वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से...{किश्त 269} : शहीद 'आजाद' के साथी के समाधि स्थल पर बनेगा मल्टी लेबल पार्किंग.....!
Praveen Nishee Mon, Jun 9, 2025

आजादी के आंदोलन में शरीक कुछ नाम अमर हो गए, तो कुछ नाम गुमनामी के अंधेरे में खो गए। एक नाम है..सुखदेव। एक सुख देव थापर भी थे जो शहीदे आजम भगतसिंह,राजगुरु के साथ फांसी पर झूल गए थे।उस दौर में एक सुखदेव और थे। भगतसिंह- चंद्र शेखर आजाद के साथी सुखदेव राज। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के जिस कंपनी बाग (अल्फर्ड पार्क, अब चंद्रशेखर आजाद पार्क) में पंडित चंद्रशेखर आजाद शहीद हुए उस दिन उनके साथ जो शख्स बैठा था,वह थे सुखदेव राज। जिनका समाधि स्थल दुर्ग के अंडा गांव में है।समाधि स्थल की दुर्दशा इस महान क्रांतिकारी की आत्मा को बेचैन करती होगी।अब तो प्रतिमा की छत भी टूट गई है। निगम वहाँ मल्टी लेबल पार्किंग बनाने की योजना भी बना चुका है।सुखदेव राज को आज कोई नहीं जानता। गूगल पर भी सुखदेव राज का जिक्र नहीं है।अफसोस इस क्रांतिकारी को वक्त के साथ भूला दिया गया। बस समाधि स्थल पर लगे शिला लेख में जो जानकारी है, उतनी ही जानकारी सुखदेव राज के बारे में है।बाकी अंडा, कुथलरेल,कोलिहापूरी तथा दुर्ग के जिन लोगों के साथ सुखदेव राज की बातचीत होती थी, वे भी अब इस दुनिया में नहीं है।27 फरवरी 1931,कंपनी बाग आने से पहले चंद्र शेखर आजाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ इलाहाबाद के किसी बड़े नेता के घर गए थे। वहां से आकर पार्क में बैठ गए। सुखदेव राज अपने दुर्ग के साथियों से अक्सर जिक्र किया करते थे कि उस दिन पंडितजी बहुत परेशान थे। भगतसिंह सहित तमाम क्रांतिकारी जेल में थे आजाद किसी भी कीमत पर क्रांति की ज्वाला मद्धिम नहीं पड़ने देना चाहते थे। इसी विषय पर चंद्रशेखर आजाद व सुखदेव राज वार्ता करते हुए पार्क में बैठे थे।आधे घंटे बाद चंद्रशेखर आजाद को अहसास हुआ कि उनकी घेराबंदी की जा रही है। उस वक्त अंग्रेज सरकार को आजाद की तलाश थी। अंग्रेज सरकार ने चंद्रशेखर आजाद को जिंदा या मुर्दा पकड़वाने पर 5 हजार का इनाम भी रखा था।घेराबंदी होते आजाद ने सुखदेव राज को पार्क से निकल जाने के लिए कहा। सुखदेव राज किसी तरह वहां से बच निकले, अंग्रेज पुलिस के साथ मुठभेड़ में आजाद शहीद हो गए।बताते हैं कि सुखदेव राज का जन्म 8 दिसंबर 1906 को लाहौर के खत्री परिवार में हुआ था। पढ़ाई के दौरान वे क्रांतिकारी भगवतीचरण बोहरा के संपर्क में आए और क्रांतिकारी दल में जुड़ गए। सुखदेव राज,शहीदे आजम भगतसिंह,आजाद के बाद निकटम साथी रहे। क्रांतिकारी आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से वे दो बार पकड़े गए थे। उन्हें दो बार 3-3 साल की सजा हुई थी।1931 में अल्फर्ड पार्क से निकलकर वह कहां गए यह किसी को पता नहीं, पर 1963 में वे दुर्ग आ गए। तब विनोद भावे के सेवा भावना से प्रेरित होकर उनसे जुड़ चुके थे। विनोबा भावे के कहने पर वे दुर्ग आए। कोलिहापुरी के चंद्राकर परिवार ने कुष्ठ आश्रम के लिए 5 एकड़ जमीन दी। यहीं रह सुखदेव राज कुष्ठ रोगियों की सेवा करते थे।10 साल यहीं रहकर लोगों की सेवा की। दुर्ग स्टेशन रोड स्थित पंच शील स्टूडियों के संस्थापक स्व.राज वर्मा, कोलिहापुरी निवासी स्व.गिरधारी दास मानिकपुरी,छग सिख पंचायत के अध्यक्ष रहे मालवीय नगर दुर्ग निवासी स्व. हर भजन सिंह से उनकी गहरी दोस्ती थी।अक्सर पंचशील स्टूडियों में आकर भी बैठा करते थे। 1973 में सुखदेव राज का निधन हो गया अंडा आश्रम में सुखदेव राज की समाधि बनाई गई। 1976 में सरकार ने सुखदेव राज की सुध ली। तब उनकी प्रतिमा स्थापित की गई। 1976 में मप्र के सीएम श्यामाचरण शुक्ल व शहीदे आजम भगत सिंह के छोटे भाई उप्र सरकार में तब राज्यमंत्री सरदार कुलतार सिंह यहां आए थे। प्रतिमा का अनावरण किया गया।आज समाधि स्थल, प्रतिमा रख रखाव के अभाव में खराब होती जा रही है। प्रतिमा स्थल पर कब्जा हो गया है, 5 एकड़ जमीन कहां गई किसी को पता नहीं। सिर्फ प्रतिमा तथा उसकी छत ही बाकी है। प्रतिमा की हालत स्वभाविक तौर पर दयनीय है। कुछ साल पूर्व प्रतिमा को किसी चौक पर लगाने की चर्चा हुई थी, पर प्रशासन वह बात भूल गया, कनक तिवारी (पूर्व महाधिवक्ता ) ने बताया कि 1931 से 1963 तक सूखदेव राज पूरे देश में घूमते रहे। बाद में विनोबा भावे के संपर्क में आए, कुष्ठ रोगियों की सेवा करने लगे। विनोबा के कहने पर दुर्ग आए थे।अपने क्रांति जीवन पर एक पुस्तक भी ज्योति जगी लिखी थी। यह पुस्तक नागपुर से प्रकाशित हुई थी। जिसमें सूखदेव राज के समग्र जीवन का उल्लेख है।उन्होंने बताया कि भारतीय क्रांति के एक अशेष हस्ताक्षर सुखदेव राज दुर्ग में वर्षों रहे। यहीं उनका निधन हुआ और यहीं दुर्ग के निकट ग्राम अंडा में उनकी एक बहुत अच्छी मूर्ति लगाई गई ।संयोग से मैं उस समिति का अध्यक्ष था,मैंने कार्यक्रम का संचालन भी किया था आज दुर्भाग्य है कि उस स्मारक की देखभाल नहीं हो पा रही है,जिनके पास वह संपत्ति थी उन्होंने गलत तरीके से एक व्यापारी को बेच दिया और उसने कब्जा कर लिया है। हमारे एक मित्र के अनुसार इस सिलसिले में उन्होंने दुर्ग नगर निगम में आवेदन भी दिया था, महापौर को बताया भी था। संभवत: दिसंबर माह में नगर पालिक निगम की मेयर इन काउंसिल में इस सिलसिले में अच्छा प्रस्ताव पारित हो चुका है और वहां से जवाब आया है,उस स्थान पर मल्टी लेवल पार्किंग बनेगा। पार्किंग के सामने सुखदेव राज की प्रतिमा स्थापित की जाएगी।
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