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प्रभु श्री राम का ननिहाल भी गौरवान्वित  है मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से 

सतीश उपाध्याय,वरिष्ठ योगाचार्य ,पतंजलि योग समिति

Ghoomata Darpan

प्रभु श्री राम का ननिहाल भी गौरवान्वित  है मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से 

 22 जनवरी को होने वाले प्रभु श्री राम के प्राण प्रतिष्ठा का उत्साह पूरे देश में चरम पर है। इस ऐतिहासिक क्षण को चिर स्मरणीय बनाने के लिए  ,ब्लॉक स्तर के प्रमुख मंदिरों  एवं पूजा स्थलों पर रंग रोगन हो रहा है और पुराने मंदिरों को स्व प्रेरणा  से श्रद्धालु अब जीर्णोद्धार कर  रहें हैं ।

श्री राम के जन्म  एवं उनके दिव्य जीवन की छोटी बड़ी  पौराणिक घटनाक्रमों का  छत्तीसगढ़ से भी , गौरवशाली रिश्ता  रहा है ।  छत्तीसगढ़ को भगवान श्री राम का ननिहाल माना जाता है।वनवास की बड़ी अवधि प्रभु श्री राम ने यहां गुजारी। छत्तीसगढ़ से  प्रभु राम का  गहरा पौराणिक नाता रहा  है ।इसका बाल्मीकि रामायण में भी उल्लेख मिलता है।
प्रभु श्री राम का ननिहाल भी गौरवान्वित  है मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से 
 ऐसे आध्यात्मिक क्षेत्रों में  राम वन गमन मार्ग के तहत काफी धार्मिक काम हुए हैं, खासकर उन मार्गों का जिन मार्गो से प्रभु राम जी का सरोकार रहा है। भगवान राम जिन जगहों से गुजरे थे उसे धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित किया जा रहा है । रामचंद्र जी के वनवास काल का छत्तीसगढ़ में पहला पड़ाव भरतपुर के पास सीतामढ़ी हरचौका को कहा जाता है।
प्रभु श्री राम का ननिहाल भी गौरवान्वित  है मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से 
सीतामढ़ी हरचौका में मवई नदी के तट पर बनी प्राकृतिक गुफा को काटकर सुंदर तरीके से तराशा गया है ,इसमें द्वादश शिवलिंग के अलग-अलग कक्ष स्थापित किए गए हैं । बताते हैं कि यहां रामचंद्र जी ने वनवास काल में पहुंचकर रात्रि विश्राम किया था। हर चौका का अर्थ है हरि की चौकी मतलब भगवान की रसोई ।
प्रभु श्री राम का ननिहाल भी गौरवान्वित  है मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान रामचंद्र ने यहां शिवलिंग की पूजा अर्चना कर चौमासा व्यतीत किया था ।राम वन गमन मार्ग के रूप में इस स्थल को चिन्हांकित  किया गया है , राम वन गमन  मार्ग के रूप में ऐसे स्थान  से लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं और इसका काफी धार्मिक महत्व है।
  इतिहासकार बताते हैं की श्री राम चित्रकूट से होते हुए  दंडकारण्य की ओर आए थे ।छत्तीसगढ़ में श्री राम की ननिहाल मानते हुए  इसकी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इन क्षेत्रों  की आध्यात्मिक लुप्त छवि को अब निखारा जा रहा है ।
प्रभु श्री राम का ननिहाल भी गौरवान्वित  है मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से 
प्रभु श्री राम , छत्तीसगढ़ में जहां-जहां से वनवास के दौरान गुजरे उन क्षेत्रों को पुण्य भूमि मानते हुए उसका जीर्णोद्धार  किया जा रहा  है। मान्यताओं के अनुसार प्रभु श्री राम और माता सीता ने पवई नदी को पार कर छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया।  वनवास के दौरान श्री राम भगवान ने छत्तीसगढ़ में 12 वर्ष बताएं । रामायण कालीन इतिहास के अनुसार छत्तीसगढ़ से जुड़े श्री राम और माता कौशल्या से संबंधित भी अनेक साक्ष्य  मिलते हैं।बाल्मीकि रामायण में भी छत्तीसगढ़ के स्थलों  का उल्लेख किया गया है एवं  राम की महिमा का वर्णन किया गया है।
 चंदखुरी में स्थित सोमवंश कालीन शिव मंदिर में भी बाली सुग्रीव के मल युद्ध की प्रतिमा  है। सरगुजा के ऐतिहासिक स्थान रामगढ़ के बारे में मान्यता है कि श्री राम लक्ष्मण सीता ने वनवास का लंबा काल  यहीं बिताया, यहां राम की भव्य प्रतिमा स्थापित है। शिवरीनारायण, शबरी की साधना स्थली कही  जाती है ।यहां राम ने शबरी के  झूठे बेर खाए थे।
 त्रेता युग में रामायण की रचना करने वाले महर्षि वाल्मीकि का आश्रम तुरतुरिया में था। कहते हैं कि यही लव कुश की  जन्मस्थली भी है। चंदखुरी  में सैकड़ो तालाब हैं  , तालाब के  बीचोंबीच  माता कौशल्या का इकलौता मंदिर तो अपने आप में अलौकिक है। राजिम के संबंध में मान्यता है कि त्रिवेणी संगम पर कुलेश्वर महादेव की स्थापना माता सीता ने अपने हाथों से किया था
त्रेता युग की गौरवशाली यात्रा का साक्षी रामाराम सुकमा को भी कहा जाता है ,जहां वनवास में श्री राम दंडकारण्य सुकमा के रामाराम में रुके थे ,यहां भी धार्मिक भावनाओं को देखते हुए मंदिर का निर्माण किया गया । बस्तर में भी  कई क्षेत्र प्रभु राम के आगमन के साक्ष्य के रूप में देखे जाते हैं । छत्तीसगढ़ में रामनामी समुदाय से भी जुड़े लोग हैं जो पूरे शरीर में राम नाम का गोदना गोदवाकर आत्मिक शांति का अनुभव करते हैं। जांजगीर ,चांपा, सारंगढ़, सक्ती जैसे अन्य छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में रामनामी राम के भजन में डूबे दिखते हैं।
500 वर्ष के  लंबे अंतराल एवं संघर्ष के बाद अयोध्या में राम जन्मभूमि पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। इन 500 वर्षों के दौरान भारत के करीब 25 पीढ़ियों ने राम मंदिर के मुद्दे पर देश के संघर्ष को देखा।

अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण  देश की आध्यात्मिक, भावनात्मक , पौराणिक मान्यताओं को पुख्ता करता है , यह केवल धार्मिक आस्था का केंद्र ही नहीं  बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान के जागरण का उद्घोष भी है। आज राम जन्मभूमि में विकसित भाव एवं विशाल अलौकिक राम मंदिर दुनिया के सामने एक समर्थ शक्तिशाली और समृद्ध भारत के रूप में खड़ा है  एवं राम राज्य की परिकल्पना को साकार कर रहा है। यह  मंदिर निर्माण राष्ट्रीय एकता

लोकतांत्रिक मूल्यों ,मर्यादा  का भी प्रतीक है, इससे भाईचारा और सद्भाव को भी बल मिल रहा है ।

 आज अयोध्या अपनी  पूरी गरिमा के साथ विभूषित हो रही है ।कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के चक्र पर स्थापित है। अयोध्या के ही गोद में बैठकर सृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने तप किया।यह  मंदिर निर्माण कई मामले में खास  है। पड़ोसी देश नेपाल से लगभग 3000 से अधिक उपहार , अयोध्या के  प्रतिष्ठित होने वाले राम मंदिर के लिए मिले हैं, नेपाल के जनकपुर को माता सीता का मायका होने का गौरव  भी प्राप्त है ।इस प्रकार भगवान राम नेपाल के जमाई यानी दामाद भी कहे जाते हैं ।नेपाल में 22 जनवरी को जिस दिन रामलला बिराजेंगे उस दिन  वहां दिवाली मनाई जाएगी, नेपाल  में जानकी मंदिर भी है ।नेपाल में 57 साल पुराना श्री राम सीता का डाक टिकट भी जारी किया गया था, जो 18 अप्रैल 1967 को रामनवमी के दिन जारी हुआ था  । इस प्रकार भारत और नेपाल के संस्कृति की धार्मिक भावनाएं और बलवती  हो रही हैं ।नेपाल से सोने चांदी के आभूषण ,धनुष बाण, पद चिन्ह आदि उपहार  में दिए गए हैं ।मर्यादा पुरुषोत्तम राम और माता जानकी के प्रति नेपाल देश की निष्ठा संपूर्ण विश्व के लिए एकात्मकता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण भी है एवं सांस्कृतिक एकता के दिशा में एक उल्लेखनीय पहल है । सोने की श्रीलंका के अशोक वाटिका से  लाई गई मिट्टी,कन्नौज के इत्र,  से राम जन्मभूमि के लिए खास सुगंध तैयार की गई है।   अत्याधुनिक  अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन  परिसर लोकार्पित हो चुका है। अब यह प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन विश्व पटल पर विशेष चर्चा में है। अब अयोध्या वैश्विक चर्चा में है,  इसका वैभव एवं दिव्यता पूरे देश में चर्चित हो रही है ।
अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन के लोकार्पण के समय प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर के जन्मदिवस पर 28 सितंबर 2022 को रामनगरी के सौंदर्य को ऐतिहासिक बना दिया गया । यहां पर लता मंगेशकर के नाम  पर चौक का नामकरण किया गया जहां 14 टन वजनी और 40 फीट लंबी वीणा लगाई गई है।  सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के  मधुर राम भजन को आने वाले श्रद्धालु सुनेंगे ,जिससे आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होगा ।अब राष्ट्र को पुनर्स्थापित अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन की सौगात मिल चुकी है ।
 पुराणों में उल्लिखित अयोध्या के समस्त कुंडो को विकसित किया जा रहा है। रामायण कालीन सरयू नदी के तटो का  पुनरुद्धार, अयोध्या के चार ऐतिहासिक प्रवेश द्वारों का निर्माण, अयोध्या से जुड़ी हजारों करोड़ रुपए की विकास परियोजनाएं अयोध्या को नया रूप एवं वैभव प्रदान कर रही है।
त्रेता युग की अयोध्या की भव्यता  आज विश्व स्तर पर अनुपम उदाहरण बन चुकी है ।त्रेता युगीन वैभव को पुनर्स्थापित करने का संकल्प पूरा होने जा रहा है अयोध्या अपनी विरासत को सजाने,  नई राह पर है। अयोध्या की संस्कृति और सभ्यता अब नए स्वरूप,नये शिल्प के साथ भक्तों के लिए विद्यमान है, और विश्व के मानचित्र पर स्थापित हो रही है।
अयोध्या की भव्यता और निरंतर अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार  की जा रही है। यहां के विकास कार्यों को देखते हुए यह कहा जा सकता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके   पौराणिक एवं आध्यात्मिक रामायण कालीन स्वरूप को  पुनर्स्थापित  करने के लिए कोई कोर कसर  नहीं छोड़ रहे हैं।
अयोध्या से सिख धर्म का भी अटूट रिश्ता रहा है। इतिहासकार बताते हैं कि  सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव 1510 -11 ईस्वी में अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल आए थे। निहंग सिक्ख समुदाय  ने  भी घोषणा की है कि  अयोध्या के राम मंदिर में श्री राम की मूर्ति के अभिषेक के लिए दुनिया भर से आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा के लिए लंगर का आयोजन करेंगे। आज अयोध्या में प्रभु श्री राम ,मनोहारी झांकी के साथ विविध रूपों में स्थापित हैं। धर्म नगरी अयोध्या में सरयू तट और आकर्षक हो गया है। ऐसे पौराणिक उल्लेख एवं मान्यता है कि सरयू के तट के पास ही लंका से लौटने पर प्रभु श्री राम का पुष्पक विमान उतरा था।
प्रभु श्री राम ने जीवन की विकट परिस्थितियों का बहुत धैर्य पूर्वक सामना किया, यदि उनके  जीवन के संघर्षों के पन्ने पलटे तो हम पाते हैं कि, प्रभु श्री राम को 14 वर्ष का वनवास, सीता अपहरण, रावण से युद्ध,अपने ही बच्चों लव-कुश से युद्ध, सीता का त्याग का जीवन बहुत त्रासदी पूर्ण रहा।
प्रभु श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम जन-जन के आराध्य इसलिए भी हैं कि उन्होंने जीवन में आए हुए कठिनाईयों एवं संघर्षों को  धैर्य  एवं शिष्टता से सामना किया। संकट के समय में भी उन्होंने स्वयं को सहज एवं सरल रखा उन्होंने हर परिस्थिति को मर्यादित रखा इसीलिए वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहलाए। राम का जीवन यह संदेश भी देता है कि -जीवन में कठिन परिस्थितियां कभी भी आ सकती है ऐसे समय विवेक एवं धैर्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। श्री राम का आचरण इसलिए भी स्तुति योग्य  है,क्योंकि उन्होंने संघर्षों के दौर में भी अपने आचरण को संयमित रखा एवं सूझबूझ , विवेक का साथ नहीं छोड़ा। श्री राम की पूजा से हमें आध्यात्मिक शांति ही नहीं प्रेरणा भी मिलती है कि ,कठिन और विचलित करने वाले क्षणों का सामना हमें धैर्य पूर्वक किया जाना चाहिए। उन्होंने अपने सिद्धांतों और मूल्य की गरिमा का ध्यान रखा एवं कभी विचलित नहीं हुए। अयोध्या श्री राम की समरसता की भी भूमि रही है, प्रभु राम ने निषाद राज  एवं केवट प्रसंग से समाज को भाईचारे ,अपनत्व ,सह्वयता एवं  विनम्रता का ही संदेश दिया है। उनके दर्शन एवं संघर्ष , का ही प्रतिफल है कि आज पूरा देश उनको अपना आराध्य मानता है, यही कारण है कि प्राण प्रतिष्ठा में सनातन धर्म मानने वालों के इतर अन्य धर्मावलंबी  भी इस प्राण प्रतिष्ठा से दिल से जुड़े हुए हैं।
 22 जनवरी को पूरे हिंदुस्तान में दीपावली जैसा अद्भुत एवं अलौकिक दृश्य दिखेगा ।घर के देहरी पर जलते हुए दिए  से  इस  प्राण प्रतिष्ठा   की भावनाएं प्रदर्शित होगी।  श्रीलंका के अशोक वाटिका से शुरू होकर अयोध्या जाने वाली राम रथ  यात्राका देशभर में अभूतपूर्व स्वागत किया  जा रहा है। श्रीलंका के अशोक वाटिका से अयोध्या तक की यात्रा लगभग 10000 किलोमीटर से ज्यादा की है ,44 दिनों की यह यात्रा करोड़ों श्रद्धालुओं की पवित्र भावनाएं लेकर राम जन्मभूमि पहुंच रही है। आज पूरे विश्व में व्याप्त राम के भक्त, श्रद्धालु ,प्राण प्रतिष्ठा समारोह के साक्षी बनने के लिए आतुर हैं।
वाल्मीकि रामायण में उल्लेखित संदर्भों के अनुसार अयोध्या नगरी में भगवान राम का जन्म हुआ और उन्होंने   सरयू नदी में ही जल समाधि ले ली थी। ऐसा कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य को सर्वप्रथम भगवान ने राम के होने का साक्ष्य मिला था और उन्होंने राम को आराध्य मानते हुए 84 स्तंभ वाले मंदिर का निर्माण कराया था ।पुराणों में भी सरयू नदी को अयोध्या के पहचान के रूप में परिभाषित किया गया है। मान्यता है कि कैलाश पर्वत से लोक कल्याणी पावन सरयू निकली है। वामन पुराण ,ब्रह्म पुराण, वायु पुराणों में भी गंगा जमुना गोमती  नदियों के साथ सरयू नदी के महत्व एवं सरयू स्नान का महत्व वर्णित है। सरयू घाट का तो अलग ही पौराणिक और धार्मिक महत्व है। छत्तीसगढ़ के परिपेक्ष में देखना यह है कि प्रदेश की पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल के बनाए गए श्री राम वन गमन पथ को आगे कितनी ऊंचाइयों तक लेकर जाती है।
प्रभु श्री राम का ननिहाल भी गौरवान्वित  है मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से 
 सतीश उपाध्याय,वरिष्ठ योगाचार्य ,पतंजलि योग समिति
 मनेद्रगढ़,जिला एमसीबी,छत्तीसगढ़ 9300091563

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