: प्रश्न कर रहे पुरातन मंदिर, हमारा गुनाह क्या है? ( जनकपुर, घघरा के हजारों वर्ष पुराने मंदिरों की

करोड़ों वर्ष पहले पृथ्वी निर्माण के बारे में यह कहा जाता है कि यहां मानव सभ्यता और जीवन कई बार जन्म लेने के बाद समाप्त हो गई. इसी तरह प्राचीन इतिहास के बारे में भी यदि हम गहन अध्ययन करें तब यह पता चलता है के इतिहास की कई पन्ने आज भी अज्ञात है. जिससे जुड़ी पुरानी संस्कृति सभ्यता की स्मृतियों को सिलसिले वार समेटने का क्रम कहीं-कहीं टूटता दिखाई पड़ता है. इसी तरह का एक मंदिर छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग जनकपुर के पास घघरा गांव में दिखाई पड़ता है. जिसके बारे में उसकी प्राचीनता को लेकर कई प्रश्न उभरते रहे हैं. कभी यह मौर्य कालीन मंदिर कहा गया और कभी आठवीं शताब्दी और कभी 13वीं शताब्दी का मंदिर कहां जा रहा है. बहरहाल यह क्या है इसको जानने के लिए हमें इसके पत्थरों की कार्बन डेटिंग एवं शिल्प कला की गहराइयों तक जाना होगा लेकिन यह तो तय है कि छत्तीसगढ़ के जनकपुर जैसे विशाल जंगलों के बीच इस तरह की प्राचीन मंदिरों का पाया जाना यहां पर किसी सभ्य संस्कृति और सभ्यता की वह पहचान है जो आज भी गुमनामी के अंधेरे में बंद है. आईए चलते हैं आज पर्यटन एवं धरोहर के इस अंक में छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ एमसीबी. जिले के जनकपुर विकासखंड के घघरा गांव के ऐतिहासिक लेकिन अनजान मंदिर देखने. इस मंदिर की नक्काशी एवं पत्थरों के जोड़ को देखकर आप आश्चर्य के साथ वाह बहुत सुंदर कहने को बाध्य हो जाएंगे.
छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास में कोरिया एवं मनेन्द्रगढ़ (एमसीबी) जिले की जानकारी बहुत कम मिलती है लेकिन नदी पहाड़ की अपनी प्राकृतिक पहचान के साथ यहां के प्राचीन मंदिर इस क्षेत्र में बसने वाली पुरानी सुसंस्कृत सभ्यता से जोड़ने का पर्याप्त आधार उपलब्ध कराती है. (एमसीबी) जिले के मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ के उत्तर दिशा में स्थित सघन जंगल पहाड़ो के बीच कई ऐसे मंदिरों की उपस्थिति आपको आश्चर्य से भर देती है जो यह विचार करने को बाध्य करती है कि प्राचीन काल में यहां कोई एक सुसंस्कृत सभ्यता विकसित थी जिन्होंने यह मंदिर बनवाया होगा.
इतिहास के पन्नों में यह इलाका कैमूर एवं देवगढ़ की पहाड़ियों से जुड़ा इलाका है जहां मुरैलगढ़ की पहाड़ियों में राजाओं की गढ़ी एवं पर परकोटे की उपस्थिति समृद्ध सभ्यता एवं इतिहास की गवाही देते हैं. इस पहाड़ी की ऊंचाई अमरकंटक की पहाड़ी की ऊंचाई के लगभग बराबर प्रतीत होती है देवगढ़ की सर्वाधिक उँची चोटी समुद्र सतह से लगभग 3500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है. इसी के साथ-साथ सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला के जंगल और पहाड़ भी कहीं-कहीं एक दूसरे से मिलते हैं. देवगढ़ की पहाड़ियां अलग-अलग हिस्सों में चलती हुई जनकपुर से अंबिकापुर के उत्तरी भाग तक फैली हुई है.
मानव इतिहास की जानकारी में चांदभखार स्टेट अर्थात जनकपुर के कुछ स्थानों पर कंदरा मानव के चित्रों की जानकारी भी मिलती है. जो मानव के गुफाओं में रहने का प्रथम प्रमाण हैं. इसी तरह कोरिया जिले के आर्थिक मजबूती का सबसे सशक्त स्तंभ चिरमिरी और मनेन्द्रगढ़ - झगराखांड में कोयले की प्रचुर मात्रा में पाया जाना है. मनेन्द्रगढ़ का पुराना नाम कारीमाटी था. जो कोयले की ऊपरी सतह में पाए जाने वाले काली मिट्टी के कारण रखा गया था. रेल्वे लाईन विस्तार के बाद कोरिया के राजकुमार मनेन्द्र प्रताप सिंह देव के नाम पर इसे मनेन्द्रगढ़ नाम दिया गया. जो बाद मे एक विकसित व्यापारिक केन्द्र बनकर कोरिया की आर्थिक सम्पन्नता का पर्याय बना.
छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले का इतिहास भी मुगल एवं कलचुरी काल के बाद स्पष्ट होता है. सीधी के शासक राजा बालेन्द का राज्य वर्तमान मनेन्द्रगढ़ एमसीबी जिले के जनकपुर तक था. जिसे कोल राजाओं ने जमींदारों के साथ मिलकर बालेंद्र राजा से यह हिस्सा जीत कर अपना शासन स्थापित किया . बचरा पौड़ी के समीप कौड़िया गढ़ के पहाड़ी पर खंडहर नुमा मिट्टी की गढ़ी एवं तालाब कोल राजाओं के राज्य की कहानी कहते हैं. स्थानीय निवासी यहाँ चैत नवरात्रि मे यहाँ बनी देवी मंदिर मे पूजापाठ करते हैं. बाद में मैनपुरी चौहानवंशी धारामल शाही द्वारा कोल राजाओं को हराकर यहाँ कोरिया में अपना राज्य स्थापित किया गया.
जनकपुर से कोटाडोल रोड राज्य मार्ग पर स्थित घघरा गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए चर्चित गांव की पहचान बन चुका है. मुख्य सड़क के किनारे पत्थरों से निर्मित एक भारतीय मंदिर सभी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है. जो वर्तमान में प्राकृतिक क्षरण का शिकार हो रहा है किंतु उसका वैभव एवं शिल्प कला इस मंदिर को देखने के लिए बाध्य करता है. जंगल के बीच बसे इस गाँव मे इस मंदिर की उपस्थिति के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि किसी विकसित सभ्यता के निवासियों एवं शासको द्वारा ही ऐसे मंदिर बनवाए जा सकते हैंजो समय र काल के थपेड़ों में नष्ट हो गए होंगे, लेकिन मजबूत पक्ष की जानकारी नहीं होने से अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि यह मंदिर कब और किसने बनवाया. कुछ लोगों का कहना है कि मौर्य कालीन राजाओं द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया वहीं कुछ पत्र पत्रिकाओं में इसे आठवीं शताब्दी का मंदिर बताया गया, लेकिन पुरातत्व वेत्ता डा. वर्मा के अनुसार यह मंदिर 13वीं शताब्दी का बना हुआ मंदिर है. इसके शिल्प कला एवं मंदिर निर्माण की विधि से भी इसके निर्माण एवं समय काल की लगभग गणना की जा सकती है. मंदिर के प्रत्येक पत्थर पर देवी देवताओं एवं मानव आकृतियां को चित्रित करने वाली इस मंदिर के शिल्प कला के अद्भुत इंजीनियरिंग देखते ही बनती है. वास्तविक रूप में इस मंदिर के मंदिर के पत्थरों की कार्बन डेटिंग से इसके समय काल एवं प्राचीनता की स्पष्ट जानकारी प्राप्त हो सकती है. अब तक ज्ञात और प्रमाणिक जानकारी के अभाव में इसके निर्माण कला एवं मंदिर निर्माण के शिल्प को ध्यान में रखकर इसे मौर्यकालीन मंदिर के श्रेणी में रखा जाता है क्योंकि समकालीन मंदिरों के शिल्प एवं गुंबद का निर्माण एवं प्रत्येक पत्थरों पर नक्काशी इसे मौर्यकालीन मंदिरों के श्रेणी में खड़ा करती है. मौर्य काल 200 से 400 ईसा पूर्व से माना जाता है और इस अनुसार यह मंदिर 2400 वर्ष पुराना कहा जा सकता है अपुष्ट जानकारी के अनुसार मौर्य काल के सिक्के का इस क्षेत्र में पाया जाना भी इस सिद्धांत को प्रबल दावेदार बनाती है. पुरातत्व वेत्ता डॉ. वर्मा के अनुसार भी यह 13वीं शताब्दी का मंदिर है तब भी इस 700 वर्ष पुराने इस मंदिर की भव्यता आज भी देखने लायक है, लेकिन इसकी देखरेख नहीं होने के कारण यह मंदिर अब जीर्ण शीर्ण स्थिति मे पहुंच चुका है. और कुछ संरचना अपने स्थान से हट गई है.. मंदिर में संभवत शिव मंदिर मूर्ति की स्थापना की जानकारी मिलती है. हजारों वर्ष पुराने इन प्राचीन मंदिरों के एक-एक टूटे हुए पत्थर आज हमसे यह प्रश्न करते हैं कि हमारा गुनाह क्या है? हमें संरक्षित करने की दिशा में कोई हाथ क्यों नहीं उठ रहे हैं प्रश्न यह भी उठता है कि क्या हजारों साल पुराने मंदिरों को संरक्षित एवं विकसित करने के लिए किसी बड़े शहर की पहचान का होना जरूरी है यदि नहीं तो फिर इस वनांचल क्षेत्र जनकपुर के इस हजारों साल पुराने मंदिर की अब तक अनदेखी क्यों की जा रही है. सत्ता और शासन बदलते रहे है लेकिन इन पुरातन मंदिरों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. इसके संरक्षण हेतु छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग के विस्तृत अध्ययन की आज आवश्यकता है. इतने पुराने विरासत की देखरेख के अभाव में मंदिर का क्षरण एवं पत्थरों का टूटना बहुत बड़ी चिंता का विषय है. स्थानीय प्रशासन एवं जिलाधिकारी से इसके संरक्षण एवं विकास के लिए स्थानीय स्तर पर प्रयास की उम्मीद की जाती है पुरातत्व वेत्ताओं की टीम के द्वारा इसका अध्ययन इसके समय काल की गणना सहित जानकारी का एक बोर्ड यहां पर लगाया जाना उचित होगा. जिले के पर्यटन सर्किट में इसे जोड़ने के प्रयास स्वरूप इस मंदिर के आसपास की भूमि को आकर्षक बाउंड्री बनाकर तथा इसके नीव के आसपास चबूतरे का निर्माण तथा पर्यटन के लिए आवश्यक बैठक एवं जलपान व्यवस्था जैसे आकर्षण के केंद्र इस क्षेत्र में बनाए जा सकते हैं. वर्तमान समय के अनुसार फूलों- पत्तियां से इसे सजाकर पर्यटन सर्किट में जोड़ा जा सकता है. पर्यटन एवं धरोहर चिंतकों को भी इसके संरक्षण की दिशा में अपने स्तर पर प्रयास करना चाहिए ताकि यह धरोहर नष्ट होने से बचाई जा सके.
अबूझ पहेलियां के इस आकर्षक मंदिर को देखने के लिए आपको छत्तीसगढ़ के नए एमसीबी जिले के मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ पहुंँचना होगा. यहाँ से आगे उत्तर दिशा की ओर स्टेट हाईवे नंबर 6 से टेढ़े मेढ़े वनांचल क्षेत्र की सड़कों से गुजरते हुए जनकपुर तक की यात्रा पूर्ण करनी होगी . आकर्षक साल एवं सागौन के सघन जंगलों के बीच से गुजरते हुए इस पर्यटन स्थल तक पहुंचने की आनंद दायक यात्रा के पल आपकी मानसिक चेतना को जहां स्वस्थ करते है वहीं मधुर स्मृतियों से परिपूर्ण यात्रा को अविस्मरणीय बना देते हैं. यदि आप छत्तीसगढ़ से बाहर के राज्य से आ रहे हैं और हवाई मार्ग का उपयोग करते हैं तब आपको रायपुर के विवेकानंद एयरपोर्ट पहुंचकर ट्रेन टैक्सी या स्वयं के साधनों से मनेन्द्रगढ़ पहुंचना होगा. उसके बाद यहां से 110 किलोमीटर की दूरी पर आपकी यात्रा जनकपुर मैं समाप्त होगी. जनकपुर पहुंचकर हम आगे की यात्रा के लिए जनकपुर -कोटाडोल राम वन गमन पथ स्टेट हाईवे नंबर 03 पर लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर घघरा गांव पहुंचते हैं जिसकी मुख्य सड़क से 200 मीटर दूरी पर यह मंदिर स्थित है अपनी प्राचीनता के अंजान पद पन्नों में दर्ज अद्भुत शिल्प कला का यह मंदिर अब धीरे-धीरे टूट रहा है. इसका एवं पत्थरों की प्राचीन निर्माण एवं शिल्प इसकी खूबसूरती बयान करते हैं. मंदिर के टूटे हुए कई पत्थरों को ग्रामीणों ने पास के ही एक पेड़ के नीचे सजाकर रख दिया है उन पत्थरों पर की गई नक्काशी भी इसका प्रमाण देते हैं.
पर्यटन के लिए जनकपुर के आसपास प्राचीन मंदिरों में आप भगवान राम के वनवास काल की स्मृतियों के अंश में रापा सीतामढ़ी मंदिर तथा सीतामढ़ी हरचौका की गुफाएं जिसमें भगवान राम के चौमासा बिताने की यादें संग्रहित हैं उसे भी देख पाएंगे. आप अपने परिवार सहित यहां चांदभखार राजा के समय से बनी चांग देवी की मंदिर मे अपनी मनोकामना के लिए आशीर्वाद मांग सकते हैं.यहां रुकने के लिए शासकीय विश्रामगृह, वन विश्रामगृह तथा सामान्य लाज भी मिल जाते हैं. स्वामी आत्मानंद विद्यालय के मुख्य द्वार के समीप कुछ छोटे होटल यहां आपके चाय नास्ते एवं भोजन व्यवस्था कर सकते हैं. आप भोजन प्रसाद की व्यवस्था हेतु चांग देवी मंदिर में भी पुजारी जी को अग्रिम सूचना देकर आप भुगतान कर दोपहर का भोजन प्रसाद प्राप्त कर सकते हैं
पर्यटन खूबियो से संपन्न प्राकृतिक वन एवं आध्यात्मिक मंदिरों से भरपूर जनकपुर क्षेत्र की मुरैलगढ़ की पहाड़ियां का आकर्षण आपको बुला रहा है. रास्ते में आप जमीन से निकलते उपका पानी का भी आनंद ले सकते हैं. रमदहा जलप्रपात सहित कई पर्यटन स्थलो का एक मार्ग म पाया जाना आपको रोमांचित करता है. फिर क्या है बनाइए अपने बच्चों सहित एक टूर पर्यटन स्थल घघरा के रोमांचक एवं आध्यात्मिक हजारों साल पुराने मौर्य कालीन मंदिर को देखने के लिए..
बस इतना ही
अगली बार फिर मिलेंगे किसी नए पर्यटन पर


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