वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडे की कलम से..{किश्त268} : 17 वीं शताब्दी से 90 साल पुरानी मस्जिद है रायपुर में..
Praveen Nishee Sun, Jun 8, 2025

छत्तीसगढ़ अपनी जीवंत संस्कृति और विरासत के लिए जाना जाता है,यहाँ कई इस्लामी विरासत स्थल हैं जो ऐतिहासिक अतीत की झलक दिखाते हैं,रायपुर में जामा मस्जिद इस क्षेत्र में इस्लामी वास्तुकला का एक प्रमुख उदाहरण है। सदियों पहले निर्मित,ये संरचनाएँ मुगल और क्षेत्रीय स्थापत्य शैली के मिश्रण को दर्शाती हैं। मस्जिदें धार्मिक केंद्र हैं, जटिल डिजाइनों से सजी हैं,जो इस्लामी प्रभाव को दर्शाती हैं।यह स्थल एक धार्मिक केंद्र है,जो छग की सांस्कृतिक विविधता और समृद्ध इतिहास का प्रतीक है। जामा मस्जिद, प्रमुख इस्लामी विरासत स्थल, वास्तुशिल्प सौंदर्य का एक चमत्कार है जो छग के इतिहास को सुशोभित करता है। मुगल सम्राट शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में निर्मित मस्जिद मुगल वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। इसकी सुंदर मीनारें,राजसी गुंबद, जटिल दीवार देखने लायक हैं।मस्जिद का डिज़ाइन, फ़ारसी, स्थानीय स्थापत्य शैली का एक सामंजस्यपूर्ण मिश्रण,इस क्षेत्र की अनूठी विशेषता है,आगंतुकों को इसकी भव्यता से विस्मित करता है।सदियों से मस्जिद रायपुर में मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र रही है। पूजा स्थल के रूप में कार्य करता है, दैनिक प्रार्थना और शुक्रवार की सभाएँ आयोजित की जाती हैं। मस्जिद को पत्थर और चूने के गारे से बनाया गया है, इसके अंदरूनी हिस्से को सुलेख और फूलों की डिज़ाइन से सजाया गया है, जो मुगल- युग की मस्जिदों की विशेषता है। जामा मस्जिद के प्रमुख आकर्षणों में बड़ा प्रार्थना कक्ष है, सैकड़ों उपासक बैठ सकते हैं। मस्जिद का माहौल और रायपुर के अन्य ऐतिहासिक स्थलों से निकटता पर्यटकों, भक्तों के लिए एक लोकप्रिय स्थान बनाती है।राजधानी रायपुर में कई छोटी-बड़ी मस्जिदें हैं। कुछ काफी पुरानी हैं। यहां 90 से लेकर 250 साल तक पुरानी मस्जिदें भी हैं। कई मस्जिदें इतनी बड़ी हैं एक साथ 5 हजार नमाजी सजदा कर सकते हैं।इनकी डिजाइन भी खास है। कोई ताजमहल की तर्ज पर तो कुछ तेहरान की मस्जिद की तर्ज पर बनाई गई है,मौदहापारा, बैरन बाजार,सुन्नी हनफी मस्जिद बैजनाथ पारा काफी पुरानी आकर्षक हैं,शहर की खास, प्राचीन मस्जिदों में शुमार है छोटा पारा बैजनाथ पारा की सुन्नी हनफी मस्जिद के बारे में पुराने लोग बताते हैं कि यह मस्जिद 250 साल से भी ज्यादा पुरानी है,मस्जिद के पास काफी हरियाली हुआ करती थी,दोबारा 1888 में पक्का बनाया गया, इसका उल्लेख एक पुरानी तख्ती में है। तख्ती सुरक्षित रखी गई है,मस्जिद की ही मीनारों की डिजाइन ईरान (तेहरान) की मस्जिद की तर्ज पर है। मीनारों में गोल घुमावदार सीढ़ियां बनी हैं। पहले जब माइक या लाउड स्पीकर नहीं था तब मीनार के ऊपर जाकर अजान दी जाती थी, ताकि दूर तक आवाज पहुंच सके।बैरन बाजार स्थित सुन्नी हनफी जामा मस्जिद लगभग 170 साल पुरानी है।मस्जिद सेना के जवानों के लिए बनाई गई थी। मस्जिद के बारे में बताया जाता है कि 1850 के आसपास लार्ड बाइरन रायपुर में मिलिट्री के प्रमुख थे। उनके समय में सेना की टुकड़ी पुलिस ग्राउंड, पेंशन बाड़ा में लंबे समय तक रुका करती थी। सेना में सभी धर्म के मानने वाले जवान थे। इसलिये लार्ड बाइरन ने सभी धर्म के जवानों के लिए इबादतगाह बनवाया थे। उन्हीं में यह मस्जिद है। बैरनबाजार मस्जिद 1850 से पूर्व की है। तब मस्जिद का नाम पल्टन मस्जिद था। जाहिर-सी बात है मस्जिद खास तौर पर मिलिट्री के मुस्लिम जवानों के लिए बन वाई गई होगी। यह भी पता चलता है कि इस मस्जिद के साथ- साथ इसके सामने का चर्च उसी वक्त बनाया गया था। अलावा महिला थाना चौक से पहले स्थित चौक पर एक प्राचीन मंदिर भी उसी वक्त बनवाया गया था। मौदहा पारा मुख्य मार्ग के किनारे स्थित अशर फुल औलिया मस्जिद 90 साल पुरानी है। इस मस्जिद की खूबसूरती दूर से देखी जा सकती है। इस मस्जिद में 5 हजार से अधिक एक साथ नमाज अता कर सकते हैं। चार मंजिली इस मस्जिद का मुख्य द्वार 56 फीट ऊंचा है, नाम बुलंद दरवाजा है। ताजमहल की ही तर्ज पर मस्जिद में दो मीनारें, बीच में बड़ा गुंबद है। मीनारों की ऊंचाई लगभग 195 फीट है। मस्जिद वातानुकूलित है। हर फ्लोर पर वजू का इंतजाम है। मस्जिद के दूसरे गेट के बगल में एक बड़ा हाउज बना है, जहां कई लोग एक साथ वजू बना सकते हैं। बताया जाता है कि यह मस्जिद सूबे की सबसे बड़ी मस्जिद है।
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