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20th June 2025

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: भगवान राम के चरणधूलि का सिद्ध स्थल घघरा सीतामढ़ी    (यहां के तांत्रिक गुरु उड़ने वाले घोड़े की सवारी करते थे)

  प्राचीन ग्रंथों एवं इतिहासकारों के अनुसार छत्तीसगढ़ की भौगोलिक सीमाएं इतिहास के पन्नों के  साथ बदलती रही है कभी यह इच्छ्वाकु वंश के राजा दंड का राज्य रहा है जो गंगा से लेकर गोदावरी तक राज्य करते थे लेकिन राजा दंड को उनके अक्षम्य  अपराध की सजा देते हुए उनके ही गुरु शुक्राचार्य ने श्राप देकर उनका पूरा राज्य अग्नि और वर्षा से नष्ट कर दिया. समय बीतने के साथ  यह विशाल क्षेत्र  घनघोर जंगल में परिवर्तित हो गया.  जिसे बाद में महाकातांर कहा जाने लगा.  कालांतर में दानव राज मय ने इस महाकांतार  प्रदेश को अपना आवास बना लिया और यहाँ दानवों  की विशाल बस्ती बन गई. दंडक वन का यह क्षेत्र दानव मय के राज्य करने से सभी सुख सुविधाओं से परिपूर्ण होता गया.  दानव राज मय ने अपनी बड़ी पुत्री माया का  विवाह उस समय के वीर असुर सम्राट शंबरासुर  से कर दिया और दहेज में सरगुजा का उत्तरी हिस्सा अर्थात वर्तमान सामरी, कुसमी का राज्य दे दिया. इसमें वर्तमान मध्य प्रदेश  उ.प्र., उड़ीसा एवं झारखंड का क्षेत्र भी शामिल था.  अपनी दूसरी पुत्री मंदोदरी का विवाह उसने रावण से कर दिया और उसे बस्तर का भूभाग राज्य के लिए दे दिया. यह दोनों क्षेत्र दंडकारण्य के सीमावर्ती इलाके या दंडकारण्य मे शामिल क्षेत्र ही रहे हैं. दंडकारण्य  का यह क्षेत्र प्राचीन ग्रंथों के अनुसार उस समय लगभग 35600 वर्ग मील में फैला हुआ था.  वर्तमान सरगुजा के कोरिया एवं मनेन्द्रगढ़ (एमसीबी)  जिले की प्राकृतिक वन- एवं जल संपदा तथा उंँची नीची पहाडियों का सौंदर्य हमेशा से देवताओं को आकर्षित करता रहा है रामायण के शोधकर्ता डा. मन्नू लाल यदु के अनुसार यही कारण है कि देव एवं ऋषि मुनि इसी क्षेत्र में निवास करते थे.  सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण दानवराज मय इस  क्षेत्र पर अपना आधिपत्य जमाने की कोशिश करता रहा है इसी कोशिश में देवराज इंद्र के साथ शंबरासुर का युद्ध हुआ था  जिसमें राजा दशरथ को भी देवताओं का साथ देने के लिए आमंत्रित किया गया था.  कोरिया सीमा के सोन नदी के तट पर गिरीब्रिज नामक स्थान पर देवासुर संग्राम हुआ था,  जिसमें राजा दशरथ घायल हुए थे और कैकई उन्हें बचा कर ले गई थी.  इस युद्ध में शंबरासुर  मारा गया लेकिन उसके सेनापति असुर तितर-बितर  होकर भी अपना आतंक बनाए रखने के लिए ऋषि मुनियों के आश्रम पर आक्रमण करते रहते थे और आश्रमों के यज्ञ स्थल को नष्ट करते रहे.  कैकई एक निपुण राज महिषी  महिला थी उन्होंने इन्हीं राक्षसों को समाप्त करने का निश्चय कर लिया था. अपने पुत्र श्री राम की वीरता को वह जानती थी इसलिए  राजा दशरथ द्वारा दिए गए वरदान के बदले भगवान राम को 14 वर्ष के वनवास भेजने के लिए वचनबद्ध करा लिया. जिससे असुर राक्षसों को समाप्त किया जा सके. बनवासी भगवान श्री राम का वन गमन का कार्यकाल कहां-कहां  कितने समय तक रहा.  इस संबंध में शोधकर्ताओं एवं इतिहासकारों का अलग-अलग मत है जिसमें चित्रकूट के बिताए गए समय पर मतभिन्नता दिखती है.  साहित्य मनीषी डॉ.  मन्नू लाल यादव के अनुसार 14 वर्षों के समय काल का अधिकतर समय छत्तीसगढ़ में भगवान राम ने बिताया है.  चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी को अयोध्या से छोड़ने के बाद वनवासी श्री राम- सीता आषाढ़ आते-आते तक छत्तीसगढ़ पहुंच चुके थे. वर्तमान छत्तीसगढ़ के उत्तरी छोर पर बसे मवई नदी के तट पर हरचौका ग्राम में सीतामढ़ी हरचौका का पत्थरों से निर्मित स्थल में उनका पहला पड़ाव था. किवदन्तियाँ हैं कि भगवान राम ने यहां पर चौमासा बिताया था वहीं कुछ अन्य शोधकर्ताओं का अनुमान है कि स्थल पर कुछ समय बिताने के बाद वनवासी श्री राम सीता एवं  अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ आगे बढ़कर घघरा सीतामढ़ी आश्रम पहुंचे थे जहां  भगवान शिव की त्रिकाल संध्या आरती के लिए शिवलिंग की स्थापना कर आराधना की थी कुछ समय विश्राम कर वे आगे बढ़े और छतौरा आश्रम पहुंचे शोधकर्ता मन्नू लाल यदु के अनुसार बनवासी श्री राम ने यहां अपना चौमासा बिताया था. घनघोर जंगलों के बीच ऋषि मुनियों  के आश्रम होने के कारण यहां राक्षसों की उपस्थिति की जानकारी इस आश्रम से मिल जाती थी. घनघोर भयावह जंगलों  के बीच मुनियों के  इस छपौरा आश्रम में भगवान राम  एवं लक्ष्मण ऋषि मुनियों के साथ  चर्चा कर राक्षसों के वध की योजना बना लेते थे. केंद्र सरकार ने वर्ष  2015 में राम वन गमन मार्ग को जोड़कर आस्था एवं पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 2260 किलोमीटर का परिपथ चयनित किया है जो कई राज्यों से होकर गुजरेगा इन्हें अंकित करने के लिए पड़ाव केंद्र बनाए गए हैं छत्तीसगढ़ के इसी दंण्कारण्य में बनवासी भगवान श्री राम का सबसे लंबा वन गमन मार्ग रहा है.  कोरिया, मनेंद्रगढ़ (एमसीबी)  जिले के सीतामढ़ी हरचौका से लेकर कोंटा बस्तर सुकमा तक भगवान राम ने कुल 1100 किलोमीटर की लंबी यात्रा की है. विकास की योजनाओं को अंकित करने के लिए पड़ाव केंद्र बनाए गए हैं जिनका क्रमशः  विकास किया जाना है इन्हीं पड़ाव केंद्र में सीतामढ़ी हर चौका को केंद्र क्रमांक 70 एवं रापा नदी के तट पर बसे बने घघरा सीतामढ़ी को केंद्र क्रमांक 71 तथा छपौरा  आश्रम को 72 वां केंद्र विकास की दृष्टि से रेखांकित किया गया है. सीतामढ़ी घाघरा धाम के नाम से परिचित जंगलों के बीच रापा नदी के तट पर  पत्थरों से निर्मित गुफा में प्राचीन काल के दो शिवलिंग की स्थापना की गई है जिसे भगवान राम के त्रिकाल संध्या आरती एवं पूजा हेतु शिवलिंग की स्थापना की मान्यता प्राप्त है.  प्राचीन काल में शिवलिंग की जलहरी के चौकोर निर्माण की परंपरा थी जो रामायण काल में भी देखी जा सकती है. पत्थरों को काटकर बनाए गए इस आश्रम में भी चौकोर जलहरी के शिवलिंग की स्थापना इसे पुरातन एवं प्राचीनता की प्रमाणिकता से जोड़ती है.  ग्राम पंचायत घघरा द्वारा पक्की सड़क का कुछ दूर तक निर्माण किया गया है लेकिन अभी भी कच्ची सड़क होने के कारण बरसात में यहां तक पहुंचाना कष्टकारी होगा.  मंदिर के पास पहुंचने के बाद मंदिर के किनारे के हिस्से जो नदियों से जुड़ते हैं वहां  लोहे की फेंसिंग लगाकर सुरक्षित मार्ग बना दिया गया है.  इससे मंदिर का आकर्षक एवं  सौंदर्य और बढ़ जाता है.  कोरिया, एवं मनेन्द्रगढ़ ( एमसीबी )  जिले में अगले चरण में विकास के लिए सीतामढ़ी घघरा, कोटाडोल, सीतामढ़ी- छपौरा, का बाबा आश्रम, देवशील, रामगढ़, सोनभद्र और अमृत धारा के विकास की योजनाएं प्रस्तावित है.  यह कब तक पूरी होगी यह वर्तमान सरकार के निर्णय और भगवान राम के प्रति निष्ठा पर निर्भर करता है. यहां मंदिर के किनारे बहने वाली  नदी का उद्गम 2 किलोमीटर ऊपर रापा ग्राम से है इसीलिए इसका नामकरण रापा नदी हुआ जो आगे बढ़कर बनास नदी को अपने जल सै समृद्ध करती है.यह  पहाड़ी नदी होने के कारण बरसात के बाढ़ में अचानक पानी ऊपर चढ़कर मंदिर के पास तक पहुंच जाता है भगवान शिव को अपना जल अर्पण करने की ललक रापा में भी दिखाई पड़ती है.  इसी नदी के ऊपर एक पुल का निर्माण किया जा रहा है ताकि बारिश के दिनों में इन पहुंच विहीन रास्तों में बसे राजस्व एवं वनग्राम  तक पहुंच बनाई जा सके और  मध्य प्रदेश के सीधी को जोड़ने  वाले इस रास्ते के आसपास के ग्रामीणों को गुजर बसर करने की जीवन की आवश्यक सुविधा उपलब्ध कराई जा सके. इस पुल निर्माण के संबंध मे कोई जानकारी का बोर्ड नहीं होना (क्यों बोर्ड नहीं लगाया) जैसे  कई प्रश्न खड़ा करता है.  मध्य प्रदेश के सीधी को जोड़ने  वाले इस रास्ते के आसपास के ग्रामीणों को गुजर बसर करने की जीवन की आवश्यक सुविधा उपलब्ध कराई जा सके.  इस स्थल के ऊपर माँ अन्नपूर्णा  के मंदिर में माथा टेक कर भी आप उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं.  मंदिरों के बारे में आध्यात्मिक आस्था है कि सिद्ध मंदिर उसी स्थान पर बनते हैं जो सिद्ध स्थल होते हैं, हालांकि भगवान  राम के चरण जहां पड़े हो वह अपने आप में सिद्ध स्थल है किसी ऋषि मुनि या संतों का यज्ञ हवन एवं पूजन पाठ का  आश्रम यह भी रहा होगा. सिद्धस्थलों की चर्चा मे यहां के वर्तमान पुजारी रामसखा आश्रम के संत श्री रामचंद्र महाराज जी ने इस संबंध में  बताया  कि इस स्थल की सबसे पहले खोज स्वामी अड़गड़ानंद ने की थी और यहां एक आश्रम बना दिया था.  आश्रम के सामने यज्ञ स्थल के पास गड़ा हुआ स्तंभ (लाट) उन्हीं के द्वारा गाड़ा गया था जिस पर  लहराता पताका उनके स्मृतियों का साक्षी है.वे स्वयं एक सिद्ध संत थे. संत रामचंद्र महाराज जी ने बताया कि  किवदंतियां के अनुसार लगभग  तीन सौ बर्ष पहले भी इस अंचल की भूमि मे सिद्ध संत रहे हैं.   यहां से 3 किलोमीटर दूर सिद्ध चितावर आश्रम में  तंत्र विद्या के कुशल साधक संत  धनवंतरी धनातन गुरु निवास करते थे. जो अपनी सिद्धि के बल पर अपने घोड़े को हवा में उड़ाया  करते थे और दूसरे संतो तक पहुंचने के लिए इसी उड़ने वाले घोड़े की सवारी करते थे. भयंकर जंगलों  के बीच मित्र संतो तक पहुंचने का आवागमन इसी घोड़े द्वारा  हवाई मार्ग से हुआ करता था.  चितावर आश्रम के आसपास चितावर के जंगल है जिनकी लकडी तंत्र विद्या में काम आती है.आयुर्वेद में भी इसका प्रयोग औषधि बनाने  में किया जाता है. यहाँ घघरा सीतामढ़ी मे  भगवान राम के चरण पड़े थे.  उनके द्वारा स्थापित शिवलिंग मे जल चढ़ाने और उनका आशीर्वाद लेने से बढ़कर और बड़ा महत्व क्या हो सकता है. उन्होंने जानकारी दी कि सावन के  पवित्र महीने में श्रद्धालुओं द्वारा सीतामढ़ी हर चौका तक पैदल चलकर जल चढ़ाने की योजना है जो इस वर्ष से ग्रामीणों द्वारा शीघ्र सावन मे प्रारंभ की जाएगी. राम वन गमन मार्ग मे भगवान राम की चरणधूलि का घघरा सीतामढ़ी धाम पहुंचने के लिए आपको छत्तीसगढ़ के एमसीबी जिले के मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ पहुंचना होगा.  हवाई यात्रा से पहुंचने के लिए आपको रायपुर एयरपोर्ट उतरकर रायपुर - अंबिकापुर ट्रेन से बैकुंठपुर या बिजुरी उतरकर मनेन्द्रगढ़ पहुंचा जा सकता है. रायपुर से चलने वाली दूसरी ट्रेनों के माध्यम से भी आप अनूपपुर उतरकर भी मनेन्द्रगढ़  पहुंच सकते हैं मनेन्द्रगढ़ एक व्यापारिक केंद्र एवं उभरता हुआ शहर है जिसमें अच्छे होटल लॉज या रहने की व्यवस्थाएं आपको मिल जाती है. मनेन्द्रगढ़ से बस या टैक्सी से कठौतिया जनकपुर मार्ग से  110 किलोमीटर उत्तर दिशा में चलकर  जनकपुर पहुंचना होगा.  जनकपुर से कोटाडोल राम वन गमन पथ स्टेट हाईवे नंबर 3 पर लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर घघरा गांव स्थित है जिसकी मुख्य सड़क से लगभग 2 कि.मी अंदर घघरा सीतामढ़ी धाम तक पहुंचा जा सकता है. मुख्य सड़क से 200 मीटर भीतर पहुंचने पर 13वीं शताब्दी का एक प्राचीन मंदिर आपको आकर्षित करता है जिसे देखने के बाद आगे बढ़ने पर रापा नदी के किनारे (घघरा गांव के गोठान के पास)  रामसखा आश्रम के किनारे किनारे नीचे यह पत्थरों से निर्मित मंदिर मिलेगा, जहां शिवलिंग की पूजा अर्चना  करने का सौभाग्य आप प्राप्त कर सकते हैं.   जनकपुर में  रुकने के लिए कुछ छोटे लाज तथा वन विभाग और शासकीय रेस्ट हाउस उपलब्ध है. जहां पूर्व अनुमति लेकर रुकने की व्यवस्था  हो  सकती है.  भोजन के लिए कुछ  होटल उपलब्ध है लेकिन यदि आप स्थानीय व्यंजन के ईश्वरीय  प्रसाद के रूप में भोजन चाहते हैं तब आप चांग देवी मंदिर के पुजारी श्री सूर्यमणी उपाध्याय जी को  फोन ( 88396 54327) पर  पूर्व सूचना देकर दोपहर का भोजन प्रसाद भी सेवा शुल्क देकर मंदिर प्रांगण में श्रद्धा के साथ ग्रहण  कर सकते हैं. यह भोजन प्रसाद आपको स्थानीय देसी ग्रामीण भोजन के साथ उपलब्ध होगा. चांग देवी का मंदिर जनकपुर से कोटाडोल के रास्ते में 8 किलोमीटर दूरी  पर स्थित है यहां से आप छोटे मार्ग से बहरासी गांव तक पहुंच कर भी मनेन्द्रगढ़ का  वापसी मार्ग पकड़ सकते हैं . आस्था और  पर्यटन के साथ जंगलों की शांति के बीच पशु पक्षियों के कलरव भरे मनमोहक  माहौल में स्थित यहाँ  की प्राकृतिक सुंदरता आपके परिवार का मन मोह लेगी और कुछ समय यहां शांति के साथ बिताने के लिए आपको प्रेरित करेगी. एक  नई खोज एवं भगवान राम की यादों के साथ उनकी आस्था और प्रासंगिकता को बच्चों में बांटने के लिए भी आप इस स्थल पर पहुंच सकते हैं. हमारा विश्वास है कि घघरा सीतामढ़ी तक आपके परिवार सहित पहुंचने की यात्रा आपके जीवन में हमेशा अविस्मरणीय रहेगी. बस इतना ही अगले पड़ाव पर  चलेंगे किसी नए पर्यटन की ओर .........  

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