छत्तीसगढ़

तमिल रामायण…,श्रीराम-सीता द्वारा पूजा और रावण का आचार्यत्व… 

 वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से {किश्त 138}

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अयोध्या में 500 साल के संघर्ष के बाद राम मंदिर बनने, उसकी प्राण प्रतिष्ठा के बाद अब भाजपा श्रीराम मंदिर, रामराज्यऔर विपक्ष द्वारा निमंत्रण ठुकराने को भी एक प्रमुख मुद्दा लोस चुनाव में बना चुकी है,आधे अधूरे मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा में भारत के शँकराचार्यों के शामिल नहीं होने का मुद्दा भी चर्चा में है, बहरहाल तमिल रामायण में यह उल्लेख है कि रामेश्वरम में शिवलिंग की मुख्यपूजा में ब्राम्हण रावण आचार्य थे श्रीराम और सीता यजमान के रूप में उपस्थित थे।रामे श्वरम देव स्थान में ज्योति लिंग की स्थापना,रामसेतु बनाने के लिए श्रीराम ने महेशवर लिंग- विग्रह के लिए आचार्य के रूप में ब्राम्हण रावण को आमंत्रित किया था वे स्वयं आये, बल्कि सीता को भी लेकर आये।पूजा उपरांत सीता को लेकर भी चले गये, यही नहीं श्रीलंका विजय का आर्शीवाद भी श्रीराम को दिया था। वर्तमान संदर्भ में जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण की देश- दुनिया में चर्चा है,श्रेय लेने की होड़ लगी है तब एक प्रसंग का उल्लेख जरूरी है। बाल्मीकी और तुलसीकृत रामायण में तो इस प्रसंग का उल्लेख नहीं है पर तमिल रामायण में तो महर्षि कम्बन की ‘इरामा वतारम’ में यह कथा है…।कथा के अनुसार रावण के पास जामवंत को आचार्यत्व का निमंत्रण देने श्रीराम ने लंका भेजा था। जामवंत ने लंकापति रावण से अनुरोध किया कि वनवासी राम ने सागर-सेतु निर्माण, महेश्वरलिंग-विग्रह की स्थापना हेतु अनुष्ठान के लिए आपसे आचार्य पद पर वरण करने की इच्छा प्रकट की है। रावण ने भी आचार्यत्व स्वीकार किया। ब्राम्हण रावण ने अनुष्ठान की सभी सामग्री जुटाने का आदेश सेवकों को दिया, साथ ही अशोक वाटिका पहुंचकर सीता से कहा कि श्रीराम,लंका विजय की कामना से समुद्र तट पर महेशवर लिंग -विग्रह की स्थापना करने जा रहे हैं और मुझे आचार्यवरण किया है। यजमान का अनुष्ठान पूर्ण हो यह दायित्व आचार्य का भी होता है। तुम्हें विदित है कि अर्धांगिनी के बिना गृहस्थ के सभी अनुष्ठान अपूर्ण रहते हैं। विमान आ रहा है, उस पर बैठ जाना,ध्यान रहे कि तुम वहां भी रावण के अधीन रहोगी,अनुष्ठान समापन के उपरांत यहां वापसी के लिए विमानपर पुन: बैठ जाना। जानकी ने दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक झुका दिया तो ‘सौभाग्यवती भव:’ कहकर रावण ने आशीर्वाद भी दिया पूजा स्थल पहुंचकर भूमि शोधन के उपरांत ब्राम्हण रावण ने कहा ‘यजमान, अद्धांगिनी कहाँ हैं..? उन्हें यथास्थान आसान दे…, श्रीराम ने मस्तक झुकाते हुए विनम्र स्वर से प्रार्थना की कि यदि यजमान असमर्थ है तो योग्याचार्य सर्वोत्कृष्ठ विकल्प के अभाव में अन्य समकक्ष विकल्प से भी अनुष्ठान सम्पादन कर सकते हैं। रावण ने कहा यदि तुम अविवाहित, विधुर अथवा परित्यक्त होते तब तो विकल्प संभव था,इसके अतिरिक्त तुम संन्यासी भी नहीं हो और पत्नीहीन वानप्रस्थ का भी तुमने व्रत नहीं लिया है। इन परिस्थिति में पत्नी रहित अनुष्ठान तुम कैसे कर सकते हो…! सागर निकट पुष्पक विमान में यजमान की पत्नी विराज मान है किसी को भेज दो। वहां से सीता आई, अनुष्ठान में शामिल भी हुई। अनुष्ठान के बाद श्रीराम ने पूछा कि आपकी दक्षिणा……? रावण ने कहा कि जब आचार्य (रावण) मृत्युशैया ग्रहण करे तब यजमान (श्रीराम) सम्मुख उपस्थित रहे…। बहरहाल रावण जैसे भविष्यवक्ता ने जो दक्षिणा मांगी, उससे बड़ी दक्षिणा क्या हो सकती थी? जो रावण यज्ञ कार्य पूरा कराने हेतु श्रीराम की बंदी पत्नी को भी समक्ष प्रस्तुत कर सकता है वह श्रीराम के लौट जाने की दक्षिणा कैसे मांग सकता था। *(रामेश्वरम देव स्थान में लिखा हुआ है कि इस ज्योतिलिंग की स्थापना श्रीराम ने रावण द्वारा कराई थी)*।


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