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5th November 2025

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कवि सम्मेलन मे प्रतिभा बिखेरी : उत्तरी छत्तीसगढ़ के साहित्य की बस्तर में गूंज

Praveen Nishee Sat, Nov 1, 2025

मनेन्द्रगढ़। एमसीबी ।दक्षिणी छत्तीसगढ़ के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर मैं आयोजित कवि सम्मेलन में उत्तरी छत्तीसगढ़ के रचनाकारों की कविताओं की गूंज से देश भर के साहित्यकार परिचित हुए. मनेन्द्रगढ़ के वरिष्ठ कवि बीरेन्द्र श्रीवास्तव की कविता - " मैं जिस मिट्टी में जन्मा हूं, वह सुरगुंजा की माटी है अपभ्रंशो ने सरगुजा कहा, कोरिया की कारी माटी है" की प्रस्तुति ने सरगुजा और बस्तर की संस्कृति और आदिवासी जनजीवन को वनवासी राम की यादों से जोड़ दिया. उन्होंने अपनी कविताओं मे शहर में बदलते गांव की ऐसी तस्वीर प्रस्तुत की जिसके आलोक से पूरा जगदलपुर आलोकित हो गया. चेम्बर आफ कामर्स सभागार मे आयोजित इस कवि सम्मेलन का संचालन कर रही अंचल की चर्चित कवियत्री श्रीमती अनामिका चक्रवर्ती ने छोटी छोटी रचनाओं के साथ कवियों को आमंत्रित कर सधे हुए संचालन की प्रतिभा का परिचय दिया. वहीं अपनी मानवीय संवेदनाओं के गहन विचारों की चर्चित कविताओं से लोगों का मन मोह लिया. मनेन्द्रगढ़ की माटी के रचनाकार पुष्कर तिवारी की कविताओं और गीत प्रस्तुति से मंच अभिभूत हो गया. मनेन्द्रगढ़ के उभरते गायक एवं कवि रमेश गुप्ता की गजलों की प्रस्तुति से श्रोता झूम उठे और प्रत्येक शेर पर वाहवाही दी.

स्मरणीय है कि जगदलपुर के वरिष्ठ साहित्यकार विजय सिंह द्वारा स्थापित ठाकुर पूरन सिंह स्मृति 28 वें सूत्र सम्मान समारोह 2025 इस वर्ष जगदलपुर में आयोजित किया गया. जिसमें देशभर के चुने हुए साहित्यकारों को आमंत्रित किया गया था. इस अवसर पर संध्या काल में आयोजित यह कवि सम्मेलन पूर्व संभागायुक्त, विद्वान कवि, साहित्यकार माननीय डॉ संजय अलंग के मुख्य अतिथ्य एवं दिल्ली से प्रकाशित "ककसाड़" साहित्यिक पत्रिका के संपादक तथा वरिष्ठ साहित्यकार राजा राम त्रिपाठी की अध्यक्षता और "दुनिया इन दिनों" के संपादक सुधीर सक्सेना के विशिष्ट अतिथ्य में संपन्न हुआ. देश भर के साहित्यकारों, पत्रकारों और कलाकारों की उपस्थिति में आयोजित इस कवि सम्मेलन की गूंज छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में सुनाई दी क्योंकि इस सम्मान समारोह में दिल्ली से शामिल साहित्यकार भालचंद्र जोशी, देश की चर्चित अनुवादक अमृता बेरा तथा छ.ग के आलोचक जयप्रकाश, और आज की जन- धारा समाचार पत्र के छत्तीसगढ़ संपादक सुभाष मिश्र की उपस्थिति ने जहाँ इसे देश के कोने-कोने तक पहुंचा दिया, वही सरगुजा के साहित्यिक उंचाइयों से परिचित हुए.

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