस्था का केंद्र महामाया मंदिर मनेन्द्रगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर एवं चिरमिरी से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित है.  इस मंदिर तक पहुंचाने के लिए कई रास्ते हैं जो मनेन्द्रगढ़ मुख्यालय पहुंचकर या बैकुंठपुर पहुंचकर भी यहां पहुंचा जा सकता है. हवाई मार्ग के लिए बिलासपुर एवं रायपुर तो हवाई मार्ग उपलब्ध है जहां से यहां तक की यात्रा की जा सकती है बहुत जल्द ही अंबिकापुर से भी हवाई यात्रा के सुविधा प्राप्त होने की संभावना है मनेन्द्रगढ़ से अपनी कार या टैक्सी से सीधे महामाया मंदिर चनवारी डांड़ पहुंचने के लिए मनेन्द्रगढ़ से लेदरी होते हुए भौता मार्ग  से यात्रा करनी होगी और भौता से  बायें मुड़कर देवाडांड़ के रास्ते में कोड़ा गांव होते हुए आगे बढ़ना होगा कोड़ा गांव के मुख्य मार्ग में स्थित पुलिस चौकी आपके लिए सहयोगी सिद्ध हो सकती है . देवाडांड़ के  तिराहे पर पहुंचने के बाद बांयें ओर मुड़कर खड़गवां रोड पर आगे बढ़ते हुए  चनवारी डांड़ मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. मुख्य मार्ग सेखड़गवां पहुंचने  से पहले चनवारी डांड़ ग्राम के पहुंचने पर मुख्य मार्ग से ही मंदिर का भव्य द्वारा आपका स्वागत करता हुआ दिखाई पड़ता है.
जहां जीवन में जीवन जीने के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं तब इस तरह के शक्ति स्थल हमें नया मार्ग दिखलाते हैं.  यही कारण है कि विज्ञान एवं कला के विभिन्न  श्रेष्ठ संस्थाओं से शिक्षा और  ज्ञान   प्राप्त करने के पश्चात भी  आइई आइई टी जैसे संस्थान  के विद्वान छात्र भी आध्यात्मिक  रंग में रंगे हुए दिखाई पड़ते हैं. वृंदावन की गलियों में गेरुआ वस्त्र धारण किये ऐसे कई विद्वान युवक नई आध्यात्मिक चेतना के साथ आपको भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन मिल जाएंगे.  आध्यात्मिक आस्था के  समंदर इस महामाया मंदिर में आप भी सपरिवार आकर आध्यात्मिक शांति के वातावरण में आत्मिक शांति महसूस कर सकते हैं तथा बच्चों एवं नवयुवकों को हिंदू धर्म की आस्था के शक्ति स्थल एवं उनकी आध्यात्मिक परंपराओं से जोड़ने का पुनीत कार्य कर सकते हैं. हमारे हिंदू मान्यताओं के अनुसार उनकी संस्कृति में बसे ईश्वर एवं आस्थाओं के नए-नए केंद्र जोड़ने से अपनी सांस्कृतिक विरासत से जहां बच्चे परिचित होते हैं वही उन्हें आध्यात्मिक पड़ाव के जरिये जीवन जीने का एक नया अनुभव
प्राप्त होता है हमारा अनुरोध है कि  एक बार जरूर
चनवारी डांड़ महामाया मंदिर के दर्शन करें और  मां महामाया का आशीर्वाद प्राप्त कर जीवन को धन्य बनाए.
बस इतना ही

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फिर मिलेंगे किसी अगले पर्यटन पर-

 


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